भारत की प्रथम महिला होने का गौरव प्राप्त महिलाएँ
राष्ट्रपति : महामहिम प्रतिभा देवीसिंह पाटिल
प्रधानमंत्री : श्रीमती इंदिरा गांधी
एयर वाइस मार्शल : पी.वंद्योपाध्याय
इंग्लिश चैनल तैरकर पार करने वाली महिला : आरती साहा
राज्यपाल : श्रीमती सरोजिनी नायडू (उ.प्र.)
आई.पी.एस. : किरण बेदी
सयुंक्त राष्ट्र के शांति रक्षा विभाग में असैनिक पुलिस
सलाहकार के पद पर नियुक्त होने वाली महिला
(भारत एवं विश्व दोनों में) : किरण बेदी
राष्ट्ररीय कांग्रेस की अध्यक्ष : एनी बेसेंट
संघ लोक सेवा आयोग की अध्यक्ष : रोज मिलियन बैथ्यूज
नोबेल पुरस्कार विजेता : मदर टेरेसा(शांति हेतु)
मिस वर्ल्ड से सम्मानित : सुश्री रीता फारिया
मिस यूनीवर्स : सुश्री तारा चेरियन (मद्रास में वर्ष 1957)
केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री : राजकुमारी अमृतकौर
मुख्यमंत्री : सुचेता कृपलानी (उ.प्र.)
सांसद : सुश्री राधाबाई सुबारायन (1938)
प्रथम दलित मुख्यमंत्री : सुश्री मायावती (उ.प्र.)
सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश : न्यायमूर्ति मीरा साहिब फातिया बीबी
देश की सत्र न्यायाधीश : सुश्री अन्ना चांडी (केरल)
योजना आयोग की अध्यक्ष : श्रीमती इंदिरा गांधी
उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश : न्यायमूर्ति लीला सेठ (हि.प्र.)
माउंट एवेस्ट विजेता पर्वतारोही : सुश्री बछेंद्री पाल
नार्मन बोरलाग पुरस्कार विजेता : डॉ.अमृता पटेल
साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता साहित्यकार : अमृता प्रीतम (1956)
भारत रत्न से विभूषित : श्रीमती इंदिरा गांधी
लेनिन शांति पुरस्कार : अरुणा आसफ अली
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से पुरस्कृत : आशापूर्णा देवी(1976)
अंटार्कटीक पहुंचने वाली : मेहर मूसा (1977)
भारतीय अंटार्कटीक अभियान दल की प्रथम भारतीय : डॉ.सुदीप्ति सेन गुप्ता एवं डॉ. अदिति पंत
उत्तरी ध्रुव पर पहुंचने वाली : प्रीति सेन गुप्ता (1993)
नौका द्वारा संपूर्ण विश्व की परिक्रमा करने वाली : उज्जवला पाटिल (1988)
देश की चिकित्सक : डॉ. कादंबिनी गांगुली (बोस) (1888)
मुख्य अभियंता : पी. के. त्रेसिया गांगुली
पायलट : फ्लाइंग ऑफिसर सुषमा
एयर-लाइंस पायलट : कैप्टन प्रेम माथुर (डेक्कन ऐयर वेज)
इंडियन एयरलाइंस की पायलट : कैप्टन दुर्गा बनर्जी
बोइंग 737 विमान की कमांडर : कैप्टन सौदामिनी देशमुख
इंडियन एयर लाइंस की एयर क्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर: सुश्री भुवन की गौतम
भारतीय सेना की जनरल : मेजर जनरल जी.ए.राम
भारतीय वायुसेना की पैराटूपर : सुश्री नीता घोष
आई.ए.एस. : अन्ना जॉर्ज (मल्होत्रा)
फिंगर प्रिंट्स विशेषज्ञ : सीता वराथंबल एवं भ्रगाथंबल बहनें
अंगे्रजी की लेखिका : तोरूञ् दा
संयुक्त राष्ट्र संघ के संगीत समारोह में भागीदारी करने : एम.एस.सुब्बालक्ष्मी (1966)
दूरदर्शन समाचार वाचिका : प्रतिमा पुरी
ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाली खिलाड़ी : मेरी लीला रो (1952)
ओलंपिक खेलों के सेमीफाइनल तक पहुंचने वाली खिल : शाइनी अब्राहम (1984, 800 मी.दौड़)
ऐशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली : कमलजीत संधु (1970, 400 मी.दौड़)
ऐशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली
(महिला युगल बैडमिंटन 1978) : अमी घिया एवं कंवल ठाकुर सिंह
शतरंज में ग्रैंड मास्टर विजेता : भाग्य श्री थिप्से (1986)
अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में 100 विकेट प्राप्तकर्ता : डायना इडुलजी (1986)
अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित : एन.लम्सडेन (हॉकी 1961)
अंतराष्ट्रीय फुटबॉल में हैट्रिक करने वाली : योलांदा डिसूजा (1978)
अशोक चक्र प्राप्तकर्ता : ग्लोरिया बेरी (मरणोपरांत)
सेना मेडल प्राप्तकर्ता : कांदबिनी गांगुली (बोस) एवं चंद्रमुखी बोस (1883)
इंजीनियरिंग में स्नातक उपाधि प्राप्तकर्ता : इला मजूमदार (1951)
चिकित्सा में स्नातक उपाधि प्राप्तकर्ता : विधुमुखी बोस एवं वर्जिनिया मित्तर (कलकत्ता मेडिकल कॉलेज)
देश की बैरिस्टर : कॉर्नीलिआ सोरबजी (इलाहाबाद उच्च न्यायालय , 1923)
देश की राजदूत : श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित (सोवियत संघ, 1947)
देश की अधिवक्ता : रेगिना गुहा
जिब्राल्टर स्टे्रट तैरकर पार करने वाली : आरती प्रधान
अंतराष्ट्रीय तैराकी मैराथन विजेता : अर्चना भारत कुमार पटेल (1988)
देश की सर्जन : डॉ.प्रेमा मुखर्जी
पॉवर लिफ्टिंग में विश्व कीर्तिमान बनाने वाली:सुमिता लाहा (1989)
तीन खेलों (क्रिकेट, हॉकी एवं बास्केट बॉल)
में देश का प्रतिनिधित्व करने वाली
विश्व की प्रथम कॉमर्शियल टेस्ट : कैप्टन सुरूञ्न डार्सी एवं
कैप्टन रोज लोपर
प्रथम परिवार नियोजन स्वास्थ्य केंद्र संचालक: आर.डी.कर्वे (बंबई 1925)
भारतीय वायुसेना के विमान की पायलट : हरिता देओल
दो बार की माउंट एवरेस्ट विजेता : संतोष यादव
रैमन मैग्सेस पुरस्कार प्राप्तकर्ता : किरण बेदी
मुंबई उच्च न्यायालय में नियुक्त मुख्य न्यायाधीश:न्यायामूर्ति सुजाता वी.मनोहर
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की महानिदेशक:जी.वी.सत्यवती
'प्री-जूनियर शतरंज प्रतियोगिता लंदन' में
5 रजत पदक विजेता बालिका : तानिया सचदेव (1994)
भारतीय सिनेमा की नायिका : श्रीमती देविका रानी रोरिक
मांउट एवरेस्ट पर 2 बार चढ़ने वाली
सबसे् कम आयु की पर्वतारोही : डिंकी डोल्मा
शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार से
पुरस्कृत वैज्ञानिक : सुश्री अशीमा चटर्जी
विदेश सचिव : चोकिला अय्यर
मेयर बनने वाली किन्नर : शबनम मौसी
अशोक चक्र प्राप्त करने वाली : कमलेश कुमारी (2002)
महिला दिवस - महिला सघंर्ष की कहानी
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अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर, यह दिवस सबसे पहले 28 फरवरी 1909 में मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखिरी रविवार के दिन मनाया जाने लगा। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिलवाना था क्योंकि, उस समय अधिकतर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था।
इसके बाद पूरे विश्र्व में महिलाओं को बालिग मताधिकार के हक के लिए आंदोलन शुरू हुए, लेकिन सबसे पहले 1917 में रूस ने अपने देश की महिलाओ को वोट देने के अधिकार प्रदान कर पूरे विश्र्व को चौंका दिया। वह स्त्रियों को अंतरिक्ष में भेजने वाला, हर क्षेत्र में औरतों को समानता का अधिकार देने वाला पहला देश बन गया,जिसका प्रभाव दुनिया के हर देश के आंदोलनों पर पड़ा।
1917 में रूस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। ज़ार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिये। उस समय रुस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनों की तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक 1917 की फरवरी का आखिरी रविवार 23 फरवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार उस दिन 8् मार्च थी। इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलेंडर चलता है। इसी लिये त्त् मार्च, महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
हिन्दुस्तान में नवजागरण काल (18 वीं से क्19 वीं सदी) ने भी कई सुधारवादी आंदोलन देखे,जो सती प्रथा की समाप्ति,विधवा विवाह, बाल विवाह पर रोक और स्त्री-शिक्षा से सम्बंधित थे। राजाराम राममोहनराय और ईश्र्वर चंद्र विद्यासागर जैसे महापुरुषों की भूमिका से तो हम सब परिचित हैं,लेकिन उस काल में बंगाल में ज्योर्तिमयी देवी, महाराष्ट्रमें तारबाबाई शिंदे और सावित्रिबाई फुले ने स्त्रियों की बराबरी और शिक्षा के हक के लिए जो आवाजबुलंद की,उसकी महत्ता अभी रेखांकित होनी बाकी है। यदि इंग्लैंड में 1792 ईस्वी में मेरी वालसटेश क्राफ्ट ने विन्डीकेशन ऑफ द राइट्स ऑफ विमेन लिखा, तो भारत में भी तारबाई शिंदे ने स्त्री-पुरुष तुलना लिखी। आजादी की लड़ाई के दौरान एक बार पुनः महिलाओ को रैलियों, धरना-प्रदर्शनों ने घर से बाहर निकलने का मौका दिया। भारत कोकिला सरोजनी नायडू और दुर्गा भाभी जैसे महान नेतृत्व में महिला आंदोलन कई कदम आगे बढ़ा। नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन विमेन तथा विमेंस इंडिया एसोसिएशन जैसे संगठनों ने जोरदार ढंग से स्त्री-शिक्षा, मताधिकार, पर्दा-प्रथा तथा व्यक्तिगत अधिकारों के मुददों को उठाया।
आजादी के 1955-1956 में डॉ. आंबेडकर ने हिन्दू विवाह अधिनियम, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम आदि कानून महिलाओ के पक्ष में पारित करवाए,जिनका देश भर में कट्टरपंथी सनातनी लोगों द्वारा विरोध हुआ, जबकि भारतीय महिला फेडरेशन जैसे संगठनों ने इनका समर्थन किया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1948में मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा की, जिसका प्रभाव हमारे संविधान पर पड़ा। 1950 में आत्मसमर्पित भारतीय संविधान का मूल अधिकार और नीति निदेशक तव वाले अध्याय पर इस प्रभाव को देखा जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने जेंडर विषमता को पूरी दुनिया से समाप्त करने की दिशा में और कई कदम उठाए,जिसमें08 मार्च 1975 को अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष और 1975 से 1985 को महिला दशक घोषित करना महवपूर्ण है। सन् 1979 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने महिलाओ के खिलाफ हर तरह के उत्पीडऩ की समाप्ति के कन्वेंशन की घोषणा की, जिसके पक्षकार देशों की संख्या 128 थी। पक्षकार देशों में हमारा देश भी शामिल था। इन अन्तराष्ट्रिय गतिविधियों का प्रभाव दहेज उत्पीडऩ कानून, ब्लात्कार के विरुद्ध कठोर कानून, विशाखा निर्णय और घरेलू हिंसा कानून पर देखा जा सकता है। अस्सी के दशक में हिन्दुस्तान में महिला आंदोलन की एक नई लहर देखी गई। इस बार मुकम्मल आजादी का सवाल ज्यादा महत्वपूर्ण था। आज महिलाएँ हर स्तर पर बराबरी के हक और हकूक की मांग कर रही थी,जो बिल्कुल जायज था। हम लोगों ने अपने देश में जनतांत्रिक व्यवस्था स्वीकार की है। इसलिए जनतांत्रिक मूल्यों की मजबूती न केवल राजनीतिक संस्थाओं के लिए बल्कि सामाजिक संस्थाओं के लिए भी महत्वपूर्ण है। विवाह जैसे संस्था भी सामाजिक व्यवस्था के ही अंग है। ऐसा नहीं हो सकता है कि हम राजनीतिक तौर पर जनतांत्रिक मूल्यों की बात तो करें, किन्तु सामाजिक और वैवाहिक संबंधों में वर्णवादी और सामंती मूल्यों को कायम रखें। वर्णविहीन और जेंडर विषमताविहीन समाज में ही जनतांत्रिक मूल्य सशक्त हो सकते हैं।
