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27 February 2018

संसार की नि:स्वार्थ सेवा करने वालों का कल्याण निश्चित : स्वामी विजयानंद गिरी

ओढ़ां की बाबा संतोखदास गऊशाला के श्री राधाकृष्ण मंदिर में दुर्लभ सत्संग 
ओढ़ां
ओढ़ां की श्री श्री 108 बाबा संतोखदास गऊशाला में स्थित श्री राधाकृष्ण मंदिर परिसर में आयोजित दुर्लभ सत्संग के दौरान स्वामी विजयानंद गिरी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि शरीर और आप अलग अलग हो। यह शरीर माता पिता का पुत्र है लेकिन आप प्रभु के पुत्र हो। माता पिता द्वारा निर्मित ये शरीर यहीं पैदा हुआ और यहीं नष्ट हो जाएगा अर्थात शरीर जड़ है और उसमें निवास कर रही आत्मा चेतन है। निरंतर बदलता रहने वाला ये शरीर शिशु, युवा और वृद्ध रूप में अलग अलग दिखता है लेकिन आप जो बचपन में थे अब भी वही हैं। शरीर जन्म लेता है और शरीर ही मरता है आत्मा कभी नहीं मरती। इस शरीर के मरने के बाद आत्मा पुनर्जन्म लेकर किसी दूसरे शरीर में रहने लगती है।
स्वामी जी ने कहा कि सुख अथवा दुख वही भोगते हैं जो शरीर से अपने संबंध को मान देहाभिमान से ग्रसित होकर कहते हैं ये शरीर मैं हूं, ये शरीर मेरा है और ये शरीर मेरे लिए है। जिस क्षण हम समझ जाएं कि इस संसार में पंच महाभूतों से निर्मित ये शरीर संसार का है और संसार के लिए है तथा इसका उपयोग हमें संसार के हित में ही करना है तो उसी क्षण हमारा कल्याण निश्चित हो जाता है। वाली वध के उपरांत श्रीराम के समक्ष पहुंची बाली की पत्नी तारा से प्रभु बोले यदि ये शरीर बाली है तो ये आपके समक्ष है अत: व्यथित क्यों होती हो और यदि इसमें अब तक निवास कर रहा आत्मा बाली था तो उसके लिए दुख क्यों जो कभी नष्ट होता ही नहीं? तारा उसी क्षण व्यथाविहीन हो गई। उन्होंने कहा कि मर जाने का भाव पशु बुद्धि है और देहाभिमान विवेक विरोधी तथा शरीर से किया हुआ साधन भी श्रेष्ठ नहीं होता अत: शरीर की बजाय स्वयं से साधन करो जो असीम है।
स्वामी जी ने कहा कि स्थूल शरीर से क्रिया, सुक्ष्म शरीर से चिंतन और कारण शरीर से समाधि आपके लिए नहीं। आप समय, समझ, सामर्थ और सामग्री के आधार पर सबकी नि:स्वार्थ सेवा करो तो कोई कारण ही नहीं कि आपका कल्याण न हो। आपके द्वारा संसार की नि:स्वार्थ सेवा प्रभु को आपका कल्याण करने को व्याकुल कर देगी अत: स्वयं को लोकहित में समर्पित करदो। सेवा का शुभारंभ अपने घर से करने की सीख देते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा न हो घर में माता पिता पानी को तरसते रहें और आप मान बड़ाई हेतु लोगों की सेवा में लग जाओ। क्रिया और पदार्थ से सेवा सीमित होती है लेकिन हृदय का भाव असीम होता है अत: प्रभु से सबके सुखी होने, निरोग होने तथा मंगल होने की कामना करो तो आपके सुख की गारंटी भगवान लेंगे। अंत में उन्होंने कहा कि हिरण्याकशिपू और हिरण्याक्श की कठोर तपस्या इसलिए व्यर्थ चली गई क्योंकि वो संसार के लिए नहीं अपने लिए की गई थी। इस मौके पर पवन गर्ग ओढ़ां, जोतराम शर्मा, मंदर सिंह सरां, अमर सिंह गोदारा, भूपसिंह मल्हान, महावीर गोदारा, विनोद गोयल, पलविंद्र चहल, रामकुमार गोदारा, इंद्रसैन व सूरजभान कालांवाली, दलीप सोनी, राजेंद्र नेहरा व महेंद्र सिंह नुहियांवाली, मक्खन सिंह, अजयपाल और कालूराम सहित क्षेत्र के अन्य गांवों से आए श्रद्धालु तथा काफी संख्या में महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।

