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17 April 2017

जो स्वयं बंधन में है, वह किसी दूसरे बंधनग्रस्त को बंधन से मुक्त कैसे करेगा ?

ब्रह्मविद्या विहंगम योग आश्रम रोहिडांवाली में मासिक सत्संग आयोजित
ओढ़ां
खंड के गांव रोहिडांवाली में स्थित ब्रह्मविद्या विहंगम योग आश्रम में मासिक सत्संग के दौरान श्रद्धालुओं के समक्ष प्रवचन पढ़ते हुए साधक राजाराम गोदारा ने कहा कि अगर किसी से पुछा जाये कि तुम कौन हो तो वह अपना नाम बताएगा कि मैं फलां व्यक्ति हूं या फलां जाति का हूं। लेकिन कभी आपने सोचा है कि हम कहते है कि यह मेरा हाथ है, यह मेरा पांव है, यह मेरा शरीर है तथा यह मेरी आंख है। उन्होंने कहा कि कभी एकांत में बैठकर सोचो कि यह सब मेरा है ये कहने वाला कौन है अर्थात मै कौन हूं। सोचने पर जवाब मिलेगा तू आत्मा है, तू जीव है, जीवात्म है, तू चाहे किसी भी जाति का हो, कोई भी भाषा बोलता हो या किसी भी धर्म का हो इससे कोई फर्क नही पड़ता है?
उन्होंने कहा कि यह जो तेरा शरीर है वह तू नही है, इस स्थूल शरीर के अन्दर सुक्ष्म शरीर, कारण, महाकारण और कैवल्य शरीर भी तू नहीं है । मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार भी तू नही है । न ही तू दस इंन्द्रियां नेत्र, कान, त्वचा, नाक या जीभ ही है और न तू हाथ, पैर, पायु, उपस्थ एवं वाणी ही है। तेरा स्वरुप अत्यंत सूक्ष्म या परमाणु से भी छोटा है। तेरे अंदर अज्ञान का आविर्भाव होने से तू अपने आप को शरीर समझ रहा है। तू अपने आप को ज्ञानी, ध्यानी, पंडित, मौलवी, गुरु या इसी प्रकार का कुछ अन्य समझ रहा है। इतना ही नहीं तूं अपने आप को परमात्मा तक मान बैठा है। यह तेरे अज्ञान भ्रम का परिणाम है कि तू एक नन्ही सी सत्ता अपने आपको समग्र सृष्टि में व्यापक ब्रह्म समझ रहा है। कैसी विडंबना है? कितना धोखा है? तू मन के प्रभाव में आकर मन मोदक से अपनी क्षुधा को तृप्त करना चाहता है। उन्होंने कहा कि हे मानव अभी भी अवसर है कि अपने आप को पहचान ले तथा अज्ञान, कर्म तथा जड़ चेतन की ग्रंथि से अपने आप को मुक्त करले, पर यह होगा कैसे? क्या अपने आप हो जाएगा? क्या अपने जैसे ही बंधनग्रस्त जीवों को अपना गुरु बनाकर उनके द्वारा तू इन बंधनो से मुक्त हो पाएगा? जो स्वयं बंधन में है, वह किसी दूसरे बंधनग्रस्त को बंधन से मुक्त कैसे करेगा ? अत: तू खोज कर उस गुरु की जो तुझे अपने आप को जानने का ज्ञान बता दे।

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