कन्या भ्रूण हत्या पर कानून
प्रसवार्थ निदान तकनीक (दुरुपयोग का विनियम व निवारण) अधिनियम, 1944
भ्रूण का लिंग जाँचः-
भारत सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या पर रोकथाम के उद्देश्य से प्रसव पूर्व निदान तकनीक के लिए 1994 में एक अधिनियम बनाया। इस अधिनियम के अनुसार भ्रूण हत्या व लिंग अनुपात के बढ़ते ग्राफ को कम करने के लिए कुछ नियम लागू किए हैं, जो कि निम्न अनुसार हैं:
-गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जाँच करना या करवाना।
- शब्दों या इशारों से गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग के बारे में बताना या मालूम करना।
- गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जाँच कराने का विज्ञापन देना।
- गर्भवती महिला को उसके गर्भ में पल रहे बच्चें के लिंग के बारे में जानने के लिए उकसाना गैर कानूनी है।
-कोई भी व्यक्ति रजिस्टे्रशन करवाएँ बिना प्रसव पूर्व निदान तकनीक(पी.एन.डी.टी.) अर्थात अल्ट्रासाउंड इत्यादि मशीनों का प्रयोग नहीं कर सकता।
-जाँच केंद्र के मुख्य स्थान पर यह लिखवाना अनिवार्य है कि यहाँ पर भ्रूण के लिंग (सैक्स) की जाँच नहीं की जाती, यह कानूनी अपराध है।
-कोई भी व्यक्ति अपने घर पर भ्रूण के लिंग की जाँच के लिए किसी भी तकनीक का प्रयोग नहीं करेगा व इसके साथ ही कोई व्यक्ति लिंग जाँचने के लिए मशीनों का प्रयोग नहीं करेगा।
- गर्भवती महिला को उसके परिजनों या अन्य द्वारा लिंग जाँचने के लिए प्रेरित करना आदि भू्रण हत्या को बढ़ावा देने वाली अनेक बातें इस एक्ट में शामिल की गई हैं।
-उक्त अधिनियम के तहत पहली बार पकड़े जाने पर तीन वर्ष की कैद व पचास हजार रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।
- दूसरी बार पकड़े जाने पर पाँच वर्ष कैद व एक लाख रूपये का जुर्माना हो सकता है।
लिंग जाँच करने वाले क्लीनिक का रजिस्टे्रशन रद कर दिया जाता है।
प्रसवपूर्व निदान तकनीकों का वित्तिनयमन :-
इस अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत आनुवंशिक सलाह केन्द्रों, आनुवंशिक प्रयोगशालाओं, आनुवंशिक क्लीनिकों और इमेजिंग सैंटरों में जहां गर्भधारणपूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान तकनीक से संचालन की व्यवस्था है, वहां जन्म पूर्व निदान तकनीकों का उपयोग केवल निम्न लिखित विकारों की पहचान के लिए ही किया जा सकता हैः-
1. गणसूत्र संबंधी विकृति
2. आनुवंशिक उपापचय रोग
3. रक्त वर्णिका संबंधी रोग
4. लिंग संबंधी आनुवंशिक रोग
5. जन्म जात विकृतियां
6. केन्द्रीय पर्यवेक्षक बोर्ड द्वारा संसूचित अन्य असमानताएँ एवं रोग।
इस अधिनियम के अंतर्गत यह भी व्यवस्था है कि प्रसव पूर्व निदान तकनीक के उपयोग या संचालन के लिए चिकित्सक निम्नलिखित शर्तों को भली प्रकार जांच कर लेवे की गर्भवती महिला के भ्रूण की जाँच की जाने योग्य है अथवा नहीं:
1. गर्भवती स्त्री की उम्र 35 वर्ष से अधिक है।
2. गर्भवती स्त्री के दो या दो से अधिक गर्भपात या गर्भस्त्राव हो चुके हैं।
3. गर्भवती स्त्री नशीली दवा, संक्रमण या रसायनों जैसे सशक्त विकलांगता पदार्थों के संसर्ग में रही है।
4. गर्भवती स्त्री या उसके पति का मानसिक मंदता या संस्तंभता जैसे किसी शारीरिक विकार या अन्य किसी आनुवंशिक रोग का पारिवारिक इतिहास है।
5. केन्द्रीय पर्यवेक्षक बोर्ड द्वारा संसुचित कोई अन्य अवस्था है।
पी.एन.डी.टी.एक्टss 1994 के नजर से अपराधी कौनः
-प्रसव पूर्व और प्रसव धारण पूर्व लिंग चयन जिसमें प्रयोग का तरीका, सलाह और कोर्ई भी उपबंध और जिससे यह सुनिश्चित होता हो कि लड़के के जन्म की संभावनाओं को बढ़ावा मिल रहा है, जिसमें आयुर्वैदिक दवाएँ और अन्य वैकल्पिक चिकित्सा और पूर्व गर्भधारण विधियाँ, प्रयोग जैसे कि एरिक्शन विधि का प्रयोग इस चिकित्सा के द्वारा लड़के के जन्म की संभावना का पता लगता है, शामिल हैं।
-अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी मशीन या अन्य तकनीक से गर्भधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और जन्म से पहले कन्या भ्रूण हत्या के लिए लिंग परीक्षण करना, करवाना, सहयोग देना, विज्ञापन करना कानूनी अपराध है।
गर्भपात का कानून
(गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971)
गर्भवती स्त्री कानूनी तौर पर गर्भपात केवल निम्नलिखित स्थितियों में करवा सकती है :
1. जब गर्भ की वजह से महिला की जान को खतरा हो ।
2. महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो।
3. गर्भ बलात्कार के कारण ठहरा हो।
4. बच्चा गंभीर रूञ्प से विकलांग या अपाहिज पैदा हो सकता हो।
5. महिला या पुरुष द्वारा अपनाया गया कोई भी परिवार नियोजन का साधन असफल रहा हो।
-यदि इनमें से कोई भी स्थिति मौजूद हो तो गर्भवती स्त्री एक डॉक्टर की सलाह से बारह हफ्तों तक गर्भपात करवा सकती है। बारह हफ्ते से ज्यादा तक बीस हफ्ते (पाँच महीने) से कम गर्भ को गिरवाने के लिए दो डॉक्टर की सलाह लेना जरुरी है। बीस हफ्तों के बाद गर्भपात नहीं करवाया जा सकता है।
- गर्भवती स्त्री से जबर्दस्ती गर्भपात करवाना अपराध है।
- गर्भपात केवल सरकारी अस्पताल या निजी चिकित्सा केंद्र जहां पर फार्म बी लगा हो, में सिर्फ रजिस्ट्रीकृत डॉक्टर द्वारा ही करवाया जा सकता है।
धारा 313
स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात कारित करने के बारे में कहा गया है कि इस प्रकार से गर्भपात करवाने वाले को आजीवन कारावास या जुर्माने से भी दण्डित किया जा सकता है।
धारा 314
धारा 314 के अंतर्गत बताया गया है कि गर्भपात कारित करने के आशय से किये गए कार्यों द्वारा कारित मृत्यु में दस वर्ष का कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जा सकता है और यदि इस प्रकार का गर्भपात स्त्री की सहमति के बिना किया गया है तो कारावास आजीवन का होगा।
धारा 315
धारा 315 के अंतर्गत बताया गया है कि शिशु को जीवित पैदा होने से रोकने या जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया कार्य से सम्बन्धित यदि कोई अपराध होता है, तो इस प्रकार के कार्य करने वाले को दस वर्ष की सजा या जुर्माना दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
कानूनी जागरूकता द्वारा सशक्तिकरण
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महिला उत्पीड़न की समस्या से जूझने हेतु एवं महिलाओं की सुरक्षा के लिए अनेक कानून बनाए गए हैं। इनके अतिरिक्त कई अंतराष्ट्रीय कनवेन्शन भी इससे संबंधित है, जो भारत पर भी लागू है। महिलाओं के लिए इन कानूनों की जानकारी अत्यावश्यक है, क्योंकि यह कानून न केवल न्याय का रास्ता दिखाते हैं, अपितु महिलाओं को अन्याय एवं उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने का साहस भी प्रदान करते हैं।
सीडो (कन्वेंशन ऑन द एलीमिनेशन ऑफ ऑल फार्म्स ऑफ डिस्क्रिमिनेशन अगेन्स्ट वुमेन)
सीडो ने उत्पीड़न की परिभाषा को बढ़ाकर उसमें महिला उत्पीड़न को भी शामिल कर लिया है। सीडो के अनुसार पारम्परिक धारणाएं जो महिलाओं को पुरुषों से गौण मानती हैं या उनकी रूढ़िवादी भूमिका तय करती हैं, उनकी वजह से महिलाओं पर अनेक तरह से अत्याचार हुए हैं जैसे पारिवारिक अत्याचार, जबरन विवाह, दहेज हत्या इत्यादि। महिलाओं पर इस तरह के शारीरिक और मानसिक अत्याचारों का परिणाम है,उन्हें समाज में समान दर्जा मिलने से वंचित करना एवं उन्हें उनके मानवाधिकारों का प्रयोग करने से रोकना सब उत्पीडऩ के दायरे में आते हैं।
हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण
विधिक सेवाएँ प्राधिकरण अधिनियम, 1987, की धारा 12 तथा नियम 1996 के नियम 19 के अन्तर्गत मुफ्त कानूनी सहायता निम्न को मिल सकती हैः-
(क) कोई भी भारतीय नागरिक जिसको सभी साधनों से वार्षिक आय पचीस हजार रूपये से अधिक नहीं है। (उप-मंडल स्तर, जिला स्तर, उच्च न्यायालय),
(ख) कोई भी भारतीय नागरिक जिसकी सभी साधनों से वार्षिक आय, पचास हजार रूपये से अधिक नहीं है (उच्चतम न्यायालय स्तर पर)
(ग) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या पिछड़े वर्गो के सदस्यों को,
(घ) देह व्यापार में पीडि़त अथवा बेगार (बन्धुआ मजदूरों) को,
(ड़) महिलाओं को,
(च) नाबालिग बच्चों जैसे बच्चे अट्ठारह वर्ष तक की आयु के ऐसे बच्चों को जो संरक्षण और प्रतिपालन अधिनियम 1890 के अन्तर्गत प्ररिपालक की देख रेख में हों,
(छ) मानसिक रोगियों या विकलांग व्यक्तियों को जैसे कि अंधे, बहुत कम दिखाई देने वाले, बहरे, कमजोर दिमाग वाले, लूले लंगड़े व कुष्ठ रोग से पीडि़त रहे व्यक्तियों को,
(ज) सामूहिक संकट, मानव जातीय हिंसा, जातीय अत्याचार, बाढ़ सूखा, भूचाल अथवा औद्योगिक विपात्ति से पीडि़त होने के कारण अनर्जित अभाव की परिस्थितियों के अधीन व्यक्तियों को,
(झ) श्रमिकों को,
