होली का त्यौहार Holi :Festivel of India
राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही, पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्योहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। किसानों का ह्रदय ख़ुशी से नाच उठता है। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।
इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इनमें प्रमुख हैं, जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र। नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से ३०० वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है। संस्कृत साहित्य में वसन्त ऋतु और वसन्तोत्सव अनेक कवियों के प्रिय विषय रहे हैं।
सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने भी अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है कि होलिकोत्सव केवल हिंदू ही नहीं मुसलमान भी मनाते हैं। सबसे प्रामाणिक इतिहास की तस्वीरें हैं मुगल काल की और इस काल में होली के किस्से उत्सुकता जगाने वाले हैं। अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहाँगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है। शाहजहाँ के समय तक होली खेलने का मुग़लिया अंदाज़ ही बदल गया था। इतिहास में वर्णन है कि शाहजहाँ के ज़माने में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे। मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य में दर्शित कृष्ण की लीलाओं में भी होली का विस्तृत वर्णन मिलता है।
इसके अतिरिक्त प्राचीन चित्रों, भित्तिचित्रों और मंदिरों की दीवारों पर इस उत्सव के चित्र मिलते हैं। विजयनगर की राजधानी हंपी के १६वी शताब्दी के एक चित्रफलक पर होली का आनंददायक चित्र उकेरा गया है। इस चित्र में राजकुमारों और राजकुमारियों को दासियों सहित रंग और पिचकारी के साथ राज दम्पत्ति को होली के रंग में रंगते हुए दिखाया गया है। १६वी शताब्दी की अहमदनगर की एक चित्र आकृति का विषय वसंत रागिनी ही है। इस चित्र में राजपरिवार के एक दंपत्ति को बगीचे में झूला झूलते हुए दिखाया गया है। साथ में अनेक सेविकाएँ नृत्य-गीत व रंग खेलने में व्यस्त हैं। वे एक दूसरे पर पिचकारियों से रंग डाल रहे हैं। मध्यकालीन भारतीय मंदिरों के भित्तिचित्रों और आकृतियों में होली के सजीव चित्र देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए इसमें १७वी शताब्दी की मेवाड़ की एक कलाकृति में महाराणा को अपने दरबारियों के साथ चित्रित किया गया है। शासक कुछ लोगों को उपहार दे रहे हैं, नृत्यांगना नृत्य कर रही हैं और इस सबके मध्य रंग का एक कुंड रखा हुआ है। बूंदी से प्राप्त एक लघुचित्र में राजा को हाथीदाँत के सिंहासन पर बैठा दिखाया गया है जिसके गालों पर महिलाएँ गुलाल मल रही हैं।
होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।
प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।
होली के पर्व की तरह इसकी परंपराएँ भी अत्यंत प्राचीन हैं, और इसका स्वरूप और उद्देश्य समय के साथ बदलता रहा है। प्राचीन काल में यह विवाहित महिलाओं द्वारा परिवार की सुख समृद्धि के लिए मनाया जाता था और पूर्ण चंद्र की पूजा करने की परंपरा थी। । वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। उस समय खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था। अन्न को होला कहते हैं, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा। भारतीय ज्योतिष के अनुसार चैत्र शुदी प्रतिपदा के दिन से नववर्ष का भी आरंभ माना जाता है। इस उत्सव के बाद ही चैत्र महीने का आरंभ होता है। अतः यह पर्व नवसंवत का आरंभ तथा वसंतागमन का प्रतीक भी है। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था, इस कारण इसे मन्वादितिथि कहते हैं।
होली का पहला काम झंडा या डंडा गाड़ना होता है। इसे किसी सार्वजनिक स्थल या घर के आहाते में गाड़ा जाता है। इसके पास ही होलिका की अग्नि इकट्ठी की जाती है। होली से काफ़ी दिन पहले से ही यह सब तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। पर्व का पहला दिन होलिका दहन का दिन कहलाता है। इस दिन चौराहों पर व जहाँ कहीं अग्नि के लिए लकड़ी एकत्र की गई होती है, वहाँ होली जलाई जाती है। इसमें लकड़ियाँ और उपले प्रमुख रूप से होते हैं। कई स्थलों पर होलिका में भरभोलिए जलाने की भी परंपरा है। भरभोलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं। होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए। लकड़ियों व उपलों से बनी इस होली का दोपहर से ही विधिवत पूजन आरंभ हो जाता है। घरों में बने पकवानों का यहाँ भोग लगाया जाता है। दिन ढलने पर ज्योतिषियों द्वारा निकाले मुहूर्त पर होली का दहन किया जाता है। इस आग में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के होले को भी भूना जाता है। होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। यह बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक है। गाँवों में लोग देर रात तक होली के गीत गाते हैं तथा नाचते हैं।
