आचार्य धर्मचंद्रदेव जी महाराज की 98 वीं जयंती पर कार्यक्रम आयोजित
ओढ़ां
आदित्य विहंगम योगी प्रथम परंपरा सद्गुरू अनंत श्री आचार्य धर्मचंद्रदेव जी महाराज की 98 वीं जयंती के उपलक्ष्य में सद्गुरू सदाफल देव ब्रह्मविद्या विहंगम योग आश्रम रोहिडांवाली में शुक्रवार को सदगुरु सदाफल देव जी और सदगुरु आचार्य धर्मचंद्रदेव जी महाराज के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया। तदुपरांत ध्वजारोहण व वैदिक हवन यज्ञ का शुभारंभ वैदिक मंत्रोचार के मध्य हुआ।
इस अवसर पर झूंसी इलाहाबाद ब्रह्मविद्या योग आश्रम से पधारे उपदेष्टा भारत रत्न और गोपाल ऋषि ने साधकों, विंहगम योग परिवार के सदस्यों, भक्त शिष्यों एवं धर्मप्रेमी सज्जनों को संबोधित करते हुये आचार्य धर्मचंद्रदेव जी का जीवन परिचय देते हुये बताया कि उन्होंने अध्यात्म के गुढ़ तत्व रहस्यों का अत्यंत सरल भाषा में स्पष्टीकरण किया है। उन्होंने बताया कि भारत की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी के उमरहां में 13-14 मई को विश्व का सबसे बड़ा ऐतिहासिक महायज्ञ आयोजित होने जा रहा है जिसमें विश्वशान्ति की स्थापना के उद्देश्य से बन रहे स्वर्वेद महामंदिर के निर्माण हेतु 21000 कुण्डीय वैदिक हवन महायज का आयोजन होने जा रहा है। स्वामी जी कहते हैं कि इस यज्ञ में आहुति देने वालों की हर मनोकामना पूर्ण होगी। उन्होंने कहा कि ईश्वर की अनंत शक्तिया पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के स्वभाव में ही परोपकार संलग्न है। इन देवों से प्रेरित होकर मनुष्य का भी यह कर्तव्य बनता है कि वह केवल स्वार्थ सिद्धि के लिए ही प्रयास न करता रहे बल्कि परोपकारमय जीवन व्यतीत करे। अग्नि में हवि डालने से वह सूक्ष्म होकर सूर्य तक फैल जाती है क्योंकि अग्नि में डाला हुआ पदार्थ कभी नष्ट नहीं होता बल्कि वह फैल जाता है। भौतिक विज्ञान का स्पष्ट नियम है कि कोई भी वस्तु तत्व नष्ट नहीं होती बल्कि रूपान्तरित होती है। अग्नि का कार्य स्थूल पदार्थ को सूक्ष्म रूप में परिवर्तित कर देना है। इससे वस्तु विस्तृत एवं गुणात्मक रूप में परिवर्तित होती है। वैदिक मंत्रोच्चारण से वातावरण शुद्ध हो दिव्य परिवेश का निर्माण होता है अत: यज्ञ संपादन पर्यावरण की दृष्टि से श्रेष्ठकर माना गया है। इस मौके पर साधक राजा राम गोदारा, धर्मपाल पटवारी, रवि थोरी और गुडग़ांव से अमर सिंह यादव सहित काफी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।
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