(ञ) ऐसे व्यक्तियों को जो देह व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 की धारा (2) के खंड (छ) के अंतर्गत अभिरक्षण में रखे गये हो तथा किशोर न्याय अधिनियम 1986 की धारा (2) के खंड (ज) के अंतर्गत किशोर गृह में अभिरक्षित व्यक्तियों को,
(ट) मानसिक अस्पताल या नर्सिंग होम में दाखिल व्यक्तियों को,
(ठ) ऐसा कोई केस जिसके निर्णय से गरीब तथा कमजोर वर्गों से सम्बन्धित अधिकांश बहुसंख्यक व्यक्तियों के मामले प्रभावित होने की संभावना हो,
(ड) उन विशेष मामलों में ऐसे किसी व्यक्ति को जिसके लिए अभिलिखित कारणों के लिए विधिक सेवा का पात्र समझा जाए चाहे वहां साधन परीक्षण संतुष्टि् न भी हो
(ढ) उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के आदेशनुसार अहम केसों में
(न) यथार्थ लोकहित की दशा में किसी व्यक्ति को।
मुफ्त कानूनी सेवा निम्न तरीके से दी जा सकती हैः-
(1) कोर्ट फीस, तलवाना, गवाहों का खर्चा, पेपर बुक तैयार करवाने का खर्चा, वकील की फीस तथा अन्य खर्च जो कानूनी कार्यवाही करने मे लगते हो, ऐसे सब खर्चो की आदायगी से।
(2) कानूनी कार्यवाही करने में वकील द्वारा पैरवी की फीस अदा करके।
(3) कानूनी कार्यवाही के फैसलों, आदेशों टिप्पणी या ब्यानों की प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए लगे खर्चे की भरपाई करके।
(4) अपील की पेपर बुक तैयार करने के लिए ताकि इसमें विधक कार्यवाहियों के लिए संबंधित खर्चे जैसा कि टाइपिंग, अनुवाद, प्रिंटिंग वगैरा पर किये गए खर्चे की भरपाई से।
(5) विविध दस्तावेजों, का प्रारूञ्पण/ड्राफ्टिंग प्राप्त करने के लिए किये गए खर्चे की आदायगी से।
मुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त करने के लिए निम्न को सम्पर्क किया जाना चाहिए-
(1) उच्चतम न्यायालय पर :-
सदस्य सचिव,
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण
12/11, जामनगर हाऊस,
नई दिल्ली, पिन कोड- 110011
या
सचिव,
उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति,
109, लायर्स चैम्बर्ज,
पी.ओ.विंग, सुप्रीम कोर्ट कम्पाऊड,
नई दिल्ली, पिन कोड-110011
(2) उच्च न्यायालय परः-
कार्यकारी अध्यक्ष / सदस्य सचिव
हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण,
एस.सी.ओ. न.-20 पहली मंजिल,
सैक्टर 7 सी, चण्डीगढ -160019
पंजीकरण अधिकारी (रजिस्ट्रार)
पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय एवं सचिव
उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय, चण्डीगढ़
पिन कोड - 160001
(3) जिला स्तर पर :-
जिला एवं सत्र न्यायाधीश व
अध्यक्ष / मुख्य दण्डाधिकारी
एवं सचिव,
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण
नोट :- अगर प्रधान कार्यालय में किसी जिला एवं सत्र न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं की गई है तो मुफ्त कानूनी सहायता के लिए याचिका मुख्य अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, वरिष्ठ अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश / वरिष्ठ् अधिकारी को दिया जा सकता है।
(4) उप मंडल स्तर पर -
अतिरिक्त सिविल जज
(सीनियर डिवीजन)
एवं अध्यक्ष उप-मंडल
विधिक सेवा समिति ।
महिलाओं के सहायतार्थ सरकार ने जिला स्तर पर समितियों का गठन किया हुआ है, यह समितियां महिलाओं की हर संभव सहायता करती हैं।
जिला जनसंपर्क एंव कष्ट निवारण समिति
इस समिति द्वारा महिलाओं सहित सभी वर्गों के सभी प्रकार के मसलों का मौके पर ही निवारण करने का प्रयास किया जाता है। इस समिति का अध्यक्ष माननीय मुख्यमंत्री, मंत्री, मुख्य संसदीय सचिव, संसदीय सचिव, विधायक आदि में से कोई भी हो सकता है तथा समिति के उपाध्यक्ष जिला के उपायुक्त होते हैं। इसके सदस्य वरिष्ठ अधीक्षक, वरिष्ठ अधिकारी, गैर सरकारी संगठनों के सदस्य, बुद्धिजीवी व समाजसेवी होते हैं। इस समिति की मीटिंग के दौरान सभी विभागों के आला अधिकारी उपस्थित होते हैं ताकि शिकायत का मौके पर ही निवारण किया जा सके।
जिला यौन उत्पीड़न समिति
उच्चतम न्यायालय के फैसले (विशाखा बनाम राजस्थान) के आदेशानुसार प्रदेश सरकार ने हर जिले में एक समिति बनाई है। कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, निजी व सरकारी दफ्तर, न्यायालय परिसर, बस स्टैंड इत्यादि सार्वजनिक स्थानों पर छेड़छाड़ व यौन उत्पीड़न करने वालों पर लगाम कसने हेतु इस समिति का गठन किया गया है। इस समिति के सदस्यों में प्रत्येक जिले के उपायुक्त, सब डिविजन मजिस्ट्रेट, पुलिस कप्तान, हर विभाग के आयुक्त, रजिस्ट्रार पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय चंडीगढ़, गैर सरकारी संस्था के सदस्य शामिल होते हैं।
जिला दहेज उन्मूलन सलाह कार्यसमिति
सरकार ने दहेज की बढ़ती समस्या को देखते हुए हर जिले में दहेज उन्मूलन समिति का गठन किया है। इस समिति की अध्यक्ष कार्यक्रम अधिकारी/लेडिज सर्कल सुपरवाइजर होती हैं, तथा इसके सदस्यों में बाल विकास परियोजना अधिकारी, मुख्य सेविका तहसील कल्याण अधिकारी, दो महिला समाज सेविकाएँ शामिल होती हैं।
महिला उत्पीड़न के खिलाफ समिति का गठन
केंद्र सरकार के आदेश पर महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के तुरंत निवारण हेतु जिला स्तरीय समिति बनाई गई। इस समिति के अध्यक्ष जिला उपायुक्त होते हैं तथा आरक्षी अधीक्षक, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिला न्यायवादी, कार्यक्रञ्म अधिकारी जिला बाल विकास योजना, लेडिज सर्कल सुपरवाइजर, दो महिला समाजसेविकाएं, जिला के दो वरिष्ठ वकील (जिसमें एक महिला वकील अनिवार्य है) तथा कोई अन्य सदस्य हो सकते हैं।
इस समिति का कार्य निम्न प्रकार हैः-
महिलाओं के अधिकारों को लेकर उचित कदम उठाना।
महिलाओं पर अत्याचारों की शिकायत को दर्ज कर, जाँच कर फैसला सुनाना।
महिलाओं पर हुए अत्याचार की जाँच करते समय जिला पुलिस/जिला मजिस्ट्रेट/जिला न्यायालय के साथ समन्वय बनाए रखना।
महिलाओं के खिलाफ फौजदारी मुकद्मा दायर होने पर उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना।
स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा माँग किए जाने पर कानूनी मदद व सलाह देना।
महिला उत्पीड़न के केसों की सुनवाई के दौरान उसकी मदद करना व जाँच करना।
परिवार परामर्श केंद्र, कौटोम्बिक न्यायालय/कानूनी सहायता केंद्र के साथ मिलकर काम करना।
गैर सरकारी संस्था, वकील शिक्षण संस्थान व मीडिया के साथ मिलकर महिलाओं के साथ कानूनी साक्षरता व उनके अधिकारों के बारे प्रचार व प्रसार करना।
प्रसवार्थ निदान तकनीक (दुरूपयोग का बिनियम/निवारण) समिति
इस समिति का मुख्य कार्य लिंगानुपात पर कंट्रोल करना होता है। यह समिति किसी भी नर्सिंग होम में भ्रूण हत्या, अल्ट्रासाउंड द्वारा लिंग जांच व अन्य तरीके से कन्या भ्रूण हत्या के विषय में जानकारी मिलते ही कार्रवाई करती है। इस समिति के अध्यक्ष सिविल सर्जन होते हैं तथा सदस्यों में वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, जिला मलेरिया अधिकारी, बाल विशेषज्ञ चिकित्सा अधिकारी, महिला चिकित्सा अधिकारी, जिला लोक संपर्क अधिकारी, जिला परिवार कल्याण अधिकारी, जिला मजिस्ट्रेट, कार्यक्रम अधिकारी, बाल विकास परियोजना अधिकारी, इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष, प्रधानाध्यापिका, समाजसेविकाएँ, सचिव जिला रेड क्रास सोसाइटी व गैर सरकारी संस्था के सदस्य शामिल होते हैं।
घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून लागू
सरकार को तभी कानून बनाना पड़ता है, जब सामजिक बंधन ढीले पड़ जाते हैं। कानूनी डंडे से सजा का भय दिखाया जाता है। इधर ऐसे कई कानून बने हैं जिनका उद्देश्य परिवार में सुख-चैन लाना है। ऐसा सोचा गया कि घरेलू हिंसा निषेधात्मक कानून बनने पर घरेलू हिंसा समप्त होगी? पर सच तो यह है कि इन कानूनों से सामजिक समस्याएं कम नहीं होतीं। फिर भी कानून बनने आवश्यक हैं। पारिवारिक परेशानियों के लिए कितनी बार कोई कचहरी जाए। कोर्ट का काम परिवार चलाना नहीं है। हर परिवार में पुलिस भी नहीं बैठाई जा सकती। कानून का डंडा भय उत्पन्न करने के लिए है।
भारत की प्रथम महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी मानती हैं कि महिलाएँ ही महिलाओं पर अत्याचार का पहला कारण होती हैं ,यदि महिलाएँ तय कर लें कि जिस घर में महिलाएँ हैं वहां महिलाओं पर अत्याचार नहीं होगा, तो सब कुछ बदल सकता है। उनका मानना है कि समाज में महिला की स्थिति बदल रही है और आगे भी बदलेगी, लेकिन पाँच हजार साल की मानसिकता बदलने में वक्त लगेगा। हमें घरेलू हिंसा के ग्राफ में बढ़ोतरी दिख रही है, अभी तो महिलाओं पर अत्याचार के मामले और बढ़ते हुए दिखेंगे, लेकिन इसका कारण यह है कि महिलाओं में जागरुकता आ रही है और ज़्यादा महिलाएँ शिकायत करने पहुँच रही हैं। लेकिन शिकायत दर्ज करवाने के बाद भी सजा मिलने की दर बहुत कम है और सिर्फ सौ में से दो लोगों को सजा मिल पाती है।
सेंटर फॉर सोशल रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार तीन साल प्रताडि़त होने के बाद एक हजार में से एक महिला ही शिकायत दर्ज करवाने पहुँचती है।
भारत में घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून अमल में आ गया है जिसमें महिलाओं को दुर्व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करने का प्रावधान है। यह कानून महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाएगा क्योंकि केवल भारत में ही लगभग 70 प्रतिशत महिलाएँ किसी न किसी रूप में इसकी शिकार हैं।
घरेलू हिंसा विरोधी कानून से बड़ी उम्मीदें हैं। इसके तहत पत्नी या फिर बिना विवाह किसी पुरुष के साथ रह रही महिला मारपीट, यौन शोषण, आर्थिक शोषण या फिर अपमानजनक भाषा के इस्तेमाल की परिस्थिति में कार्रवाई कर सकेगी।
अब बात-बात पर महिलाओं पर अपना गुस्सा उतारने वाले पुरुष घरेलू हिंसा कानून के फंदे में फंस सकते हैं।