होली से अगला दिन धूलिवंदन कहलाता है। इस दिन लोग रंगों से खेलते हैं। सुबह होते ही सब अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने निकल पड़ते हैं। गुलाल और रंगों से सबका स्वागत किया जाता है। लोग अपनी ईर्ष्या-द्वेष की भावना भुलाकर प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं तथा एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। इस दिन जगह-जगह टोलियाँ रंग-बिरंगे कपड़े पहने नाचती-गाती दिखाई पड़ती हैं। बच्चे पिचकारियों से रंग छोड़कर अपना मनोरंजन करते हैं। सारा समाज होली के रंग में रंगकर एक-सा बन जाता है। रंग खेलने के बाद देर दोपहर तक लोग नहाते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर सबसे मिलने जाते हैं। प्रीति भोज तथा गाने-बजाने के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।
होली के दिन घरों में खीर, पूरी और पूड़े आदि विभिन्न व्यंजन पकाए जाते हैं। इस अवसर पर अनेक मिठाइयाँ बनाई जाती हैं जिनमें गुझियों का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। बेसन के सेव और दहीबड़े भी सामान्य रूप से उत्तर प्रदेश में रहने वाले हर परिवार में बनाए व खिलाए जाते हैं। कांजी, भांग और ठंडाई इस पर्व के विशेष पेय होते हैं। पर ये कुछ ही लोगों को भाते हैं। इस अवसर पर उत्तरी भारत के प्रायः सभी राज्यों के सरकारी कार्यालयों में अवकाश रहता है, पर दक्षिण भारत में उतना लोकप्रिय न होने की वज़ह से इस दिन सरकारी संस्थानों में अवकाश नहीं रहता ।
भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में भिन्नता के साथ मनाया जाता है। ब्रज की होली आज भी सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। बरसाने की लठमार होली काफ़ी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएँ उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। इसी प्रकार मथुरा और वृंदावन में भी १५ दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है। कुमाऊँ की गीत बैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियाँ होती हैं। यह सब होली के कई दिनों पहले शुरू हो जाता है। हरियाणा की धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है। बंगाल की दोल जात्राचैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। जलूस निकलते हैं और गाना बजाना भी साथ रहता है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र की रंग पंचमी में सूखा गुलाल खेलने, गोवा के शिमगो में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा पंजाब के होला मोहल्ला में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है। तमिलनाडु की कमन पोडिगई मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंतोतसव है जबकि मणिपुर के याओसांग में योंगसांग उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है। दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है, छत्तीसगढ़ की होरी में लोक गीतों की अद्भुत परंपरा है और मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है भगोरिया, जो होली का ही एक रूप है। बिहार का फगुआ जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है और नेपाल की होली, में इस पर धार्मिक व सांस्कृतिक रंग दिखाई देता है। इसी प्रकार विभिन्न देशों में बसे प्रवासियों तथा धार्मिक संस्थाओं जैसे इस्कॉन या वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में अलग अलग प्रकार से होली के शृंगार व उत्सव मनाने की परंपरा है जिसमें अनेक समानताएँ और भिन्नताएँ हैं।
प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य में होली के अनेक रूपों का विस्तृत वर्णन है। श्रीमद्भागवत महापुराण में रसों के समूह रास का वर्णन है। अन्य रचनाओं में 'रंग' नामक उत्सव का वर्णन है जिनमें हर्ष की प्रियदर्शिका व रत्नावली[क] तथा कालिदास की कुमारसंभवम् तथा मालविकाग्निमित्रम् शामिल हैं। कालिदास रचित ऋतुसंहार में पूरा एक सर्ग ही 'वसन्तोत्सव' को अर्पित है। भारवि, माघ और अन्य कई संस्कृत कवियों ने वसन्त की खूब चर्चा की है। चंद बरदाई द्वारा रचित हिंदी के पहले महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में होली का वर्णन है। भक्तिकाल और रीतिकाल के हिन्दी साहित्य में होली और फाल्गुन माह का विशिष्ट महत्व रहा है। आदिकालीन कवि विद्यापति से लेकर भक्तिकालीन सूरदास, रहीम, रसखान, पद्माकर[ख] , जायसी, मीराबाई, कबीर और रीतिकालीन बिहारी, केशव, घनानंद आदि अनेक कवियों को यह विषय प्रिय रहा है। महाकवि सूरदास ने वसन्त एवं होली पर 78 पद लिखे हैं। पद्माकर ने भी होली विषयक प्रचुर रचनाएँ की हैं। इस विषय के माध्यम से कवियों ने जहाँ एक ओर नितान्त लौकिक नायक नायिका के बीच खेली गई अनुराग और प्रीति की होली का वर्णन किया है, वहीं राधा कृष्ण के बीच खेली गई प्रेम और छेड़छाड़ से भरी होली के माध्यम से सगुण साकार भक्तिमय