नुहियांवाली की श्रीरामभक्त हनुमान गोशाला में दुर्लभ सत्संग सम्पन्न
ओढ़ां
खंड के गांव नुहियांवाली की गोशाला में आयोजित दुर्लभ सत्संग के समापन पर प्रवचन फरमाते हुए स्वामी विजयानंद गिरी ने जीव के अंतिम पुरूषार्थ शरणागति का विवेचन करते हुए कहा कि भगवान अपने सहज कृपालु स्वभाव के चलते शरण में आए भक्त का घोर पाप भी क्षमा कर देते हैं।
शरणागति कर्म नहीं भाव है जो स्वतंत्रतापूर्वक किया जा सकता है लेकिन कर्म संगठन के माध्यम से और कर्मफल भविष्य में आदि मान्यताएं शरीर को लेकर हैं। मैं केवल प्रभु का और मेरे केवल प्रभु ये स्वीकृति ही शरणागति है। भगवान ने जीव को सबसे श्रेष्ठ मानव जीवन प्रदान कर स्वतंत्र बना दिया लेकिन जीव अपने रचयिता से विमुख और संसार के सम्मुख हो दुखों से ग्रस्त हो गया। जो प्रभु के सम्मुख रहता है या उसकी शरण में हो जाता है उसकी चिंता वे स्वयं करते हैं तथा जीव निर्भय, निश्चिंत, निसंग और नि:संकोच हो जाता है। जैसे शादी के बाद अजनवी पति के साथ जा रही बेटी क्या मां से कहती कि ना जाने पति रोटी दे या नहीं इसलिए दो किलो आटा साथ बांध दो? जब बेटी इतनी निश्चिंत है तो जीव के मन में अपने रचयिता के प्रति संशय क्यों?
स्वामी जी ने कहा कि जय और पराजय सांसारिक मार्ग में आती हैं परमार्थ के मार्ग में तो जय ही जय होती है क्योंकि प्रभु परमार्थी के वश में हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि प्रभु से कुछ मांगे बिना निष्काम भाव से उसको याद करो तो वे भक्त के ऋणी हो जाते हैं। प्रभु से कुछ न मांगने वाले एक भक्त को प्रभु दिखाई नहीं देते थे जबकि दूसरे सभी बोलते देखो कितनी सुंदर प्रतिमा है। इस बात को लेकर उसकी व्याकुलता पर प्रभु ने किसी भक्त के माध्यम से उसको संदेश दिया कि फलां मार्ग पर चले जाओ, भक्त चला गया तो रास्ते में भगवान कोढ़ी बनकर बैठ गए और उसके पांव पकड़कर बोले कि एक बार बोल दो ये कोढ़ी ठीक हो जाए। भक्त बोला कि मुझे भगवान प्रतिमा में भी दर्शन नहीं देते मुझ जैसे के बोलने से क्या होगा। कोढ़ी रूपी भगवान बोले बस एक बार बोल दो। भक्त ने पीछा छुड़ाने हेतु जब बोला तो चमत्कार हो गया क्योंकि कोढ़ी तुरंत ठीक हो गया तथा दर्शन भी होने लगे अर्थात उसके ऋणी भगवान उसको कुछ देकर उसको मुंह दिखाने के काबिल हो गए थे।
स्वामी जी ने प्रभु की कृपा पाने का अचूक नुस्खा देते हुए कहा कि प्रभु से कुछ मांगते समय दृष्टि प्रभु की दयालुता पर होनी चाहिए कर्म को नजरअंदाज कर दो। जैसे भरत मिलाप से पूर्व श्रीराम के पास जाते समय जब भरत को माता कैकई के कर्म स्मरण हो आए तो उसकी चाल में धीमापन आ गया लेकिन जब उसने प्रभु के कृपालु स्वभाव का स्मरण किया तो उसके पांच तेजी से उठने लगे अर्थात सावधान प्रभु के समक्ष जाते समय अपने कर्मों से ध्यान हटाकर नजर को प्रभु के दयालु स्वभाव पर रखो। इस मौके पर गोशाला प्रधान बलराम सहारण, सरपंच बाबूराम गैदर, जोतराम ओढ़ां, महेंद्र नीमिवाल, रामेश्वर कूकना, महेंद्र गैदर, ओम सुमरा, बद्रीप्रसाद गैदर, उदयसिंह राजपूत, हंसराज निमीवाल, भागाराम नेहरा, मांगेराम कूकना, अमर सिंह, कृष्ण कूकना, असीर गैदर, दुलीचंद नेहरा और सेवादारों सहित अनगिनत महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।
No comments:
Post a Comment