इतना ही नहीं, लडक़ा न पैदा होने के लिए महिला को ताने देना,
उसकी मर्जी के बिना उससे शारीरिक संबंध बनाना या
लडक़ी के न चाहने के बावजूद उसे शादी के लिए बाध्य करने वाले पुरुष भी इस कानून के दायरे में आ जाएंगे।
इसके तहत दहेज की मांग की परिस्थिति में महिला या उसके रिश्तेदार भी कार्रवाई कर पाएँगे।
महवपूर्ण है कि इस कानून के तहत मारपीट के अलावा यौन दुर्व्यवहार और अश्लील चित्रों, फिल्मों कोञ् देखने पर मजबूर करना या फिर गाली देना या अपमान करना शामिल है।
पत्नी को नौकरी छोडऩे पर मजबूर करना या फिर नौकरी करने से रोकना भी इस कानून के दायरे में आता है।
इसके अंतर्गत पत्नी को पति के मकान या फ्लैट में रहने का हक होगा भले ही ये मकान या फ्लैट उनके नाम पर हो या नहीं।
इस कानून का उल्लंघन होने की स्थिति में जेल के साथ-साथ जुर्माना भी हो सकता है।
लोगों में आम धारणा है कि मामला अदालत में जाने के बाद महीनों लटका रहता है, लेकिन अब नए कानून में मामला निपटाने की समय सीमा तय कर दी गई है। अब मामले का फैसला मैजिस्ट्रेट को साठ दिन के भीतर करना होगा।
दहेज पर कानून
दहेज प्रतिशोध अधिनियम,1961
शादी से संबंधित जो भी उपहार दबाव या जबरदस्ती के कारण दूल्हे या दुल्हन को दिये जाते हैं, उसे दहेज कहते है। उपहार जो मांग कर लिया गया हो उसे भी दहेज कहते हैं।
-दहेज लेना या देना या लेने देने में सहायता करना अपराध है। शादी हुई हो या नहीं इससे फर्क नहीं पड़ता है। इसकी सजा है पाँच साल तक की कैद, पन्द्रह हजार रूञ्.जुर्माना या अगर दहेज की रकम पन्द्रह हजार रूञ्पये से ज्यादा हो तो उस रकम के बराबर जुर्माना।
- दहेज मांगना अपराध है और इसकी सजा है कम से कम छःमहीनों की कैद या जुर्माना।
-दहेज का विज्ञापन देना भी एक अपराध है और इसकी सजा है कम से कम छः महीनों की कैद या पन्द्रह हजार रूञ्पये तक का जुर्माना।
दहेज हत्या पर कानून :
(धारा 304ख, 306भारतीय दंड संहिता)
-यदि शादी के सात साल के अन्दर अगर किसी स्त्री की मृत्यु हो जाए,
-गैर प्राकृतिक कारणों से, जलने से या शारीरिक चोट से, आत्महत्या की वजह से हो जाए,
-और उसकी मृत्यु से पहले उसके पति या पति के किसी रिश्तेदार ने उसके साथ दहेज के लिए क्रूर व्यवहार किया हो,
तो उसे दहेज हत्या कहते हैं। दहेज हत्या के संबंध में कानून यह मानकर चलता है कि मृत्यु ससुराल वालों के कारण हुई है।
इन अपराधों की शिकायत कौन कर सकता हैः-
1. कोई पुलिस अफसर
2. पीडि़त महिला या उसके माता-पिता या संबंधी
3. यदि अदालत को ऐसे किसी केस का पता चलता है तो वह खुद भी कार्यवाई शुरूञ् कर सकता है।
भरण पोषण पर कानून
(धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता)
महिला का भरण पोषण
यदि किसी महिला के लिए अपना खर्चा- पानी वहन करना संभव नहीं है तो वह अपने पति, पिता या बच्चों से भरण-पोषण की माँग कर सकती।
विवाह संबंधी अपराधों के विषय में भारतीय दण्ड संहिता 1860,
धारा 493 से 498 के प्रावधान करती है।
धारा 493
धारा 493 के अन्तर्गत बताया गया है कि विधिपूर्ण विवाह का प्रवंचना से विश्वास उत्प्रेरित करने वाले पुरुष द्वारा कारित सहवास की स्थिति में, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिनकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
धारा 494
धारा 494 के अन्तर्गत पति या पत्नी के जीवित रहते हुए विवाह करने की स्थिति अगर वह विवाह शून्य है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। बहुविवाह के लिए आवश्यक है कि दूसरी शादी होते समय शादी के रस्मो-रिवाज पर्याप्त ढंग से किये जाएं।
धारा 494 क
धारा 494क में बताया गया है कि वही अपराध पूर्ववती विवाह को उस व्यक्ति से छिपाकर जिसके साथ पश्चात्वर्ती विवाह किया जाता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी।
धारा 496
धारा 496 में बताया गया है कि विधिपूर्ण विवाह के बिना कपटपूर्ण विवाहकर्म पूरा कर लेने की स्थिति में से वह दोनों में किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
धारा 497
व्यभिचार की स्थिति में वह व्यक्ति जो यह कार्य करता है वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा। ऐसे मामलों में पत्नी दुष्प्रेरक के रूप में दण्डनीय नहीं होगी।
धारा 498
धारा 498 के अन्तर्गत यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति विवाहित स्त्री को आपराधिक आशय से फुसलाकर ले जाता है या ले आना या निरूञ्द्घ रखना है तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
धारा 498 क
सन् 1983 में भारतीय दण्ड संहिता में यह संशोधन किया गया जिसके अन्तर्गत अध्याय 20 क, पति या पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में, अन्त स्थापित किया गया इस अध्याय के अन्तर्गत एक ही धारा 498-क है, जिसके अन्तर्गत बताया गया है कि किसी स्त्री के पति या पति के नातेदारों द्वारा उसके प्रति क्रूरता करने की स्थिति में दण्ड एवं कारावास का प्रावधान है इसके अन्तर्गत बताया गया है कि जो कोई, किसी स्त्री का पति या पति का नातेदार होते हुए, ऐसी स्त्री के प्रति क्रूरता करेगा, उसे कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
क्रूरता दो तरह की हो सकती है - मानसिक तथा शारीरिक
- शारीरिक क्रूरता का अर्थ है महिला को मारने या इस हद तक शोषित करना कि उसकी जान, शरीर या स्वास्थ्य को खतरा हो।
-मानसिक क्रूरता जैसे- दहेज की मांग या महिला को बदसूरत कहकर बुलाना इत्यादि।
-किसी महिला या उसके रिश्तेदार या संबंधी को धन-संपति देने के लिये परेशान किया जाना भी क्रूरता है।
-अगर ऐसे व्यवहार के कारण औरत आत्महत्या कर लेती है तो वह भी क्रूरता कहलाती है।
यह धारा हर तरह की क्रूरता पर लागू है चाहे कारण कोई भी हो केवल दहेज नहीं।
सती प्रथा पर कानून
(सती प्रथा निवारण अधिनियम, 1787)
सती प्रथा
यदि कोई स्त्री सती होने की कोशिश करती है उसे छः महीने कैद तथा जुर्माने की सजा होगी।
सती होने के लिए प्रेरित करना या सहायता करना
यदि कोई व्यक्ति किसी महिला को सती होने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रेरित करे या उसको सती होने में सहायता करे तो उसे मृत्यु दण्ड या उम्रकैद तक की सजा होगी।
समान काम, समान वेतन
समानता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में है पर यह लैंगिक न्याय के दायरे में 'समान काम, समान वेतन' के दायरे में महत्वपूर्ण है। 'समान काम, समान वेतन' की बात संविधान के अनुच्छेद 39 (घ) में कही गयी है पर यह हमारे संविधान के भाग चार 'राज्य की नीति के निदेशक तत्व' के अन्दर है। महिलायें किसी भी तरह से पुरुषों से कम नहीं है। यदि वे वही काम करती है जो कि पुरुष करते हैं तो उन्हें पुरुषों के समान वेतन मिलना चाहिये। यह बात समान पारिश्रमिक अधिनियम में भी कही गयी है।
गर्भ जांच : कल और आज
पुराने जमाने में गर्भ की जांच दाइयों द्वारा गर्भवती स्त्री के पेट पर हाथ से दबा कर की जाती थी। अनुभवी दाइयां गर्भवती स्त्री के चलने, उठने, बैठने मात्र से अंदाजा लगाकर गर्भस्थ शिशु की स्थिति भांप जाती थी, यही नहीं, कुछ लक्षणों के आधार पर गर्भ में पल रहे शिशु का लिंग भी बता देती थी।
यदि दाई गर्भ में पल रहे शिशु का लिंग, पुल्लिंग बताती तो गर्भवती स्त्री के परिजन उसे मिठाइयां व उपहार देते तथा गर्भवती स्त्री की गर्भकाल में पूर्ण देखभाल करते और यदि वो लड़की होने की ''आशंका'' जता देती तो बेचारी गर्भवती स्त्री को गर्भकाल के दौरान ही प्रताड़ना देना शुरू कर दी जाती थी तथा गर्भस्थ शिशु के लिंग बदलने की कुचेष्टा से 'शर्तिया लड़का होने की 'दवा' दी जाती। इस धरती पर जन्म वही लेता है, जिसे परमात्मा ने निश्चित किया हुआ है, लेकिन उस शर्तिया दवा का कुप्रभाव अवश्य हो जाता है। पैदा हुई कन्या के बड़े होने पर मर्दों की भांति चेहरे व शरीर पर अनचाहे बाल उग आते हैं। लड़कियों की कोमल आवाज के स्थान पर लड़कों जैसी कर्कश आव़ाज गले से निकलती है।
धीरे-धीरे समय बदला, एलौपेथिक चिकित्सा पद्धति ने चिकित्सा -विज्ञान में अनेक उपलब्धिया हासिल की। इसमें गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य के साथ-साथ लिंग परीक्षण की तकनीक भी विकसित हुई।
गर्भ परीक्षण का मुख्य उद्देश्य गर्भ में उत्पन्न किसी भी आनुवंशिक त्रुटि का पता लगाना होता है, ताकि विकलांग शिशु की जन्मदर को नियंत्रित किया जा सके। गर्भ परीक्षण के दौरान गर्भस्थ शिशु के लिंग का पता चलने की वजह से यह परीक्षण गर्भ परीक्षण कम और लिंग परीक्षण अधिक हो गया। प्रारंभ में लिंग परीक्षण की विधियां अत्यंत कष्टप्रद व हानिकारक होने के अतिरिक्त लिंग आकलन का अनुमान भी सही नहीं होता था।
सन् 1974 में गर्भजल परीक्षण की तकनीक का भारत में चलन शुरू हुआ। यह तकनीक भी आनुवंशिक त्रुटि का पता लगाने के उद्देश्य से ही विकसित हुई थी। इस तकनीक में गर्भ के बारहवें सप्ताह में गर्भास्य से एक सुई द्वारा पानी लिया जाता है जिसे गर्भ जल कहते हैं। इस गर्भ जल में भ्रूण की कोशिकाएं भी पाई जाती हैं। इस गर्भजल से कोशिकाओं को अलग कर फ्लोरेसेंट सूक्ष्मदर्शी के द्वारा जांचा जाता है, या चार-पांच सप्ताह तक एक विशेष विधि से रखकर इन्हें बढ़ने दिया जाता है, फिर इनकी जांच की जाती है। देखने सुनने में यह तकनीक सुरक्षित लगती है लेकिन इस परीक्षण के दौरान खून का बहाव होने लगता है। कई बार तो स्वतः ही गर्भपात भी हो जाता है। सुई से संक्रमण का खतरा बना रहता है। गर्भजल में भ्रूण के साथ-साथ मां की कोशिकाओं के मौजूद रहने के कारण यह पूर्णतया विश्वसनीय तकनीक सिद्ध नहीं हो पाई।
