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06 March 2018

निष्काम भाव से याद करने वाले के ऋणी हो जाते हैं भगवान : विजयानंद गिरी

ओढ़ां की बाबा संतोखदास गऊशाला के श्री राधाकृष्ण मंदिर में दुर्लभ सत्संग सम्पन्न
ओढ़ां
ओढ़ां की श्री श्री 108 बाबा संतोखदास गऊशाला में स्थित श्री राधाकृष्ण मंदिर परिसर में आयोजित दुर्लभ सत्संग के अंतिम दिन ऋषिकेश से आमंत्रित स्वामी विजयानंद गिरी ने कहा कि भगवान ने जीव को सबसे श्रेष्ठ मानव जीवन प्रदान कर स्वतंत्र बना दिया लेकिन जीव अपने रचयिता से विमुख और संसार के सम्मुख हो दुखों से ग्रस्त हो गया।
जो प्रभु के सम्मुख रहता है या उसकी शरण में हो जाता है उसकी चिंता वे स्वयं करते हैं तथा जीव निर्भय, निश्चिंत, निसंग और नि:संकोच हो जाता है। उन्होंने बताया कि जय और पराजय सांसारिक मार्ग में आती हैं परमार्थ के मार्ग में तो जय ही जय होती है क्योंकि प्रभु परमार्थी के वश में हो जाते हैं। प्रभु से कुछ मांगे बिना निष्काम भाव से उसको याद करो तो वे भक्त के ऋणी हो जाते हैं तथा उसका ऋण उतारने को उतावले रहते हैं। जैसे मंदिर आने वाले एक भक्त जब प्रभु से कुछ नहीं मांगा तो प्रभु उसके ऋणी हो गए तथा उससे मुंह छिपाने लगे अर्थात उस भक्त को भगवान की मूर्ति का चेहरा दिखना बंद हो गया जबकि दूसरे सभी बोलते देखो कितनी सुंदर प्रतिमा है। इस बात को लेकर भक्त की व्याकुलता को देखते हुए प्रभु उसका ऋण उतारने का प्लान बनाया तथा एक दिन भगवान रास्ते में कोढ़ी बनकर बैठ गए और उस भक्त के पांव पकड़कर बोले कि एक बार बोल दो ये कोढ़ी ठीक हो जाए। भक्त बोला कि जिस अभागे को प्रभु प्रतिमा में भी दर्शन नहीं देते उसके बोलने से क्या होगा। कोढ़ी रूपी भगवान बोले बस एक बार बोल दो। भक्त ने पीछा छुड़ाने हेतु बोल दिया कि कोढ़ ठीक हो जाए, इस पर चमत्कार हो गया, कोढ़ी तुरंत ठीक हो गया तथा भक्त को प्रतिमा के मुख दर्शन भी होने लगा अर्थात उसके ऋण से मुक्त होकर भगवान उसको मुंह दिखाने के काबिल हो गए थे।
प्रभु की कृपा पाने का अचूक नुस्खा देते हुए स्वामी जी ने कहा कि प्रभु से कुछ मांगते समय दृष्टि हमेशा प्रभु की दयालुता पर रखो और अपने कर्म को नजरअंदाज कर दो। जैसे भरत मिलाप से पूर्व श्रीराम के पास जाते समय जब भरत को माता कैकई के कर्म स्मरण हो आए तो उसकी चाल में धीमापन आ गया लेकिन जब उसने प्रभु के कृपालु स्वभाव का स्मरण किया तो उसके पांव पुन: तेजी के साथ उठने लगे अर्थात सावधान प्रभु के समक्ष जाते समय अपने कर्मों से ध्यान हटाकर नजर को हमेशा प्रभु के दयालु स्वभाव पर केंद्रित रखो। इस अवसर पर क्षेत्रवासियों की ओर से अमर सिंह गोदारा ने स्वामी जी का धन्यवाद ज्ञापित किया। सत्संग समापन के उपरांत स्वामी जी द्वारका जाने के लिए रवाना हो गए। इस मौके पर सिरसा, ऐलनाबाद, बालासर, नुहियांवाली, तलवाड़ा और कालांवाली आदि अनेक स्थानों से आए श्रद्धालुओं सहित पवन गर्ग, जोतराम शर्मा, मंदर सिंह सरां, अमर सिंह गोदारा, नरेंद्र मल्हान, महावीर गोदारा, हरीराम गोयल, रामकुमार गोदारा, सुरेंद्र बांसल, सुधीर सैन, रतनलाल, इंद्रसैन व सूरजभान कालांवाली, दलीप सोनी, राजेंद्र नेहरा व महेंद्र सिंह नुहियांवाली और अनेक महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।