प्रेम और निर्गुण निराकार भक्तिमय प्रेम का निष्पादन कर डाला है। सूफ़ी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया, अमीर खुसरो और बहादुर शाह ज़फ़र जैसे मुस्लिम संप्रदाय का पालन करने वाले कवियों ने भी होली पर सुंदर रचनाएँ लिखी हैं जो आज भी जन सामान्य में लोकप्रिय हैं। आधुनिक हिंदी कहानियों प्रेमचंद की राजा हरदोल, प्रभु जोशी की अलग अलग तीलियाँ, तेजेंद्र शर्मा की एक बार फिर होली, ओम प्रकाश अवस्थी की होली मंगलमय हो तथा स्वदेश राणा की हो ली में होली के अलग अलग रूप देखने को मिलते हैं। भारतीय फ़िल्मों में भी होली के दृश्यों और गीतों को सुंदरता के साथ चित्रित किया गया है। इस दृष्टि से शशि कपूर की उत्सव, यश चोपड़ा की सिलसिला, वी शांताराम की झनक झनक पायल बाजे और नवरंग इत्यादि उल्लेखनीय हैं।
भारतीय शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक तथा फ़िल्मी संगीत की परम्पराओं में होली का विशेष महत्व है। शास्त्रीय संगीत में धमार का होली से गहरा संबंध है, हाँलाँकि ध्रुपद, धमार, छोटे व बड़े ख्याल और ठुमरी में भी होली के गीतों का सौंदर्य देखते ही बनता है। कथक नृत्य के साथ होली, धमार और ठुमरी पर प्रस्तुत की जाने वाली अनेक सुंदर बंदिशें जैसे चलो गुंइयां आज खेलें होरी कन्हैया घर आज भी अत्यंत लोकप्रिय हैं। ध्रुपद में गाये जाने वाली एक लोकप्रिय बंदिश है खेलत हरी संग सकल, रंग भरी होरी सखी। भारतीय शास्त्रीय संगीत में कुछ राग ऐसे हैं जिनमें होली के गीत विशेष रूप से गाए जाते हैं। बसंत, बहार, हिंडोल और काफ़ी ऐसे ही राग हैं। होली पर गाने बजाने का अपने आप वातावरण बन जाता है और जन जन पर इसका रंग छाने लगता है। उपशास्त्रीय संगीत में चैती, दादरा और ठुमरी में अनेक प्रसिद्ध होलियाँ हैं। होली के अवसर पर संगीत की लोकप्रियता का अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि संगीत की एक विशेष शैली का नाम ही होली हैं, जिसमें अलग अलग प्रांतों में होली के विभिन्न वर्णन सुनने को मिलते है जिसमें उस स्थान का इतिहास और धार्मिक महत्व छुपा होता है। जहां ब्रजधाम में राधा और कृष्ण के होली खेलने के वर्णन मिलते हैं वहीं अवध में राम और सीता के जैसे होली खेलें रघुवीरा अवध में। राजस्थान के अजमेर शहर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर गाई जाने वाली होली का विशेष रंग है। उनकी एक प्रसिद्ध होली है आज रंग है री मन रंग है,अपने महबूब के घर रंग है री। इसी प्रकार शंकर जी से संबंधित एक होली में दिगंबर खेले मसाने में होली कह कर शिव द्वारा श्मशान में होली खेलने का वर्णन मिलता हैं। भारतीय फिल्मों में भी अलग अलग रागों पर आधारित होली के गीत प्रस्तुत किये गए हैं जो काफी लोकप्रिय हुए हैं। 'सिलसिला' के गीत रंग बरसे भीगे चुनर वाली, रंग बरसे और 'नवरंग' के आया होली का त्योहार, उड़े रंगों की बौछार, को आज भी लोग भूल नहीं पाए हैं।
होली रंगों का त्योहार है, हँसी-खुशी का त्योहार है, लेकिन होली के भी अनेक रूप देखने को मिलते है। प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन, भांग-ठंडाई की जगह नशेबाजी और लोक संगीत की जगह फ़िल्मी गानों का प्रचलन इसके कुछ आधुनिक रूप हैं। लेकिन इससे होली पर गाए-बजाए जाने वाले ढोल, मंजीरों, फाग, धमार, चैती और ठुमरी की शान में कमी नहीं आती। अनेक लोग ऐसे हैं जो पारंपरिक संगीत की समझ रखते हैं और पर्यावरण के प्रति सचेत हैं। इस प्रकार के लोग और संस्थाएँ चंदन, गुलाबजल, टेसू के फूलों से बना हुआ रंग तथा प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परंपरा को बनाए हुए हैं, साथ ही इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान भी दे रहे हैं। रासायनिक रंगों के कुप्रभावों की जानकारी होने के बाद बहुत से लोग स्वयं ही प्राकृतिक रंगों की ओर लौट रहे हैं। होली की लोकप्रियता का विकसित होता हुआ अंतर्राष्ट्रीय रूप भी आकार लेने लगा है। बाज़ार में इसकी उपयोगिता का अंदाज़ इस साल होली के अवसर पर एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठान केन्ज़ोआमूर द्वारा जारी किए गए नए इत्र होली है से लगाया जा सकता है।
Holi, or Holli (Hindi: होली), is a spring religious festival celebrated by Hindus. It is primarily observed in India, Nepal, Sri Lanka,and countries with large Indic diaspora populations, such as Suriname, Malaysia, Guyana, South Africa, Trinidad, United Kingdom, United States, Mauritius, and Fiji. In West Bengal and Orissa of India it is known as Dolyatra (Doul Jatra) (Bengali: দোলযাত্রা), or Basanta-Utsav ("spring festival")(Bengali: বসন্তোৎসব), . The most celebrated Holi is that of the Braj region, in locations connected to the god Krishna: Mathura, Vrindavan, Nandagaon, and Barsana. These places have become tourist destinations during the festive season of Holi, which lasts here to up to sixteen days.