इसके बाद कोरियान विलाई वायोप्सी विधि का विकास हुआ। यह गर्भजल परीक्षण से कम पीड़ादायक व अधिक विश्वसनीय सिद्ध हुआ। इस विधि में गर्भ के छठे से तेहरवें सप्ताह के बीच भ्रूण के आसपास के उत्तक लंबी कोशिकाओं को अलग कर जांच की जाती है। इस परीक्षण से कई महत्वपूर्ण आनुवंशिक दोषों का पता लगाया जा सकता है, लेकिन इस विधि से भी गर्भवती महिला को रक्त स्त्राव व स्वतः गर्भपात का खतरा बना रहता है। कई बार तो महिलाएं बांझ भी हो जाती थी या गर्भास्य कमजोर पड़ने से भविष्य में गर्भधारण की संभावनाएं कम हो जाती थी।
इसके बाद ऐमानियोटेसिस मशीन का चलन हुआ। यह कम खर्चीली व कम कष्टप्रद होने के कारण काफी लोकप्रिय हुई, लेकिन इस मशीन के बाद भ्रूण के लिंग निर्धारण के लिए सस्ती, अधिक विश्वसनीय व कम कष्टदायी मशीन का आगमन हुआ जिसे हम सब अल्ट्रासाउंड के नाम से जानते हैं। इसके आने के बाद समाज का एक अमानवीय चेहरा उभरकर सामने आया। पुत्रेच्छा के चलते अल्ट्रासाउंड मशीन संचालकों के क्लीनिकों के बाहर लंबी कतारें लगने लगी। फिर शुरू हुआ कन्या भ्रूण हत्याओं का नृशंस दौर, जो आज भी जारी है।
विज्ञान के विकराल रूप ने नारी को संसार के सबसे सुरक्षित स्थान पर भी सुरक्षित नहीं रहने दिया। जन्म से पूर्व मां की कोख बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित स्थान होती है। मां की कोख सदैव अभेदनीय व अति गोपनीय मानी जाती थी लेकिन विज्ञान ने मां की ममता के इस अभेदनीय किले को भेद दिया और अल्ट्रासाउंड जैसी मशीन ने इसकी गोपनीयता को समाप्त कर इसे सार्वजनिक कर दिया।
दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और महाराष्ट्र में जेंटर-मेंटर किट का व्यवसाय आजकल जोरों पर है। देहात में जन्तर-मंतर किट के नाम से मशहूर यह किट 25 अमरीकी डॉलर में उपलब्ध है। यह किट गर्भाधान के पांच सप्ताह के भीतर खून की जांच से बता देता है कि गर्भ में पलने वाला शिशु लडक़ा है या लडक़ी। खून की इस जांच को व्यावसायिक भाषा में बेबी जेंडर-मेन्टर कहा जाता है। खून का सैंपल लेने के बाद इसे अमरीका स्थित मुख्य लैब में भेजा जाता है। इसके बाद रिपोर्ट जानने के लिए ग्राहक को 250 डॉलर और देना होता है। जैसे ही 250 डॉलर कंपनी को अदा किये जाते हैं 24 घंटे के अंदर रिपोर्ट वेबपेज पर डाल दी जाती है जिसे ग्राहक एक पासवर्ड के जरिए खोल सकता है।
इस व्यवसाय में कई भारतीय डॉक्टर व लैबोरेट्ररी संचालक संलिप्त हैं, लेकिन यह व्यवसाय इतना फुल-प्रुफ है कि इसे रोकना थोड़ा मुश्किल है। पहली बात, यह देश के कानून की सरहदों से दूर है। दूसरे, यह टेस्ट नॉन मेडिकल टेस्ट की श्रेणी में आता है इसलिए भी इसे कानूनी रुप से रोक पाना कठिन है। पंजाब और हरियाणा में यह उद्योग का रुप लेता जा रहा है। यदि भारत सरकार ने समय रहते इस पर लगाम न कसी तो इसके नतीजे भयावह हो सकते हैं।
नारी उत्पीड़न से दुःखी व पुत्रेच्छा की लालसा में मां, कोख में बेटी का पता चलते ही दुःखी व परेशान हो उठती है और शीघ्र ही बेटी को अबला-सबला न मानकर बला मानने वाली मां कोख में ही नन्ही जान को मृत्यु दंड़ सुना देती है, या फिर उसके कत्ल के लिए अपनी मूक सहमति जता देती है। इस मृत्युदंड़ को, इस कत्ल को बड़ी सफाई से सफाई का नाम देकर डॉक्टर के रूप में कसाई द्वारा सफाई करवा दी जाती है।
राष्ट्रपति : महामहिम प्रतिभा देवीसिंह पाटिल
प्रधानमंत्री : श्रीमती इंदिरा गांधी
एयर वाइस मार्शल : पी.वंद्योपाध्याय
इंग्लिश चैनल तैरकर पार करने वाली महिला : आरती साहा
राज्यपाल : श्रीमती सरोजिनी नायडू (उ.प्र.)
आई.पी.एस. : किरण बेदी
सयुंक्त राष्ट्र के शांति रक्षा विभाग में असैनिक पुलिस
सलाहकार के पद पर नियुक्त होने वाली महिला
(भारत एवं विश्व दोनों में) : किरण बेदी
राष्ट्ररीय कांग्रेस की अध्यक्ष : एनी बेसेंट
संघ लोक सेवा आयोग की अध्यक्ष : रोज मिलियन बैथ्यूज
नोबेल पुरस्कार विजेता : मदर टेरेसा(शांति हेतु)
मिस वर्ल्ड से सम्मानित : सुश्री रीता फारिया
मिस यूनीवर्स : सुश्री तारा चेरियन (मद्रास में वर्ष 1957)
केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री : राजकुमारी अमृतकौर
मुख्यमंत्री : सुचेता कृपलानी (उ.प्र.)
सांसद : सुश्री राधाबाई सुबारायन (1938)
प्रथम दलित मुख्यमंत्री : सुश्री मायावती (उ.प्र.)
सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश : न्यायमूर्ति मीरा साहिब फातिया बीबी
देश की सत्र न्यायाधीश : सुश्री अन्ना चांडी (केरल)
योजना आयोग की अध्यक्ष : श्रीमती इंदिरा गांधी
उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश : न्यायमूर्ति लीला सेठ (हि.प्र.)
माउंट एवेस्ट विजेता पर्वतारोही : सुश्री बछेंद्री पाल
नार्मन बोरलाग पुरस्कार विजेता : डॉ.अमृता पटेल
साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता साहित्यकार : अमृता प्रीतम (1956)
भारत रत्न से विभूषित : श्रीमती इंदिरा गांधी
लेनिन शांति पुरस्कार : अरुणा आसफ अली
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से पुरस्कृत : आशापूर्णा देवी(1976)
अंटार्कटीक पहुंचने वाली : मेहर मूसा (1977)
भारतीय अंटार्कटीक अभियान दल की प्रथम भारतीय : डॉ.सुदीप्ति सेन गुप्ता एवं डॉ. अदिति पंत
उत्तरी ध्रुव पर पहुंचने वाली : प्रीति सेन गुप्ता (1993)
नौका द्वारा संपूर्ण विश्व की परिक्रमा करने वाली : उज्जवला पाटिल (1988)
देश की चिकित्सक : डॉ. कादंबिनी गांगुली (बोस) (1888)
मुख्य अभियंता : पी. के. त्रेसिया गांगुली
पायलट : फ्लाइंग ऑफिसर सुषमा
एयर-लाइंस पायलट : कैप्टन प्रेम माथुर (डेक्कन ऐयर वेज)
इंडियन एयरलाइंस की पायलट : कैप्टन दुर्गा बनर्जी
बोइंग 737 विमान की कमांडर : कैप्टन सौदामिनी देशमुख
इंडियन एयर लाइंस की एयर क्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर: सुश्री भुवन की गौतम
भारतीय सेना की जनरल : मेजर जनरल जी.ए.राम
भारतीय वायुसेना की पैराटूपर : सुश्री नीता घोष
आई.ए.एस. : अन्ना जॉर्ज (मल्होत्रा)
फिंगर प्रिंट्स विशेषज्ञ : सीता वराथंबल एवं भ्रगाथंबल बहनें
अंगे्रजी की लेखिका : तोरूञ् दा
संयुक्त राष्ट्र संघ के संगीत समारोह में भागीदारी करने : एम.एस.सुब्बालक्ष्मी (1966)
दूरदर्शन समाचार वाचिका : प्रतिमा पुरी
ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाली खिलाड़ी : मेरी लीला रो (1952)
ओलंपिक खेलों के सेमीफाइनल तक पहुंचने वाली खिल : शाइनी अब्राहम (1984, 800 मी.दौड़)
ऐशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली : कमलजीत संधु (1970, 400 मी.दौड़)
ऐशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली
(महिला युगल बैडमिंटन 1978) : अमी घिया एवं कंवल ठाकुर सिंह
शतरंज में ग्रैंड मास्टर विजेता : भाग्य श्री थिप्से (1986)
अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में 100 विकेट प्राप्तकर्ता : डायना इडुलजी (1986)
अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित : एन.लम्सडेन (हॉकी 1961)
अंतराष्ट्रीय फुटबॉल में हैट्रिक करने वाली : योलांदा डिसूजा (1978)
अशोक चक्र प्राप्तकर्ता : ग्लोरिया बेरी (मरणोपरांत)
सेना मेडल प्राप्तकर्ता : कांदबिनी गांगुली (बोस) एवं चंद्रमुखी बोस (1883)
इंजीनियरिंग में स्नातक उपाधि प्राप्तकर्ता : इला मजूमदार (1951)
चिकित्सा में स्नातक उपाधि प्राप्तकर्ता : विधुमुखी बोस एवं वर्जिनिया मित्तर (कलकत्ता मेडिकल कॉलेज)
देश की बैरिस्टर : कॉर्नीलिआ सोरबजी (इलाहाबाद उच्च न्यायालय , 1923)
देश की राजदूत : श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित (सोवियत संघ, 1947)
देश की अधिवक्ता : रेगिना गुहा
जिब्राल्टर स्टे्रट तैरकर पार करने वाली : आरती प्रधान
अंतराष्ट्रीय तैराकी मैराथन विजेता : अर्चना भारत कुमार पटेल (1988)
देश की सर्जन : डॉ.प्रेमा मुखर्जी
पॉवर लिफ्टिंग में विश्व कीर्तिमान बनाने वाली:सुमिता लाहा (1989)
तीन खेलों (क्रिकेट, हॉकी एवं बास्केट बॉल)
में देश का प्रतिनिधित्व करने वाली
विश्व की प्रथम कॉमर्शियल टेस्ट : कैप्टन सुरूञ्न डार्सी एवं
कैप्टन रोज लोपर
प्रथम परिवार नियोजन स्वास्थ्य केंद्र संचालक: आर.डी.कर्वे (बंबई 1925)
भारतीय वायुसेना के विमान की पायलट : हरिता देओल
दो बार की माउंट एवरेस्ट विजेता : संतोष यादव
रैमन मैग्सेस पुरस्कार प्राप्तकर्ता : किरण बेदी
मुंबई उच्च न्यायालय में नियुक्त मुख्य न्यायाधीश:न्यायामूर्ति सुजाता वी.मनोहर
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की महानिदेशक:जी.वी.सत्यवती
'प्री-जूनियर शतरंज प्रतियोगिता लंदन' में
5 रजत पदक विजेता बालिका : तानिया सचदेव (1994)
भारतीय सिनेमा की नायिका : श्रीमती देविका रानी रोरिक
मांउट एवरेस्ट पर 2 बार चढ़ने वाली
सबसे् कम आयु की पर्वतारोही : डिंकी डोल्मा
शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार से
पुरस्कृत वैज्ञानिक : सुश्री अशीमा चटर्जी
विदेश सचिव : चोकिला अय्यर
मेयर बनने वाली किन्नर : शबनम मौसी
अशोक चक्र प्राप्त करने वाली : कमलेश कुमारी (2002)
महिला दिवस - महिला सघंर्ष की कहानी
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अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर, यह दिवस सबसे पहले 28 फरवरी 1909 में मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखिरी रविवार के दिन मनाया जाने लगा। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिलवाना था क्योंकि, उस समय अधिकतर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था।
इसके बाद पूरे विश्र्व में महिलाओं को बालिग मताधिकार के हक के लिए आंदोलन शुरू हुए, लेकिन सबसे पहले 1917 में रूस ने अपने देश की महिलाओ को वोट देने के अधिकार प्रदान कर पूरे विश्र्व को चौंका दिया। वह स्त्रियों को अंतरिक्ष में भेजने वाला, हर क्षेत्र में औरतों को समानता का अधिकार देने वाला पहला देश बन गया,जिसका प्रभाव दुनिया के हर देश के आंदोलनों पर पड़ा।
