ओढ़ां
ओढ़ां की श्री श्री 108 बाबा संतोखदास गऊशाला में स्थित श्री राधाकृष्ण मंदिर परिसर में आयोजित दुर्लभ सत्संग के दौरान तीसरे दिन कथा का शुभारंभ हरि शरणम् हरी शरणम् के उच्चारण से करते हुए स्वामी विजयानंद गिरी ने कहा कि धन दौलत जायदाद तो कम ज्यादा हो सकती है लेकिन समय नहीं, समय हमारे पास सीमित है अत: शीघ्रता के साथ प्रभु को अपना मान लो जो कहीं अन्यत्र न होकर आपके भीतर ही है। उन्होंने कहा कि भगवान को पाने के लिए कहीं जाने अथवा कठिन तपस्या करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि भगवान तो भक्त की सेवा हेतु स्वयं ललायित रहते हैं, आप सच्चे दिल से पुकार कर तथा अपना मानकर तो देखें। द्रोपदी ने पुकारा तो वस्त्रावतार हो गया, बाद में द्रोपदी ने जब भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि इतनी देर क्यूं लगाई आने में तो श्रीकृष्ण बोले कि बिलंब तो आपने किया। मुझसे पूर्व आपने भीष्म पितामह और अपने पतियों को पुकारा और फिर अपने हाथों और दांतों से वस्त्र थामने का प्रयास किया, अंत में मझे पुकारा भी तो द्वारकाधीश कहा जिस कारण मुझे द्वारिका होकर आना पड़ा। स्वामी जी ने बताया कि गजराज और ग्राह में संघर्ष एक हजार वर्ष तक चला, इस दौरान हथनियां और गजराज के बच्चे भी ये सोचकर चले गए कि संर्घष जाने कब तक चलेगा, उसके बाद गजराज ने अपने बल पर ग्राह का मुकाबला किया लेकिन जब निर्बल पड़ गया तब भगवान को पुकारा तथा भगवान उसकी पुकार पर अबिलंब चल पड़े। भगवान के समान उपकार करने वाला कोई नहीं है लेकिन उन्हें सच्चे मन से पुकारना और उनकी शरण में जाना आवश्यक है। वे स्मरण मात्र और पुष्प अर्पण जैसे सरल कार्यों से प्रसन्न हो जाते हैं फिर भी वर्तमान में श्रद्धालु इस प्रकार के हो गए हैं कि कठिन उनसे होता नहीं तथा सरल वे करते नहीं तो कल्याण कैसे हो? जिस प्रकार गूंगे की बात को उसकी मां या पत्नी ही समझ सकती है बच्चे की इच्छा को उसकी मां ठीक उसी प्रकार हमारी हर बात, हर इच्छा को हम चाहे जिस भाषा अथवा अंदाज में व्यक्त करें भगवान उसे बाखूबी समझ लेते हैं बस आप भगवान पर अपनी मां जैसे विश्वास तो करके देखो हमारी हर चेष्टा का प्रभु को ज्ञान है। नरसी भक्त की पुकार पर उस समय भगवान ने उनका मुनीम बनकर 56 करोड़ का मायरा भर दिया था क्योंकि नरसी को अपने भगवान पर विश्वास था। इस मौके पर पवन गर्ग, जोतराम शर्मा, मंदर सिंह सरां, अमर सिंह गोदारा, भूपसिंह मल्हान, महावीर गोदारा, विनोद गोयल, पलविंद्र चहल, रामकुमार गोदारा, इंद्रसैन व सूरजभान कालांवाली, दलीप सोनी, राजेंद्र नेहरा व महेंद्र सिंह नुहियांवाली, मक्खन सिंह, अजयपाल, कालूराम, सतपाल, रिशव, मंगल, रमेश और रामप्रताप सहित क्षेत्र के अनेक गांवों से महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।
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