आईटीआई अनुदेशकों ने मांगों के लिए गेट मीटिंग कर किया रोष प्रदर्शन

ओढ़ां
आईटीआई अनुबंधित एवं नियमित अनुदेशक संयुक्त कार्य समिति के बैनर तले आईटीआई ओढ़ां के अनुदेशकों ने अपनी लंबित मांगों के समर्थन में भोजन अवकाश के समय गेट मीटिंग कर रोष प्रदर्शन किया।
इस अवसर पर कर्मचारी नेता राकेश कुमार ने कहा कि उचित चयन प्रक्रिया से चयनित विभाग में वर्षों से कार्यरत अनुबंधित अनुदेशकों को सरकार नियमित भर्ती करने से पूर्व पॉलिसी बनाकर नियमित करे तथा हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग द्वारा जारी विज्ञापन वापिस लिया जाए। इसके अतिरिक्त अनुबंधित अनुदेशकों को मंहगाई भत्ते, एरियर तथा एलटीसी का अबिलंब भुगतान किया जाए। उन्होंने कहा कि हरियाणा औद्योगिक प्रशिक्षण तकनीकी कर्मचारी संघ की विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिवऐके सिंह आईएएस की उपस्थिति में माननीय मुख्यमंत्री से पिछले वर्ष 18 जनवरी को आठ मुद्दों पर वार्ता हुई थी जिनमें से पांच मांगे मौके पर मानने के साथ मुख्यमंत्री महोदय ने शेष मांगों को भी लागू करने का भरोसा दिया था। लेकिन एक वर्ष से भी अधिक समय बीत जाने के उपरांत किसी भी मांग को लागू करने के लिए कोई कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है, जिससे आईटीआई के सभी कर्मचारियों में भारी रोष है। इन मानी गई मांगों में वर्ग अनुदेशक तथा प्रधानाचार्य के रिक्त पद शत प्रतिशत पदोन्नति से भरना शामिल थी। उन्होंने कहा कि सरकार अनुबंधित अनुदेशकों की सेवाएं बरकरार रखने और उन्हें पॉलिसी बनाकर नियमित करने तथा नियमित आईटीआई अनुदेशकों की गत वर्ष 18 जनवरी को मानी गई मांगों को लागू करने के संबंध में 16 मार्च से पूर्व कोई ठोस निर्णय नहीं लेती है तो आईटीआई ओढ़ां का प्रत्येक अनुदेशक 17 मार्च के फरीदाबाद महापड़ाव में भाग लेगा। इस रोष प्रदर्शन के दौरान सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने वालों में सतनाम सिंह, रंजीत कुमार, राकेश कुमार, सुरजीत कुमार, अजय, दिनेश, प्रमोद व ममता रानी मौजूद थे।

छायाचित्र: 26ओडीएन1.जेपीजी-ओढ़ां। सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते अनुदेशक।

