Loading

24 February 2017

अहिंसा की अंगूठी में मानवता का मोती है 'क्षमा' : स्वामी नित्यानंद गिरी

ओढ़ां के राधाकृष्ण मंदिर में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह
ओढ़ां
ओढ़ां की श्री श्री 108 बाबा संतोखदास गोशाला में स्थित राधाकृष्ण मंदिर में जारी श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दौरान ऋषिकेश से आमंत्रित कथा व्यास स्वामी नित्यानंद गिरी ने शुक्रवार को प्रवचन सुनाते हुये बताया कि आनंदकंद, ब्रजचंद, मुरलीधर ने अपनी कनिष्ठिका पर गोवर्धन पर्वत को एक पुष्प के समान उठा लिया और सात दिनों तक उसे धारण कर ब्रजवासियों की रक्षा करते हुये इन्द्र का अभिमान नष्ट कर दिया। यह जीवन सात दिन का है तथा जीना मरना सब इन सात दिन में होता है। सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि और रवि इन सात दिनों में ही जीवन है और आने वाले सात दिन में मृत्यु निश्चित है क्योंकि आठवां दिन तो कभी आता ही नहीं।

स्वामी जी ने कहा कि यह संसार गोवर्धन पर्वत के समान है जिसे मेरे ठाकुर जी अपनी कनिष्ठिका उंगली पर धारण करते हैं और गोप ग्वाल अपनी अपनी लाठियां पर्वत के नीचे लगाकर सोचते हैं कि पर्वत को उन्होंने उठा रखा है लेकिन ये तो मेरे प्रभु ने जीव को कृपापूर्वक मान देने के लिये हमसे लाठी लगवा रखी है। ये हमारा परम सौभाग्य है कि हम सातों दिन अर्थात पूरा मानव जीवन प्राणप्रिय प्रभु को निहारते हुए उनकी परम करूणा के पात्र बनकर और कर्मरूपी लाठी लगाकर सुरक्षित रह सकते हैं क्योंकि वास्तव में तो सारा भार मेरे प्रभु ने उठा रखा है।
उन्होंने बताया कि इन्द्रियों के ज्ञान व भक्ति की ओर बढऩे पर वासनायें बाधक बनकर जीव की बुद्धि को भ्रमित करतीं हैं लेकिन ज्ञान हमें वासनाओं से संघर्ष की शक्ति देता है।
स्वामी जी ने बताया कि सहिष्णुता महापुरुषों का विशेष गुण होता है जिसका अर्थ है क्षमाशीलता या सहनशीलता। जैसे अपराध करने वालो के प्रति दंड देने का भाव न रखना और उनसे प्रेमपूर्वक व्यवहार करना ही सहिष्णुता है। सहिष्णु स्वभाव वालों को लोग निर्बल तथा उनकी क्षमाशीलता को अवगुण मानते हैं लेकिन कहा गया है कि क्षमा मांगने से अहंकार ढ़लता है, क्षमा करने से सुसंस्कार पलता है, क्षमा शीलवान का शस्त्र है, क्षमा अहिंसक का अस्त्र है, क्षमा प्रेम का परिधान है, क्षमा विश्वास का विधान है, क्षमा सृजन का सम्मान है, क्षमा नफरत का निदान है, क्षमा पवित्रता का प्रवाह है, क्षमा नैतिकता का निर्वाह है, क्षमा सद्गुण का संवाद है, क्षमा अहिंसा का अनुवाद है, क्षमा दिलेरी के दीपक में दया की ज्योति है, क्षमा अहिंसा की अंगूठी में मानवता का मोती है।
इस मौके पर गोशाला प्रधान रूपिंद्र कुंडर, अमर सिंह गोदारा, तेजाराम, सालासर यात्री संघ से सुरेंद्र व सतीश, कृष्ण शर्मा, विजय गोयल, हंसराज, मदन गोदारा, कृष्ण गोयल, बसंत लाल शर्मा, जीत सिंह कुंडर, महावीर प्रसाद, दर्शन सिंह और राजबाला गोदारा सहित बड़ी संख्या में महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।

No comments:

Post a Comment