1917 में रूस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। ज़ार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिये। उस समय रुस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनों की तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक 1917 की फरवरी का आखिरी रविवार 23 फरवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार उस दिन 8् मार्च थी। इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलेंडर चलता है। इसी लिये त्त् मार्च, महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
हिन्दुस्तान में नवजागरण काल (18 वीं से क्19 वीं सदी) ने भी कई सुधारवादी आंदोलन देखे,जो सती प्रथा की समाप्ति,विधवा विवाह, बाल विवाह पर रोक और स्त्री-शिक्षा से सम्बंधित थे। राजाराम राममोहनराय और ईश्र्वर चंद्र विद्यासागर जैसे महापुरुषों की भूमिका से तो हम सब परिचित हैं,लेकिन उस काल में बंगाल में ज्योर्तिमयी देवी, महाराष्ट्रमें तारबाबाई शिंदे और सावित्रिबाई फुले ने स्त्रियों की बराबरी और शिक्षा के हक के लिए जो आवाजबुलंद की,उसकी महत्ता अभी रेखांकित होनी बाकी है। यदि इंग्लैंड में 1792 ईस्वी में मेरी वालसटेश क्राफ्ट ने विन्डीकेशन ऑफ द राइट्स ऑफ विमेन लिखा, तो भारत में भी तारबाई शिंदे ने स्त्री-पुरुष तुलना लिखी। आजादी की लड़ाई के दौरान एक बार पुनः महिलाओ को रैलियों, धरना-प्रदर्शनों ने घर से बाहर निकलने का मौका दिया। भारत कोकिला सरोजनी नायडू और दुर्गा भाभी जैसे महान नेतृत्व में महिला आंदोलन कई कदम आगे बढ़ा। नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन विमेन तथा विमेंस इंडिया एसोसिएशन जैसे संगठनों ने जोरदार ढंग से स्त्री-शिक्षा, मताधिकार, पर्दा-प्रथा तथा व्यक्तिगत अधिकारों के मुददों को उठाया।
आजादी के 1955-1956 में डॉ. आंबेडकर ने हिन्दू विवाह अधिनियम, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम आदि कानून महिलाओ के पक्ष में पारित करवाए,जिनका देश भर में कट्टरपंथी सनातनी लोगों द्वारा विरोध हुआ, जबकि भारतीय महिला फेडरेशन जैसे संगठनों ने इनका समर्थन किया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1948में मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा की, जिसका प्रभाव हमारे संविधान पर पड़ा। 1950 में आत्मसमर्पित भारतीय संविधान का मूल अधिकार और नीति निदेशक तव वाले अध्याय पर इस प्रभाव को देखा जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने जेंडर विषमता को पूरी दुनिया से समाप्त करने की दिशा में और कई कदम उठाए,जिसमें08 मार्च 1975 को अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष और 1975 से 1985 को महिला दशक घोषित करना महवपूर्ण है। सन् 1979 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने महिलाओ के खिलाफ हर तरह के उत्पीडऩ की समाप्ति के कन्वेंशन की घोषणा की, जिसके पक्षकार देशों की संख्या 128 थी। पक्षकार देशों में हमारा देश भी शामिल था। इन अन्तराष्ट्रिय गतिविधियों का प्रभाव दहेज उत्पीडऩ कानून, ब्लात्कार के विरुद्ध कठोर कानून, विशाखा निर्णय और घरेलू हिंसा कानून पर देखा जा सकता है। अस्सी के दशक में हिन्दुस्तान में महिला आंदोलन की एक नई लहर देखी गई। इस बार मुकम्मल आजादी का सवाल ज्यादा महत्वपूर्ण था। आज महिलाएँ हर स्तर पर बराबरी के हक और हकूक की मांग कर रही थी,जो बिल्कुल जायज था। हम लोगों ने अपने देश में जनतांत्रिक व्यवस्था स्वीकार की है। इसलिए जनतांत्रिक मूल्यों की मजबूती न केवल राजनीतिक संस्थाओं के लिए बल्कि सामाजिक संस्थाओं के लिए भी महत्वपूर्ण है। विवाह जैसे संस्था भी सामाजिक व्यवस्था के ही अंग है। ऐसा नहीं हो सकता है कि हम राजनीतिक तौर पर जनतांत्रिक मूल्यों की बात तो करें, किन्तु सामाजिक और वैवाहिक संबंधों में वर्णवादी और सामंती मूल्यों को कायम रखें। वर्णविहीन और जेंडर विषमताविहीन समाज में ही जनतांत्रिक मूल्य सशक्त हो सकते हैं।
कन्या भ्रूण हत्या पर कानून
प्रसवार्थ निदान तकनीक (दुरुपयोग का विनियम व निवारण) अधिनियम, 1944
भ्रूण का लिंग जाँचः-
भारत सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या पर रोकथाम के उद्देश्य से प्रसव पूर्व निदान तकनीक के लिए 1994 में एक अधिनियम बनाया। इस अधिनियम के अनुसार भ्रूण हत्या व लिंग अनुपात के बढ़ते ग्राफ को कम करने के लिए कुछ नियम लागू किए हैं, जो कि निम्न अनुसार हैं:
-गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जाँच करना या करवाना।
- शब्दों या इशारों से गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग के बारे में बताना या मालूम करना।
- गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जाँच कराने का विज्ञापन देना।
- गर्भवती महिला को उसके गर्भ में पल रहे बच्चें के लिंग के बारे में जानने के लिए उकसाना गैर कानूनी है।
-कोई भी व्यक्ति रजिस्टे्रशन करवाएँ बिना प्रसव पूर्व निदान तकनीक(पी.एन.डी.टी.) अर्थात अल्ट्रासाउंड इत्यादि मशीनों का प्रयोग नहीं कर सकता।
-जाँच केंद्र के मुख्य स्थान पर यह लिखवाना अनिवार्य है कि यहाँ पर भ्रूण के लिंग (सैक्स) की जाँच नहीं की जाती, यह कानूनी अपराध है।
-कोई भी व्यक्ति अपने घर पर भ्रूण के लिंग की जाँच के लिए किसी भी तकनीक का प्रयोग नहीं करेगा व इसके साथ ही कोई व्यक्ति लिंग जाँचने के लिए मशीनों का प्रयोग नहीं करेगा।
- गर्भवती महिला को उसके परिजनों या अन्य द्वारा लिंग जाँचने के लिए प्रेरित करना आदि भू्रण हत्या को बढ़ावा देने वाली अनेक बातें इस एक्ट में शामिल की गई हैं।
-उक्त अधिनियम के तहत पहली बार पकड़े जाने पर तीन वर्ष की कैद व पचास हजार रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।
- दूसरी बार पकड़े जाने पर पाँच वर्ष कैद व एक लाख रूपये का जुर्माना हो सकता है।
लिंग जाँच करने वाले क्लीनिक का रजिस्टे्रशन रद कर दिया जाता है।
प्रसवपूर्व निदान तकनीकों का वित्तिनयमन :-
इस अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत आनुवंशिक सलाह केन्द्रों, आनुवंशिक प्रयोगशालाओं, आनुवंशिक क्लीनिकों और इमेजिंग सैंटरों में जहां गर्भधारणपूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान तकनीक से संचालन की व्यवस्था है, वहां जन्म पूर्व निदान तकनीकों का उपयोग केवल निम्न लिखित विकारों की पहचान के लिए ही किया जा सकता हैः-
1. गणसूत्र संबंधी विकृति
2. आनुवंशिक उपापचय रोग
3. रक्त वर्णिका संबंधी रोग
4. लिंग संबंधी आनुवंशिक रोग
5. जन्म जात विकृतियां
6. केन्द्रीय पर्यवेक्षक बोर्ड द्वारा संसूचित अन्य असमानताएँ एवं रोग।
इस अधिनियम के अंतर्गत यह भी व्यवस्था है कि प्रसव पूर्व निदान तकनीक के उपयोग या संचालन के लिए चिकित्सक निम्नलिखित शर्तों को भली प्रकार जांच कर लेवे की गर्भवती महिला के भ्रूण की जाँच की जाने योग्य है अथवा नहीं:
1. गर्भवती स्त्री की उम्र 35 वर्ष से अधिक है।
2. गर्भवती स्त्री के दो या दो से अधिक गर्भपात या गर्भस्त्राव हो चुके हैं।
3. गर्भवती स्त्री नशीली दवा, संक्रमण या रसायनों जैसे सशक्त विकलांगता पदार्थों के संसर्ग में रही है।
4. गर्भवती स्त्री या उसके पति का मानसिक मंदता या संस्तंभता जैसे किसी शारीरिक विकार या अन्य किसी आनुवंशिक रोग का पारिवारिक इतिहास है।
5. केन्द्रीय पर्यवेक्षक बोर्ड द्वारा संसुचित कोई अन्य अवस्था है।
पी.एन.डी.टी.एक्टss 1994 के नजर से अपराधी कौनः
-प्रसव पूर्व और प्रसव धारण पूर्व लिंग चयन जिसमें प्रयोग का तरीका, सलाह और कोर्ई भी उपबंध और जिससे यह सुनिश्चित होता हो कि लड़के के जन्म की संभावनाओं को बढ़ावा मिल रहा है, जिसमें आयुर्वैदिक दवाएँ और अन्य वैकल्पिक चिकित्सा और पूर्व गर्भधारण विधियाँ, प्रयोग जैसे कि एरिक्शन विधि का प्रयोग इस चिकित्सा के द्वारा लड़के के जन्म की संभावना का पता लगता है, शामिल हैं।
-अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी मशीन या अन्य तकनीक से गर्भधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और जन्म से पहले कन्या भ्रूण हत्या के लिए लिंग परीक्षण करना, करवाना, सहयोग देना, विज्ञापन करना कानूनी अपराध है।
गर्भपात का कानून
(गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971)
गर्भवती स्त्री कानूनी तौर पर गर्भपात केवल निम्नलिखित स्थितियों में करवा सकती है :
1. जब गर्भ की वजह से महिला की जान को खतरा हो ।
2. महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो।
3. गर्भ बलात्कार के कारण ठहरा हो।
4. बच्चा गंभीर रूञ्प से विकलांग या अपाहिज पैदा हो सकता हो।
5. महिला या पुरुष द्वारा अपनाया गया कोई भी परिवार नियोजन का साधन असफल रहा हो।
-यदि इनमें से कोई भी स्थिति मौजूद हो तो गर्भवती स्त्री एक डॉक्टर की सलाह से बारह हफ्तों तक गर्भपात करवा सकती है। बारह हफ्ते से ज्यादा तक बीस हफ्ते (पाँच महीने) से कम गर्भ को गिरवाने के लिए दो डॉक्टर की सलाह लेना जरुरी है। बीस हफ्तों के बाद गर्भपात नहीं करवाया जा सकता है।
- गर्भवती स्त्री से जबर्दस्ती गर्भपात करवाना अपराध है।
- गर्भपात केवल सरकारी अस्पताल या निजी चिकित्सा केंद्र जहां पर फार्म बी लगा हो, में सिर्फ रजिस्ट्रीकृत डॉक्टर द्वारा ही करवाया जा सकता है।
धारा 313
स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात कारित करने के बारे में कहा गया है कि इस प्रकार से गर्भपात करवाने वाले को आजीवन कारावास या जुर्माने से भी दण्डित किया जा सकता है।
धारा 314
धारा 314 के अंतर्गत बताया गया है कि गर्भपात कारित करने के आशय से किये गए कार्यों द्वारा कारित मृत्यु में दस वर्ष का कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जा सकता है और यदि इस प्रकार का गर्भपात स्त्री की सहमति के बिना किया गया है तो कारावास आजीवन का होगा।