The main day, Holi, also known as Dhuli Vandana in Sanskrit, also Dhulheti, Dhulandi or Dhulendi, is celebrated by people throwing coloured powder and coloured water at each other. Bonfires are lit the day before, also known as Holika Dahan (burning of Holika) or Chhoti Holi (little Holi). The bonfires are lit in memory of the miraculous escape that young Prahlad accomplished when Demoness Holika, sister of Hiranyakashipu, carried him into the fire. Holika was burnt but Prahlad, a staunch devotee of god Vishnu, escaped without any injuries due to his unshakable devotion. Holika Dahan is referred to as Kama Dahanam in South India.
Holi is celebrated at the end of the winter season on the last full moon day of the lunar month Phalguna (February/March), (Phalgun Purnima), which usually falls in the later part of February or March. In 2009, Holi (Dhulandi) was on March 11 and Holika Dahan was on March 10. In 2010, Holi was on March 1 and Holika Dahan was on February 28.
In 2011, Holi was on March 20 and Holika Dahan was on March 19.
Rangapanchami occurs a few days later on a Panchami (fifth day of the full moon), marking the end of festivities involving colours.
In Vaishnava Theology, Hiranyakashipu is the great king of demons, and he had been granted a boon by Brahma, which made it almost impossible for him to be killed. The boon was due to his long penance, after which he had demanded that he not be killed "during day or night; inside the home or outside, not on earth or in the sky; neither by a man nor an animal; neither by astra nor by shastra". Consequently, he grew arrogant and attacked the Heavens and the Earth. He demanded that people stop worshipping Gods and start praying him.
Despite this, Hiranyakashipu's own son, Prahlada, was a devotee of Lord Vishnu. In spite of several threats from Hiranyakashipu, Prahlada continued offering prayers to Lord Vishnu. He was poisoned but the poison turned to nectar in his mouth. He was ordered to be trampled by elephants yet remained unharmed. He was put in a room with hungry, poisonous snakes and survived. All of Hiranyakashipu's attempts to kill his son failed. Finally, he ordered young Prahlada to sit on a pyre on the lap of his demoness sister, Holika, who could not die because she also had a boon which would prevent fire from burning her. Prahlada readily accepted his father's orders, and prayed to Vishnu to keep him safe. When the fire started, everyone watched in amazement as Holika burnt to death, while Prahlada survived unharmed, the burning of Holika is celebrated as Holi.
Radha and the Gopis celebrating Holi, with accompaniment of music instruments
Later Lord Vishnu came in the form of a Narasimha (who is half-man and half-lion) and killed Hiranyakashipu at dusk (which was neither day nor night), on the steps of the porch of his house (which was neither inside the house nor outside) by restraining him on his lap (which is neither in the sky nor on the earth) and mauling him with his claws (which are neither astra nor shastra).
In Vrindavan and Mathura, where Lord Krishna grew up, the festival is celebrated for 16 days (until Rangpanchmi) in commemoration of the divine love of Radha for Krishna. Lord Krishna is believed to have popularized the festival by playing pranks on the gopis here. Krishna is believed to have complained to his mother about the contrast between his dark skin complexion and Radha's (Shakti or energy that drives the world) fair skin complexion. Krishna's mother decided to apply colour to Radha's face. The celebrations officially usher in spring, the celebrated season of love.
