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31 March 2017

चिता मृत देह को जलाती है तथा चिंता जीवित शरीरों को जला देती है : स्वामी विजयानंद गिरी

नुहियांवाली की श्रीरामभक्त हनुमान गोशाला में श्रीरामकथा एवं दुर्लभ सत्संग

ओढ़ां
खंड के गांव नुहियांवाली में जारी श्रीरामकथा एवं दुर्लभ सत्संग के दौरान श्रीरामकथा में ऋषिकेश से कथा व्यास स्वरूपदास महाराज ने शुक्रवार को भगवान श्रीराम के माता सीता से विवाह का सुंदर वर्णन सुनाते हुए श्रद्धालुओं को भक्तिरस की फुहारों से सराबोर कर दिया। श्रद्धालुओं ने श्रीराम विवाह के उपलक्ष्य में कथास्थल पर विशेष सजावट कर वहां किसी भव्य शादी समारोह सा दृश्य प्रस्तुत कर दिया।
वहीं दूसरी ओर दुर्लभ सत्संग के दौरान स्वामी विजयानंद गिरी ने आज सभी उपस्थितजनों को चिंतामुक्त कर दिया। प्रवचन फरमाते हुए उन्होंने कहा कि चिता वो होती है जो मृत शरीरों को जलाती है तथा चिंता जीवित शरीरों को जला देती है। वर्तमान में प्राणी की चिंता ये है कि परिस्थितियां कैसे अनुकूल हों तथा प्रतिकूल ना रहें लेकिन प्रारव्ध के अनुसार जो होना है वो होकर रहेगा तथा जो नहीं होना वो कदापि नहीं होगा अत: अच्छे काम करते रहो और चिंता न करो। विश्व की सर्वोत्तम ग्रंथ गीता कहती है कि कर्म पर आपका अधिकार है परिणाम पर नहीं अत: चिंता करना जीव का नहीं भगवान का कार्य है।
स्वामी जी ने कहा कि चिंता बुद्धि को खा जाती है तथा जीव की हालत गैरेज में स्र्टाट खड़ी गाड़ी जैसी हो जाती है जो ना दौड़ते हुए भी पैट्रोल पी रही है तथा चिंतामुक्त जीव की हालत उस गाड़ी जैसी होती है जो ढलान पर जा रही है तथा चालक ने इंजन बंद कर दिया गाड़ी फिर भी दौड़ रही है। अर्थात सुखी जीवन का सरल सा उपाय ये है कि भगवान से अभी बोल दो कि हम कर्म करते हैं चिंता आप करो। उन्होंने बताया कि दो विभाग हैं एक करने का दूसरा होने का, करना हमारे हाथ में है तथा होना भगवान के हाथ में। सुखी रहने का छोटा सा मंत्र है 'करने में सावधान तथा होने में प्रसन्नÓ। जैसे हमारा काम है घर को अच्छे से ताला लगाकर जाना यदि फिर भी चोरी हो जाए तो प्रसन्न हो जाओ कि वाह प्रभु बड़ी कृपा कर दी आपने। ये हंसने का नहीं चिंतन का विषय है क्योंकि भगवान तो कभी गलत कर ही नहीं सकते अत: उस चोरी में भी अप्रत्यक्ष रूप से हमारा कल्याण निहित होता है।
स्वामी जी ने कहा कि भगवान का काम है कृपा करना, वे कृपा से बने कृपानिधान हैं। जीव कुछ भी करते समय सावधानी ये रखे कि  शास्त्रानुसार कुछ गलत न करे तथा अच्छा या बुरा जो भी हो उस पर चिंता करने की बजाय प्रसन्नता व्यक्त करते हुए प्रभु को धन्यवाद दे। अंत में स्वामी जी ने जब कहा कि अब भी किसी को चिंता है, तब एक गांववासी तपाक से बोला हां मुझे अभी भी चिंता है। वो ये कि मुझे झूठ बोलने की आदत है बहुत बार बोला है अब चिंता है कि प्रायश्चित कैसे हो। स्वामी जी बोले भरी सभा में स्वीकृति भी किसी प्रायश्चित से कम नहीं फिर भी शंका है तो सबके सामने फिर कभी झूठ न बोलने की शपथ ले लो तथा उसके उच्च स्वर में शपथ लेते ही गोशाला की फिजा तालियों की गडग़ड़ाहट से गुंज उठी। इस मौके पर प्रधान बलराम सहारण, सूरजभान, रामप्रताप, मनोज कुमार, विजय कुमार, भगवान सिंह, दुलाराम, महेंद्र सिंह दलीप सोनी और इंद्रपाल सहित महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।

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