छायाचित्र: ओढ़ां गऊशाला में आयोजित सत्संग में उपस्थित महिला श्रद्धालु।

सुख, मान बड़ाई, आदर सत्कार मानव के लिए घातक हैं : विजयानंद गिरी

ओढ़ां की बाबा संतोखदास गऊशाला के श्री राधाकृष्ण मंदिर में दुर्लभ सत्संग
ओढ़ां
ओढ़ां की श्री श्री 108 बाबा संतोखदास गऊशाला में स्थित श्री राधाकृष्ण मंदिर परिसर में आयोजित दुर्लभ सत्संग के दौरान स्वामी विजयानंद गिरी ने कहा कि अच्छा भोजन तो कहीं भी मिल जाएगा लेकिन उसके लिए भूख का होना आवश्यक है क्योंकि यदि भूख नहीं तो भोजन किस काम का, अत: अपने अंदर प्रभु को पाने की वैसी भूख पैदा करो जैसी 600 वर्ष पूर्व मीरां बाई ने की थी। प्रभु के प्रेम में मीरां का निंद्रा, विषय भोग, हंसी, जगतप्रीत और मान बड़ाई से मोह भंग हो गया था।

उक्त 5 लक्षण जब आपमें भी दिखाई देने लगें तो समझ लेना कि आपने प्रभु को पा लिया है। इन पांचों से मोह ही आपके और प्रभु के मिलन में बाधा है अन्यथा भगवान तो इस जग के कण कण में विराजमान हैं तथा ब्रह्मांड में सुई की नोक बराबर भी स्थान ऐसा नहीं जहां भगवान न हों।
स्वामी जी ने कहा कि संसार निरंतर नाश के प्रवाह में प्रवाहित हो रहा है, इसीलिए संसार को नाशवान कहा गया है। बेटा मां का पुत्र होता है लेकिन जब वो मां से कहता है कि मां मैं तेरा बेटा हूं तो एक जन्म की मां प्रसन्न होकर उसे गले से लगा लेती है। भगवान तो हमारी जन्म जन्म की मां है अत: जीव जब भगवान को कहता है मैं तेरा हूं तो भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। वे इतने दयालु हैं कि मात्र याद करने से ही प्रसन्न हो जाते हैं वे मनुष्य से मात्र ये सुनने को व्याकुल रहते हैं कि मैं तेरा हूं और आप मेरे। आपको जितनी खुशी संतान से सुख पाकर मिलती है उससे भी ज्यादा खुशी भगवान को तब मिलती है जब आप उन्हें याद करते हैं। उन्होंने कहा कि मानव जीवन सुख भोगने के लिए नहीं मिला क्योंकि सुख चाहने वाला कभी साधक हो ही नहीं हो सकता। सुख, मान बड़ाई, आदर सत्कार आदि मनुष्य के लिए बहुत घातक हैं, इन सबका त्याग कर दो तो इसी जन्म में कल्याण संभव है।
स्वामी जी ने बताया कि दो विभाग हैं एक करने का दूसरा होने का। करना मनुष्य का काम है और होना भगवान के हाथ, इसलिए हर काम सावधानी के साथ सही करो तथा जो होता है उसमें प्रसन्न हो जाओ। जैसे यदि कहीं जाते हो तो अपने घर को अच्छे से चैक करके सावधानी से ताला लगाकर जाओ और यदि आपके जाने के बाद घर में चोरी हो जाए तो दुखी होने की बजाय प्रसन्न हो जाओ कि वाह प्रभु बड़ी कृपा करदी आपने। क्योंकि भगवान जो भी करते हैं सब अच्छा ही करते हैं तथा चोरी होने में भी अप्रत्यक्ष रूप से आपकी भलाई ही छुपी रहती है जिसके दूरगामी परिणाम आपको बताते हैं कि भगवान ने अच्छा ही किया था। इस मौके पर सिरसा, ऐलनाबाद, बालासर, नुहियांवाली, तलवाड़ा और कालांवाली आदि अनेक स्थानों से आए श्रद्धालुओं सहित पवन गर्ग, जोतराम शर्मा, मंदर सिंह सरां, अमर सिंह गोदारा, नरेंद्र मल्हान, महावीर गोदारा, हरीराम गोयल, रामकुमार गोदारा, सुरेंद्र बांसल, सुधीर सैन, रतनलाल, इंद्रसैन व सूरजभान कालांवाली, दलीप सोनी, राजेंद्र नेहरा व महेंद्र सिंह नुहियांवाली और अनेक महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।

छायाचित्र: ओढ़ां गऊशाला में आयोजित सत्संग में उपस्थित महिला श्रद्धालु।