There is alternative story detailing the origin of Holi. This story is about Kamadeva, a god of love. Kama's body was destroyed when he shot his weapon at Shiva in order to disrupt his meditation and help Parvati to marry Shiva. Shiva then opened his third eye, the gaze of which was so powerful that Kama's body was reduced to ashes. For the sake of Kama's wife Rati (passion), Shiva restored him, but only as a mental image, representing the true emotional and spiritual state of love rather than physical lust. The Holi bonfire is believed to be celebrated in commemoration of this event.
Though there has been references to a festival like this in sanskrit texts like ratnavali where people sprayed coloured waters using bamboo syringes,the origin of the modern holi festival has been traced to ancient Bengal. It was a gaudiya vaishnav festival, in accordance to Vaishnaviya Tantra. People went to Krishna temples, applied red colour to the idol and then distributed the red coloured powder or Abir along with malpua prasad to family and friends. Red signified the colour of passion and Lord Krishna is the king of desires. The ritual signified that all our desires should be diverted for the attainment of Krishna and for the well being of society.
In some cultures though,the ritual of burning wood and leaves on the full moon night already existed. This ritual was to signify the end of winter and full advent of spring. Old wood and leaves that had fallen were burnt to signify that it is time for new leaves and flowers.People later smeared their bodies with ash. Later, however, the story of Holika Dahan has been asociated with this ritual.
The earliest textual reference to the celebration of Holi is found in the 7th century Sanskrit drama, Ratnavali.Certainly there are perennial rituals attached to Holi: the first is smearing of coloured powder on each other, and throwing coloured and scented water at each time
Regional rituals and celebrations
Dol-Purnima, the festival of colour is celebrated with great festivity and joy. On this day, people come out wearing pure white clothes and gather together in a common place where they play it with gay abandon.
India
Lath mar Holi being played in Barsana, Uttar Pradesh
Uttar Pradesh
See also: Lath mar Holi
Barsana is jaiprakash the place to be at the time of Holi. Here the famous Lath mar Holi is played in the sprawling compound of the Radha Rani temple. Thousands gather to witness the Lath Mar holi when women beat up men with sticks as those on the sidelines become hysterical, sing Holi Songs and shout Sri Radhey or Sri Krishna. The Holi songs of Braj mandal are sung in pure Braj Bhasha.
Holi played at Barsana is unique in the sense that here women chase men away with sticks. Males also sing provocative songs in a bid to invite the attention of women. Women then go on the offensive and use long staves called lathis to beat men folk who protect themselves with shields.
In Mathura, the birth place of Lord Krishna, and in Vrindavan this day is celebrated with special puja and the traditional custom of worshipping Lord Krishna, here the festival last for sixteen days. All over the Braj region and its nearby places like Hathras, Aligarh, Agra the Holi is celebrated in more or less same way as in Mathura, Vrindavan and Barsana.
In Gorakhpur, the northeast district of Uttar Pradesh, this day is celebrated with special puja in the morning of Holi day. This day is considered to be the happiest and colorful day of the year promoting the brotherhood among the people. This is known as "Holi Milan" in which people visit every house and sing holi song and express their gratitude by applying colored powder (Abeer). Holi is also considered as the end of the year as it occurs on the last day of last Hindu calendar month Phalgun. People also kickoff for the next year planning with new year Hindu calendar (Panchang) at the evening of Holi.
Holi celebrations, Pushkar, Rajasthan.
Kumaon, (Uttarakhand)
Main article: Kumauni Holi
The uniqueness of the Kumaoni Holi of the Kumaon region in Uttarakhand lies in its being a musical affair, whichever may be its form, be it the Baithki Holi, the Khari Holi and the Mahila Holi which starts from Basant Panchmi. The Baithki Holi and Khari Holi are unique in that the songs on which they are based have touch of melody, fun and spiritualism. These songs are essentially based on classical ragas. No wonder then the Baithki Holi is also known as Nirvan Ki Holi.
The Baithki Holi (बैठकी होली) begins from the premises of temples, where Holiyars (होल्यार), (the singers of Holi songs) as also the people gather to sing songs to the accompaniment of classical music.
Kumaonis are very particular about the time when the songs based on ragas should be sung. For instance, at noon the songs based on Peelu, Bhimpalasi and Sarang ragas are sung while evening is reserved for the songs based on the ragas like Kalyan, Shyamkalyan and Yaman etc.
The Khari Holi (खड़ी होली), is mostly celebrated in the rural areas of Kumaon. The songs of the Khari Holi are sung by the people, who sporting traditional white churidar payajama and kurta, dance in groups to the tune of ethnic musical instruments like the Dhol and Hurka.
The Holika made is known as Cheer (चीर) which is ceremonically made in a ceremony known as Cheer Bandhan (चीर बंधन) fifteen days before Dulhendi. The Cheer is a bonfire with a green Paiya tree branch in the middle. The Cheer of every village and mohalla is rigorously guarded as rival mohallas try to steal the others cheer.
