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01 March 2018

जिनके हृदय में परहित का भाव बसता है वे प्रभु को प्राप्त कर लेते हैं : विजयानंद गिरी

ओढ़ां की बाबा संतोखदास गऊशाला के श्री राधाकृष्ण मंदिर में दुर्लभ सत्संग
ओढ़ां
ओढ़ां की श्री श्री 108 बाबा संतोखदास गऊशाला में स्थित श्री राधाकृष्ण मंदिर परिसर में आयोजित दुर्लभ सत्संग के दौरान स्वामी विजयानंद गिरी ने कहा कि कलियुग में भगवान को प्राप्त करने की विधि बहुत आसान है, जिसके लिए कुछ ज्यादा करने की आवश्यकता नहीं तथा कल्याण की भी गारंटी है। उन्होंने बताया कि कल्याण हेतु प्रभु ने मनुष्य को तीन शक्तियां प्रदान की हैं जिनका सही उपयोग करके भव सागर को पार किया जा सकता है। ये शक्तियां हैं करने की, जानने की और मानने की शक्ति। करने के तहत सबकी सेवा करो, प्रभु को स्मरण रखो और किसी को दुख मत दो। दूसरी शक्ति है जानने की तो जानना ये है कि मेरा यहां कुछ नहीं तथा मुझे कुछ नहीं चाहिए। तीसरी मानने की शक्ति के तहत ये मानना कि भगवान हैं और वे मेरे हैं। लेकिन वर्तमान दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ये है कि इतना आसान काम भी करना कोई नहीं चाहता क्योंकि सबकी सेवा कौन करता फिरे? स्वामी जी ने कहा कि भगवान के समक्ष सच्चे मन से प्रार्थना तो कर सकते हैं कि हे प्रभु संसार के सभी जीवों के दुखों को दूर करदो। ध्यान रखो की आपके मन, वचन, व्यवहार या कर्म से किसी को दुख ना पहुंचे क्योंकि तन, मन और हृदय से किसी को दुख ना पहुंचाने वाले व्यक्ति के दर्शन मात्र से कष्ट दूर हो जाते हैं। 
स्वामी जी ने बताया कि भगवान कहते हैं कि जिनके हृदय में परहित का भाव बसता है वे मुझे प्राप्त कर लेते हैं अत: हमेशा दूसरों के हित में सोचो। परहित की सीख हमें जटायु देते हैं जिन्होंने सीता जी को बचाने के प्रयास में अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए लेकिन अपने जीते जी रावण को नहीं जाने दिया। ये जटायु में बसे परहित के भाव का ही प्रभाव था कि त्रिलोकी नाथ भी जटायू का सिर अपनी गोद में रख फूट फूटकर रोए। कबीर जी ने कहा था कि जब हम आए जगत में जग हंसा हम रोए, ऐसी करनी कर चलो हम हंसे जग रोए। अब उस जटायु की महानता के बारे में सोचो जिसके चले जाने पर जग ही नहीं भगवान भी रो पड़े। स्वामी जी ने कहा कि कभी असत्य मत बोलो क्योंकि झूठ बोलने के समान दुनिया में कोई पाप नहीं हैं। धर्मराज युधिष्ठर के सत्य बोलने का इतना प्रभाव था कि उनका रथ हमेशा पृथ्वी से चार अंगुल ऊपर चलता था लेकिन महाभारत के युद्ध में उनके द्वारा मात्र ये बोला जाना कि अश्वथामा मर चुका है, का इतना प्रभाव पड़ा कि उनका रथ जमीन पर आ गया था। इसलिए हमेशा सोच समझकर बोलना चाहिए ताकि मिथ्या की गुंजाइश ना रहे।
इस मौके पर पवन गर्ग, जोतराम शर्मा, मंदर सिंह सरां, अमर सिंह गोदारा, भूपसिंह मल्हान, महावीर गोदारा, विनोद गोयल, रामकुमार गोदारा, इंद्रसैन व सूरजभान कालांवाली, दलीप सोनी, राजेंद्र नेहरा व महेंद्र सिंह नुहियांवाली, मक्खन सिंह, अजयपाल, कालूराम, सतपाल, रिशव और रमेश कुमार सहित क्षेत्र के अनेक गांवों से महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।

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