धारा 315
धारा 315 के अंतर्गत बताया गया है कि शिशु को जीवित पैदा होने से रोकने या जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया कार्य से सम्बन्धित यदि कोई अपराध होता है, तो इस प्रकार के कार्य करने वाले को दस वर्ष की सजा या जुर्माना दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
कानूनी जागरूकता द्वारा सशक्तिकरण
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महिला उत्पीड़न की समस्या से जूझने हेतु एवं महिलाओं की सुरक्षा के लिए अनेक कानून बनाए गए हैं। इनके अतिरिक्त कई अंतराष्ट्रीय कनवेन्शन भी इससे संबंधित है, जो भारत पर भी लागू है। महिलाओं के लिए इन कानूनों की जानकारी अत्यावश्यक है, क्योंकि यह कानून न केवल न्याय का रास्ता दिखाते हैं, अपितु महिलाओं को अन्याय एवं उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने का साहस भी प्रदान करते हैं।
सीडो (कन्वेंशन ऑन द एलीमिनेशन ऑफ ऑल फार्म्स ऑफ डिस्क्रिमिनेशन अगेन्स्ट वुमेन)
सीडो ने उत्पीड़न की परिभाषा को बढ़ाकर उसमें महिला उत्पीड़न को भी शामिल कर लिया है। सीडो के अनुसार पारम्परिक धारणाएं जो महिलाओं को पुरुषों से गौण मानती हैं या उनकी रूढ़िवादी भूमिका तय करती हैं, उनकी वजह से महिलाओं पर अनेक तरह से अत्याचार हुए हैं जैसे पारिवारिक अत्याचार, जबरन विवाह, दहेज हत्या इत्यादि। महिलाओं पर इस तरह के शारीरिक और मानसिक अत्याचारों का परिणाम है,उन्हें समाज में समान दर्जा मिलने से वंचित करना एवं उन्हें उनके मानवाधिकारों का प्रयोग करने से रोकना सब उत्पीडऩ के दायरे में आते हैं।
हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण
विधिक सेवाएँ प्राधिकरण अधिनियम, 1987, की धारा 12 तथा नियम 1996 के नियम 19 के अन्तर्गत मुफ्त कानूनी सहायता निम्न को मिल सकती हैः-
(क) कोई भी भारतीय नागरिक जिसको सभी साधनों से वार्षिक आय पचीस हजार रूपये से अधिक नहीं है। (उप-मंडल स्तर, जिला स्तर, उच्च न्यायालय),
(ख) कोई भी भारतीय नागरिक जिसकी सभी साधनों से वार्षिक आय, पचास हजार रूपये से अधिक नहीं है (उच्चतम न्यायालय स्तर पर)
(ग) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या पिछड़े वर्गो के सदस्यों को,
(घ) देह व्यापार में पीडि़त अथवा बेगार (बन्धुआ मजदूरों) को,
(ड़) महिलाओं को,
(च) नाबालिग बच्चों जैसे बच्चे अट्ठारह वर्ष तक की आयु के ऐसे बच्चों को जो संरक्षण और प्रतिपालन अधिनियम 1890 के अन्तर्गत प्ररिपालक की देख रेख में हों,
(छ) मानसिक रोगियों या विकलांग व्यक्तियों को जैसे कि अंधे, बहुत कम दिखाई देने वाले, बहरे, कमजोर दिमाग वाले, लूले लंगड़े व कुष्ठ रोग से पीडि़त रहे व्यक्तियों को,
(ज) सामूहिक संकट, मानव जातीय हिंसा, जातीय अत्याचार, बाढ़ सूखा, भूचाल अथवा औद्योगिक विपात्ति से पीडि़त होने के कारण अनर्जित अभाव की परिस्थितियों के अधीन व्यक्तियों को,
(झ) श्रमिकों को,
(ञ) ऐसे व्यक्तियों को जो देह व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 की धारा (2) के खंड (छ) के अंतर्गत अभिरक्षण में रखे गये हो तथा किशोर न्याय अधिनियम 1986 की धारा (2) के खंड (ज) के अंतर्गत किशोर गृह में अभिरक्षित व्यक्तियों को,
(ट) मानसिक अस्पताल या नर्सिंग होम में दाखिल व्यक्तियों को,
(ठ) ऐसा कोई केस जिसके निर्णय से गरीब तथा कमजोर वर्गों से सम्बन्धित अधिकांश बहुसंख्यक व्यक्तियों के मामले प्रभावित होने की संभावना हो,
(ड) उन विशेष मामलों में ऐसे किसी व्यक्ति को जिसके लिए अभिलिखित कारणों के लिए विधिक सेवा का पात्र समझा जाए चाहे वहां साधन परीक्षण संतुष्टि् न भी हो
(ढ) उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के आदेशनुसार अहम केसों में
(न) यथार्थ लोकहित की दशा में किसी व्यक्ति को।
मुफ्त कानूनी सेवा निम्न तरीके से दी जा सकती हैः-
(1) कोर्ट फीस, तलवाना, गवाहों का खर्चा, पेपर बुक तैयार करवाने का खर्चा, वकील की फीस तथा अन्य खर्च जो कानूनी कार्यवाही करने मे लगते हो, ऐसे सब खर्चो की आदायगी से।
(2) कानूनी कार्यवाही करने में वकील द्वारा पैरवी की फीस अदा करके।
(3) कानूनी कार्यवाही के फैसलों, आदेशों टिप्पणी या ब्यानों की प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए लगे खर्चे की भरपाई करके।
(4) अपील की पेपर बुक तैयार करने के लिए ताकि इसमें विधक कार्यवाहियों के लिए संबंधित खर्चे जैसा कि टाइपिंग, अनुवाद, प्रिंटिंग वगैरा पर किये गए खर्चे की भरपाई से।
(5) विविध दस्तावेजों, का प्रारूञ्पण/ड्राफ्टिंग प्राप्त करने के लिए किये गए खर्चे की आदायगी से।
मुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त करने के लिए निम्न को सम्पर्क किया जाना चाहिए-
(1) उच्चतम न्यायालय पर :-
सदस्य सचिव,
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण
12/11, जामनगर हाऊस,
नई दिल्ली, पिन कोड- 110011
या
सचिव,
उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति,
109, लायर्स चैम्बर्ज,
पी.ओ.विंग, सुप्रीम कोर्ट कम्पाऊड,
नई दिल्ली, पिन कोड-110011
(2) उच्च न्यायालय परः-
कार्यकारी अध्यक्ष / सदस्य सचिव
हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण,
एस.सी.ओ. न.-20 पहली मंजिल,
सैक्टर 7 सी, चण्डीगढ -160019
पंजीकरण अधिकारी (रजिस्ट्रार)
पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय एवं सचिव
उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय, चण्डीगढ़
पिन कोड - 160001
(3) जिला स्तर पर :-
जिला एवं सत्र न्यायाधीश व
अध्यक्ष / मुख्य दण्डाधिकारी
एवं सचिव,
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण
नोट :- अगर प्रधान कार्यालय में किसी जिला एवं सत्र न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं की गई है तो मुफ्त कानूनी सहायता के लिए याचिका मुख्य अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, वरिष्ठ अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश / वरिष्ठ् अधिकारी को दिया जा सकता है।
(4) उप मंडल स्तर पर -
अतिरिक्त सिविल जज
(सीनियर डिवीजन)
एवं अध्यक्ष उप-मंडल
विधिक सेवा समिति ।
महिलाओं के सहायतार्थ सरकार ने जिला स्तर पर समितियों का गठन किया हुआ है, यह समितियां महिलाओं की हर संभव सहायता करती हैं।
जिला जनसंपर्क एंव कष्ट निवारण समिति
इस समिति द्वारा महिलाओं सहित सभी वर्गों के सभी प्रकार के मसलों का मौके पर ही निवारण करने का प्रयास किया जाता है। इस समिति का अध्यक्ष माननीय मुख्यमंत्री, मंत्री, मुख्य संसदीय सचिव, संसदीय सचिव, विधायक आदि में से कोई भी हो सकता है तथा समिति के उपाध्यक्ष जिला के उपायुक्त होते हैं। इसके सदस्य वरिष्ठ अधीक्षक, वरिष्ठ अधिकारी, गैर सरकारी संगठनों के सदस्य, बुद्धिजीवी व समाजसेवी होते हैं। इस समिति की मीटिंग के दौरान सभी विभागों के आला अधिकारी उपस्थित होते हैं ताकि शिकायत का मौके पर ही निवारण किया जा सके।
जिला यौन उत्पीड़न समिति
उच्चतम न्यायालय के फैसले (विशाखा बनाम राजस्थान) के आदेशानुसार प्रदेश सरकार ने हर जिले में एक समिति बनाई है। कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, निजी व सरकारी दफ्तर, न्यायालय परिसर, बस स्टैंड इत्यादि सार्वजनिक स्थानों पर छेड़छाड़ व यौन उत्पीड़न करने वालों पर लगाम कसने हेतु इस समिति का गठन किया गया है। इस समिति के सदस्यों में प्रत्येक जिले के उपायुक्त, सब डिविजन मजिस्ट्रेट, पुलिस कप्तान, हर विभाग के आयुक्त, रजिस्ट्रार पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय चंडीगढ़, गैर सरकारी संस्था के सदस्य शामिल होते हैं।
जिला दहेज उन्मूलन सलाह कार्यसमिति
सरकार ने दहेज की बढ़ती समस्या को देखते हुए हर जिले में दहेज उन्मूलन समिति का गठन किया है। इस समिति की अध्यक्ष कार्यक्रम अधिकारी/लेडिज सर्कल सुपरवाइजर होती हैं, तथा इसके सदस्यों में बाल विकास परियोजना अधिकारी, मुख्य सेविका तहसील कल्याण अधिकारी, दो महिला समाज सेविकाएँ शामिल होती हैं।
महिला उत्पीड़न के खिलाफ समिति का गठन
केंद्र सरकार के आदेश पर महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के तुरंत निवारण हेतु जिला स्तरीय समिति बनाई गई। इस समिति के अध्यक्ष जिला उपायुक्त होते हैं तथा आरक्षी अधीक्षक, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिला न्यायवादी, कार्यक्रञ्म अधिकारी जिला बाल विकास योजना, लेडिज सर्कल सुपरवाइजर, दो महिला समाजसेविकाएं, जिला के दो वरिष्ठ वकील (जिसमें एक महिला वकील अनिवार्य है) तथा कोई अन्य सदस्य हो सकते हैं।
इस समिति का कार्य निम्न प्रकार हैः-
महिलाओं के अधिकारों को लेकर उचित कदम उठाना।
महिलाओं पर अत्याचारों की शिकायत को दर्ज कर, जाँच कर फैसला सुनाना।
महिलाओं पर हुए अत्याचार की जाँच करते समय जिला पुलिस/जिला मजिस्ट्रेट/जिला न्यायालय के साथ समन्वय बनाए रखना।
महिलाओं के खिलाफ फौजदारी मुकद्मा दायर होने पर उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना।
स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा माँग किए जाने पर कानूनी मदद व सलाह देना।
महिला उत्पीड़न के केसों की सुनवाई के दौरान उसकी मदद करना व जाँच करना।
परिवार परामर्श केंद्र, कौटोम्बिक न्यायालय/कानूनी सहायता केंद्र के साथ मिलकर काम करना।
गैर सरकारी संस्था, वकील शिक्षण संस्थान व मीडिया के साथ मिलकर महिलाओं के साथ कानूनी साक्षरता व उनके अधिकारों के बारे प्रचार व प्रसार करना।
प्रसवार्थ निदान तकनीक (दुरूपयोग का बिनियम/निवारण) समिति