Dulhendi known as Charadi (छरड़ी), in Kumaoni (from Chharad (छरड़), or natural colours made from flower extracts, ash and water) is celebrated with great gusto much in the same way as all across North India.[4]
Bihar
Holi being played in Hindustan College,Agra, Uttar Pradesh
Holi is celebrated with the same fervour and charm in Bihar as in rest of north India. It is known as Phagwa in the local Bhojpuri dialect. Here too, the legend of Holika is prevalent. On the eve of Phalgun Poornima, people light bonfires. They put dung cakes, wood of Araad or Redi tree and Holika tree, grains from the fresh harvest and unwanted wood leaves in the bonfire. Following the tradition people also clean their houses for the day.
At the time of Holika people assemble near the fire. The eldest member or a purohit initiates the lighting. He then smears others with colour as a mark of greeting. Next day the festival is celebrated with colours and lot of frolic.
Children and youths take extreme delight in the festival. Though the festival is usually played with colours at some places people also enjoy playing holi with mud. Folk songs are sung at high pitch and people dance to the tune of dholak and the spirit of Holi.
Intoxicating bhang is consumed with a variety of mouth watering delicacies such as pakoras and thandai to enhance the mood of the festival. Vast quantities of liquor are consumed alongside ganja and bhang, which is sometimes added to foodstuffs.
Bengal
On the Dol Purnima day in the early morning, the students dress up in saffron-coloured clothes and wear garlands of fragrant flowers. They sing and dance to the accompaniment of musical instruments like ektara, dubri, veena, etc. Holi is known by the name of 'Dol Jatra', 'Dol Purnima' or the 'Swing Festival'. The festival is celebrated in a dignified manner by placing the idols of Krishna and Radha on a picturesquely decorated palanquin which is then taken round the main streets of the city or the village. The devotees take turns to swing them while women dance around the swing and sing devotional songs. During these activities, the men keep spraying coloured water and coloured powder, abir, at them.
The head of the family, observes fast and prays to Lord Krishna and Agnidev. After all the traditional rituals are over, he smears Krishna's idol with gulal and offers "bhog" to both Krishna and Agnidev.
In Shantiniketan, Holi has a special musical flavor.
Traditional dishes include malpoa, kheer sandesh, basanti sandesh (saffron), saffron milk, payash, and related foods.
Orissa
The people of Orissa celebrate Holi in a similar manner but here the idols of Jagannath, the deity of the Jagannath Temple of Puri, replace the idols of Krishna and Radha.
Goa
Holi is a part of Goan or Konkani spring festival known as Śigmo or शिगमो in Koṅkaṇī. One of the most prominent festivals of the Konkani community in Goa, and the Konkani diaspora in the state of Karnataka, Maharashtra and Kerala. Śigmo is also known as Śiśirotsava and lasts for about a month. The color festival or Holi is a part of entire spring festival celebrations.
Holi festivities(but not Śigmo festivities), include:Holika Puja and Dahan,Dhulvad or Dhuli vandan,Haldune or offering yellow and saffron colour or Gulal to the deity.
Main article: Shigmo
Gujarat
Holi is celebrated with great fanfare in the Indian state of Gujarat. Falling on the full moon day in the month of Phalguna, Holi is a major Hindu festival and marks the agricultural season of the Rabi crop.
A bonfire is lit in the main squares of the villages and colonies. People gather around the bonfire and celebrate the event with singing and dancing, which is symbolic of the victory of good over evil. Tribals of Gujarat celebrate Holi with great enthusiasm and also dance around the fire.
In Western India, Ahmedabad in Gujarat, a pot of buttermilk is hung high on the streets and young boys try to reach it and break it by making human pyramids. The girls try to stop them by throwing colored water on them to commemorate the pranks of Krishna and cowherd boys to steal butter and 'gopis' while trying to stop the girls. The boy who finally manages to break the pot is crowned the Holi King. Afterwards, the men, who are now very colorful men, go out in a large procession to "alert" people of the Krishna's possible appearance to steal butter from their homes.
In some places, there is a custom in the undivided Hindu families that the women of the families beat their brother-in-law with her sari rolled up into a rope in a mock rage as they try to drench them with colours, and in turn, the brothers-in-law bring sweetmeats to her in the evening.
Maharashtra
In Maharashtra, Holi is mainly associated with the burning of Holika. Holi Paurnima is also celebrated as Shimga. A week before the festival, youngsters go around the community, collecting firewood and money. On the day of Holi, the firewood is arranged in a huge pile at a clearing in the locality. In the evening, the fire is lit. Every household makes an offering of a meal and desert to the fire god. Puran Poli is the main delicacy and children shout "Holi re Holi puranachi poli". Shimga is associated with the elimination of all evil. The color celebrations here traditionally take place on the day of Rangapanchami, unlike in North India where it is done on the second day itself.During this festival, people are supposed to forget about any rivalries for the day.