ओढ़ां की बाबा संतोखदास गऊशाला के श्री राधाकृष्ण मंदिर में दुर्लभ सत्संग शुरू

संसार में रहते हुए सबकी सेवा करो और भगवान को अपना मानो : स्वामी विजयानंद गिरी
ओढ़ां
ओढ़ां की श्री श्री 108 बाबा संतोखदास गऊशाला में स्थित श्री राधाकृष्ण मंदिर परिसर में आयोजित दुर्लभ सत्संग का शुभारंभ करते हुए स्वामी विजयानंद गिरी ने कहा कि आपकी तरह भाग्यशाली होते हैं वे लोग जिन्हें सत्संग श्रवण का अवसर मिलता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य इसी जन्म में प्रभु मिलन जैसे महान आनंद को प्राप्त कर सकता है फिर चाहे वो महिला पुरूष, अमीर गरीब, शिक्षित अशिक्षित कोई भी क्यों ना हो तथा इसमें कोई संशय नहीं है।
स्वामी जी ने बताया कि प्रह्लाद ने अपनी माता कयादू के गर्भ में रहते ही स्वीकार कर लिया था कि ये शरीर माता पिता का है, यही कारण है कि अपने पिता हिरण्याकशिपू द्वारा उसे मारने के उद्देश्य से दी गई 52 प्रकार की यातनाएं उसने हंसते हंसते स्वीकार करली लेकिन अपने पिता से एक बार भी नहीं बोला कि ये आप क्या कर रहे हैं। प्रह्लाद का भगवान पर विश्वास इतना दृढ़ था कि उसने भगवान को सुखे पत्थर से प्रकट कर लिया। नरसिंह भगवान ने जब प्रह्लाद से कहा कि चलो पुत्र अपने धाम चले तो प्रह्लाद बोले संसार में इतने दुखी प्रणियों को छोड़कर मैं नहीं जा सकता इसलिए आप इन्हें भी साथ ले चलो। भगवान बोले ठीक है पूछ लो इनसे जो जाना चाहते हैं चलें लेकिन कोई जाने को तैयार ही नहीं हुआ क्योंकि सभी के अनेक कार्य अभी अधूरे थे जो उन्हें जाने नहीं दे रहे थे। जिस घर में हम रहते हैं वो असली नहीं नकली घर है क्योंकि सबको पता है कि इस घर से एक दिन जाना है, असली घर तो वो धाम है जहां जाकर कहीं अन्यत्र जाने की आवश्यकता ही नहीं रहती। उन्होंने कहा कि अक्सर देखा जाता है कोई कितनी भी अच्छी जगह पर चला जाए लेकिन उसके मन को शांति तभी मिलती है जब वो वापिस अपने घर पहुंच जाता है। जब नकली घर में पहुंचकर इतनी शांति मिलती है तो सोचिए अपने असली घर अर्थात प्रभु के धाम पहुंचकर तो खुशी का पारावार नहीं रहेगा।
स्वामी विजयानंद गिरी ने कहा कि मात्र 600 वर्ष पूर्व इसी कलियुग में मीराबाई ने भगवान से ऐसा संबंध जोड़ा कि उसका जड़ शरीर भी चेतन हो गया, ठीक वैसा ही संबंध भगवान से हमारा भी है लेकिन आवश्यकता मीरा जैसी लगन पैदा करने की है। भगवान ने श्रीमद्भगवद् गीता में कहा है कि संसार के सभी प्राणियों में मनुष्य उन्हें सबसे प्रिय लगता है। कलियुग में मात्र थोड़ा सा प्रयास करने पर भी प्रभु मिलन संभव है लेकिन प्रयास सच्चा होना चाहिए। इसका सबसे आसान तरीका बताते हुए उन्होंने कहा कि संसार में रहते हुए सबकी सेवा करो और भगवान को अपना मान लो। मनुष्य चाहे जैसा हो भगवान सबको मिल सकते हैं इसलिए भगवान के प्रति सच्ची लगन पैदा करो। इस मौके पर पवन गर्ग ओढ़ां, जोतराम शर्मा, मंदर सिंह सरां, अमर सिंह गोदारा, भूपसिंह मल्हान, सूरजभान कालांवाली, दलीप सोनी व महेंद्र सिंह नुहियांवाली, मास्टर हरीराम गोयल, कालूराम, सुरेंद्र बांसल सहित क्षेत्र के अन्य गांवों से आए श्रद्धालु तथा काफी संख्या में महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।