Manipur
Manipuris celebrate Holi for six days. Here, this holiday merges with the centuries-old festival of Yaosang. Traditionally, the festival commences with the burning of a thatched hut of hay and twigs. Young children go from house to house to collect money, locally known as nakadeng (or nakatheng), as gifts on the first two days. The youths at night perform a group folk dance called 'thaabal chongba' on the full moon night of Lamta (Phalgun) along with folk songs and rhythmic beats of the indigenous drum. However, this moonlight party now has modern bands and fluorescent lamps. In Krishna temples, devotees sing devotional songs, perform dances and play with aber (gulal) wearing traditional white and yellow turbans. On the last day of the festival, large processions are taken out to the main Krishna temple near Imphal where several cultural activities are held. Since the past few decades Yaoshang, a type of Indian sport, has become common in many places of the valley, where people of all ages come out to participate in a number of sports that are somewhat altered for the holiday.
Kerala
Holi celebrations at College of Engineering, Adoor Kerala
In the Mattancherry area of Kochi, there are 22 different communities living together in harmony. The Gaud Sarawat Brahmins (GSB) who speak Konkani also celebrate Holi in Cherlai area of West Kochi instead of in theior own community. It is locally called Ukkuli in Konkani or Manjal Kuli in Malayalam. It is celebrated around the Konkani temple called Gosripuram Thirumala temple. Holi is also celebrated at some colleges in south.
Karnataka, Andhra Pradesh
Holi is celebrated with much fervor here. Unlike in the other Indian communities, it is also here a school holiday. There is also a tradition followed in rural Karnataka where children collect money and wood for weeks prior to Holi, and on Kamadhana night all the wood is put together and lit. The festival is celebrated for two days. People in north Karnataka prepare special food on this day. In Andhra Pradesh Holi is celebrated along with Basnata Panchami. In the Telangana region,especially the capital city of Hyderabad, Holi is a major festival, and the festivities and color starts appearing at least a day before the actual holiday.
Jammu & Kashmir
In Kashmir, the Kashmiris and Hindus alike celebrate Holi. Holi celebrations here pretty much fit the general definition of Holi celebrations: a high-spirited festival to mark the beginning of the harvesting of the summer crop, is marked by the throwing of colored water and powder and singing and dancing. Holi is also celebrated in great fervor in Jammu.
Holi celebrations by the India Student Association at University of New Mexico
Haryana, Rural Delhi & West UP
This region has its own variety of Holi. The festival is celebrated with great jest and enthusiasm. Dhampur is a city and a municipal board in the Bijnor district in the state of Uttar Pradesh of India. The Holi celebration in Dhampur is famous throughout the whole of Western UP.
Punjab
There is a Sikh festival of Hola Mohalla, simply Hola takes place on the first of the lunar month of Chet which usually falls in March. This, by a tradition established by Guru Gobind Singh, follows the Hindu festival of Holi by one day; Hola is the masculine form of the feminine sounding Holi. The word "Mohalla" is derived from the Arabic root hal (alighting, descending) and is a Punjabi word that implies an organized procession in the form of an army column. But unlike Holi, when people playfully sprinkle colored powder, dry or mixed in water, on each other, the Guru made Hola Mohalla an occasion for the Sikhs to demonstrate their martial skills in simulated battles.
Dhampur
In Dhampur holi—holi hawan jaloos have been organized for the last 60 years. The festival involves almost 10,000 people, including lots of bands and Jhakhi, which represent the cultural values of Holi and India.
[edit] Indian diaspora
Over the years, Holi has become an important festival in many regions wherever Indian diaspora had found its roots, be it in Africa, North America, e and closer to home in South Asia. Nepal
Holika Dahan, Kathamandu, Nepal.
In Nepal, Holi is regarded as one of the greatest festivals, as important as Dashain (also known as Dussehra in India) and Tihar or Dipawali (also known asDiwali in India). Since more than 80% of people in Nepal are Hindus, Holi, along with many other Hindu festivals, is celebrated in Nepal as a national festival and almost everyone celebrates it regardless of their religion, e.g., even Muslims celebrate it. Christians may also join in, although since Holi falls during Lent, many would not join in the festivities. The day of Holi is also a national holiday in Nepal.
People walk down their neighbourhoods to celebrate Holi by exchanging colours and spraying coloured water on one another. A popular activity is the throwing of water balloons at one another, sometimes called lola (meaning water balloon).Also a lot of people mix bhang in their drinks and food, as also done during Shivaratri. It is believed that the combination of different colours played at this festival take all the sorrow away and make life itself more colourful.
Traditional Holi
Flowers of Dhak or Palash are used to make traditional colours
The spring season, during which the weather changes, is believed to cause viral fever and cold. The playful throwing of natural coloured powders has a medicinal significance: the colours are traditionally made of Neem, Kumkum, Haldi, Bilva, and other medicinal herbs prescribed by Āyurvedic doctors.
A special drink called thandai is prepared (commonly made of almonds, pistachios, rose petals, etc.), sometimes containing bhang (Cannabis indica). For wet colours, traditional flowers of Palash are boiled and soaked in water over night to produced yellow coloured water, which also had medicinal properties. Unfortunately the commercial aspect of celebration has led to an increase in the use of synthetic colours which, in some cases, may be toxic.
As the spring-blossoming trees that once supplied the colors used to celebrate Holi have become more rare, chemically produced industrial dyes have been used to take their place in almost all of urban India. In 2001, a fact sheet was published by the groups Toxics link and Vatavaran based in Delhi on the chemical dyes used in the festival. They found safety issues with all three forms in which the Holi colors are produced: pastes, dry colors and water colors.
Their investigation found some toxic chemicals with some potentially severe health impacts. The black powders were found to contain lead oxide which can result in renal failure. Two colors were found to be carcinogenic: silver, with aluminium bromide, and red, with mercury sulphide. The prussian blue used in the blue powder has been associated with contact dermatitis, while the copper sulphate in the green has been documented to cause eye allergiese, puffiness of the eyes, or temporary blindness.A Natural Holi in Pune, an alternative to synthetic colors
The colorant used in the dry colors, also called gulals, was found to be toxic, with heavy metals causing asthma, skin diseases and temporary blindness. Both of the commonly used bases—asbestos or silica—are associated with health issues.
They reported that the wet colors might lead to skin discolouration and dermatitis due to their use of color concentrate gentian violet.
Lack of control over the quality and content of these colours is a problem, as they are frequently sold by vendors who do not know their origin.
The report galvanized a number of groups into promoting more natural celebrations of Holi. Development Alternatives, Delhi and Kalpavriksh,[Pune, The CLEAN India campaign and Society for Child Development, through its Avacayam Cooperative Campaign have both launched campaigns to help children learn to make their own colours for Holi from safer, natural ingredients. Meanwhile, some commercial companies such as the National Botanical Research Institute have begun to market "herbal" dyes, though these are substantially more expensive than the dangerous alternatives. However, it may be noted that many parts of rural India have always resorted to natural colours (and other parts of festivities more than colours) due to availability reasons.
Environmental impact
An alleged environmental issue related to the celebration of Holi is the traditional Holika Dahan bonfire, which is believed to contribute to deforestation. A local tabloid had a view published that 30,000 bonfires each burning approximately 100 kg of wood are lit in one season. Several methods of preventing this consumption of wood have been proposed, including the replacement of wood with waste material or lighting of a single fire per community, rather than multiple smaller fires. However, the idea of lighting waste material antagonizes large sections of a certain community who take it as a Western attack to their cultures and traditions citing several examples of similar festivities elsewhere. There is also concern about the large scale wastage of water and water-pollution due to synthetic colors during Holi celebration.
Influence on popular culture
In the music video for their song "The Catalyst.", American rock band Linkin Park incorporated scenes of band members throwing powdered color at one another. The videos director, band turntablist Joe Hahn, identifies Holi as a direct influence on the visual style of the video. Hahn states that "The irony of making the video was that the inspiration for the colors came from the Color Festival in India called Holi." Mr Hahn further elaborates on the religious significance of the colors, "People collect these pigments throughout the year to release them in this festival as a celebration of life and tribute to Vishnu."
The holi festival was featured as a RoadBlock challenge in the popular CBS reality television show The Amazing Race 13, episode 7.
The Ke$ha music video for the song "Take It Off" features powdered colored dyes similar to those used to celebrate Holi.
On May 31, 2007, the independent film, Outsourced, premiered at the Seattle International Film Festival. The plot of the film details the story of Todd Anderson, an American call center novelty products salesman (Josh Hamilton) as he heads to India to train his replacement after his entire department is outsourced to a new, much cheaper call center in Gharapuri, India. Todd soon discovers that in order to successfully train his new charges, he must first learn about the culture of the workers. Among the many customs and traditions Todd encounters in his education of India is the celebration of Holi. The film beautifully captures the spirit of joy and playfulness that surrounds this colorful celebration of life and the onset of Spring.
The March 17th, 2011 episode of the NBC series based on the film of the same name, Outsourced, entitled "Todd's Holi War", takes a more sitcom-oriented approach to the holiday, marking Holi's first appearance on American network television.