इस समिति का मुख्य कार्य लिंगानुपात पर कंट्रोल करना होता है। यह समिति किसी भी नर्सिंग होम में भ्रूण हत्या, अल्ट्रासाउंड द्वारा लिंग जांच व अन्य तरीके से कन्या भ्रूण हत्या के विषय में जानकारी मिलते ही कार्रवाई करती है। इस समिति के अध्यक्ष सिविल सर्जन होते हैं तथा सदस्यों में वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, जिला मलेरिया अधिकारी, बाल विशेषज्ञ चिकित्सा अधिकारी, महिला चिकित्सा अधिकारी, जिला लोक संपर्क अधिकारी, जिला परिवार कल्याण अधिकारी, जिला मजिस्ट्रेट, कार्यक्रम अधिकारी, बाल विकास परियोजना अधिकारी, इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष, प्रधानाध्यापिका, समाजसेविकाएँ, सचिव जिला रेड क्रास सोसाइटी व गैर सरकारी संस्था के सदस्य शामिल होते हैं।
घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून लागू
सरकार को तभी कानून बनाना पड़ता है, जब सामजिक बंधन ढीले पड़ जाते हैं। कानूनी डंडे से सजा का भय दिखाया जाता है। इधर ऐसे कई कानून बने हैं जिनका उद्देश्य परिवार में सुख-चैन लाना है। ऐसा सोचा गया कि घरेलू हिंसा निषेधात्मक कानून बनने पर घरेलू हिंसा समप्त होगी? पर सच तो यह है कि इन कानूनों से सामजिक समस्याएं कम नहीं होतीं। फिर भी कानून बनने आवश्यक हैं। पारिवारिक परेशानियों के लिए कितनी बार कोई कचहरी जाए। कोर्ट का काम परिवार चलाना नहीं है। हर परिवार में पुलिस भी नहीं बैठाई जा सकती। कानून का डंडा भय उत्पन्न करने के लिए है।
भारत की प्रथम महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी मानती हैं कि महिलाएँ ही महिलाओं पर अत्याचार का पहला कारण होती हैं ,यदि महिलाएँ तय कर लें कि जिस घर में महिलाएँ हैं वहां महिलाओं पर अत्याचार नहीं होगा, तो सब कुछ बदल सकता है। उनका मानना है कि समाज में महिला की स्थिति बदल रही है और आगे भी बदलेगी, लेकिन पाँच हजार साल की मानसिकता बदलने में वक्त लगेगा। हमें घरेलू हिंसा के ग्राफ में बढ़ोतरी दिख रही है, अभी तो महिलाओं पर अत्याचार के मामले और बढ़ते हुए दिखेंगे, लेकिन इसका कारण यह है कि महिलाओं में जागरुकता आ रही है और ज़्यादा महिलाएँ शिकायत करने पहुँच रही हैं। लेकिन शिकायत दर्ज करवाने के बाद भी सजा मिलने की दर बहुत कम है और सिर्फ सौ में से दो लोगों को सजा मिल पाती है।
सेंटर फॉर सोशल रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार तीन साल प्रताडि़त होने के बाद एक हजार में से एक महिला ही शिकायत दर्ज करवाने पहुँचती है।
भारत में घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून अमल में आ गया है जिसमें महिलाओं को दुर्व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करने का प्रावधान है। यह कानून महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाएगा क्योंकि केवल भारत में ही लगभग 70 प्रतिशत महिलाएँ किसी न किसी रूप में इसकी शिकार हैं।
घरेलू हिंसा विरोधी कानून से बड़ी उम्मीदें हैं। इसके तहत पत्नी या फिर बिना विवाह किसी पुरुष के साथ रह रही महिला मारपीट, यौन शोषण, आर्थिक शोषण या फिर अपमानजनक भाषा के इस्तेमाल की परिस्थिति में कार्रवाई कर सकेगी।
अब बात-बात पर महिलाओं पर अपना गुस्सा उतारने वाले पुरुष घरेलू हिंसा कानून के फंदे में फंस सकते हैं।
इतना ही नहीं, लडक़ा न पैदा होने के लिए महिला को ताने देना,
उसकी मर्जी के बिना उससे शारीरिक संबंध बनाना या
लडक़ी के न चाहने के बावजूद उसे शादी के लिए बाध्य करने वाले पुरुष भी इस कानून के दायरे में आ जाएंगे।
इसके तहत दहेज की मांग की परिस्थिति में महिला या उसके रिश्तेदार भी कार्रवाई कर पाएँगे।
महवपूर्ण है कि इस कानून के तहत मारपीट के अलावा यौन दुर्व्यवहार और अश्लील चित्रों, फिल्मों कोञ् देखने पर मजबूर करना या फिर गाली देना या अपमान करना शामिल है।
पत्नी को नौकरी छोडऩे पर मजबूर करना या फिर नौकरी करने से रोकना भी इस कानून के दायरे में आता है।
इसके अंतर्गत पत्नी को पति के मकान या फ्लैट में रहने का हक होगा भले ही ये मकान या फ्लैट उनके नाम पर हो या नहीं।
इस कानून का उल्लंघन होने की स्थिति में जेल के साथ-साथ जुर्माना भी हो सकता है।
लोगों में आम धारणा है कि मामला अदालत में जाने के बाद महीनों लटका रहता है, लेकिन अब नए कानून में मामला निपटाने की समय सीमा तय कर दी गई है। अब मामले का फैसला मैजिस्ट्रेट को साठ दिन के भीतर करना होगा।
दहेज पर कानून
दहेज प्रतिशोध अधिनियम,1961
शादी से संबंधित जो भी उपहार दबाव या जबरदस्ती के कारण दूल्हे या दुल्हन को दिये जाते हैं, उसे दहेज कहते है। उपहार जो मांग कर लिया गया हो उसे भी दहेज कहते हैं।
-दहेज लेना या देना या लेने देने में सहायता करना अपराध है। शादी हुई हो या नहीं इससे फर्क नहीं पड़ता है। इसकी सजा है पाँच साल तक की कैद, पन्द्रह हजार रूञ्.जुर्माना या अगर दहेज की रकम पन्द्रह हजार रूञ्पये से ज्यादा हो तो उस रकम के बराबर जुर्माना।
- दहेज मांगना अपराध है और इसकी सजा है कम से कम छःमहीनों की कैद या जुर्माना।
-दहेज का विज्ञापन देना भी एक अपराध है और इसकी सजा है कम से कम छः महीनों की कैद या पन्द्रह हजार रूञ्पये तक का जुर्माना।
दहेज हत्या पर कानून :
(धारा 304ख, 306भारतीय दंड संहिता)
-यदि शादी के सात साल के अन्दर अगर किसी स्त्री की मृत्यु हो जाए,
-गैर प्राकृतिक कारणों से, जलने से या शारीरिक चोट से, आत्महत्या की वजह से हो जाए,
-और उसकी मृत्यु से पहले उसके पति या पति के किसी रिश्तेदार ने उसके साथ दहेज के लिए क्रूर व्यवहार किया हो,
तो उसे दहेज हत्या कहते हैं। दहेज हत्या के संबंध में कानून यह मानकर चलता है कि मृत्यु ससुराल वालों के कारण हुई है।
इन अपराधों की शिकायत कौन कर सकता हैः-
1. कोई पुलिस अफसर
2. पीडि़त महिला या उसके माता-पिता या संबंधी
3. यदि अदालत को ऐसे किसी केस का पता चलता है तो वह खुद भी कार्यवाई शुरूञ् कर सकता है।
भरण पोषण पर कानून
(धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता)
महिला का भरण पोषण
यदि किसी महिला के लिए अपना खर्चा- पानी वहन करना संभव नहीं है तो वह अपने पति, पिता या बच्चों से भरण-पोषण की माँग कर सकती।
विवाह संबंधी अपराधों के विषय में भारतीय दण्ड संहिता 1860,
धारा 493 से 498 के प्रावधान करती है।
धारा 493
धारा 493 के अन्तर्गत बताया गया है कि विधिपूर्ण विवाह का प्रवंचना से विश्वास उत्प्रेरित करने वाले पुरुष द्वारा कारित सहवास की स्थिति में, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिनकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
धारा 494
धारा 494 के अन्तर्गत पति या पत्नी के जीवित रहते हुए विवाह करने की स्थिति अगर वह विवाह शून्य है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। बहुविवाह के लिए आवश्यक है कि दूसरी शादी होते समय शादी के रस्मो-रिवाज पर्याप्त ढंग से किये जाएं।
धारा 494 क
धारा 494क में बताया गया है कि वही अपराध पूर्ववती विवाह को उस व्यक्ति से छिपाकर जिसके साथ पश्चात्वर्ती विवाह किया जाता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी।
धारा 496
धारा 496 में बताया गया है कि विधिपूर्ण विवाह के बिना कपटपूर्ण विवाहकर्म पूरा कर लेने की स्थिति में से वह दोनों में किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
धारा 497
व्यभिचार की स्थिति में वह व्यक्ति जो यह कार्य करता है वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा। ऐसे मामलों में पत्नी दुष्प्रेरक के रूप में दण्डनीय नहीं होगी।
धारा 498
धारा 498 के अन्तर्गत यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति विवाहित स्त्री को आपराधिक आशय से फुसलाकर ले जाता है या ले आना या निरूञ्द्घ रखना है तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
धारा 498 क
सन् 1983 में भारतीय दण्ड संहिता में यह संशोधन किया गया जिसके अन्तर्गत अध्याय 20 क, पति या पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में, अन्त स्थापित किया गया इस अध्याय के अन्तर्गत एक ही धारा 498-क है, जिसके अन्तर्गत बताया गया है कि किसी स्त्री के पति या पति के नातेदारों द्वारा उसके प्रति क्रूरता करने की स्थिति में दण्ड एवं कारावास का प्रावधान है इसके अन्तर्गत बताया गया है कि जो कोई, किसी स्त्री का पति या पति का नातेदार होते हुए, ऐसी स्त्री के प्रति क्रूरता करेगा, उसे कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
क्रूरता दो तरह की हो सकती है - मानसिक तथा शारीरिक
- शारीरिक क्रूरता का अर्थ है महिला को मारने या इस हद तक शोषित करना कि उसकी जान, शरीर या स्वास्थ्य को खतरा हो।
-मानसिक क्रूरता जैसे- दहेज की मांग या महिला को बदसूरत कहकर बुलाना इत्यादि।
-किसी महिला या उसके रिश्तेदार या संबंधी को धन-संपति देने के लिये परेशान किया जाना भी क्रूरता है।
-अगर ऐसे व्यवहार के कारण औरत आत्महत्या कर लेती है तो वह भी क्रूरता कहलाती है।
यह धारा हर तरह की क्रूरता पर लागू है चाहे कारण कोई भी हो केवल दहेज नहीं।
सती प्रथा पर कानून
(सती प्रथा निवारण अधिनियम, 1787)
सती प्रथा
यदि कोई स्त्री सती होने की कोशिश करती है उसे छः महीने कैद तथा जुर्माने की सजा होगी।
सती होने के लिए प्रेरित करना या सहायता करना
यदि कोई व्यक्ति किसी महिला को सती होने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रेरित करे या उसको सती होने में सहायता करे तो उसे मृत्यु दण्ड या उम्रकैद तक की सजा होगी।
समान काम, समान वेतन
समानता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में है पर यह लैंगिक न्याय के दायरे में 'समान काम, समान वेतन' के दायरे में महत्वपूर्ण है। 'समान काम, समान वेतन' की बात संविधान के अनुच्छेद 39 (घ) में कही गयी है पर यह हमारे संविधान के भाग चार 'राज्य की नीति के निदेशक तत्व' के अन्दर है। महिलायें किसी भी तरह से पुरुषों से कम नहीं है। यदि वे वही काम करती है जो कि पुरुष करते हैं तो उन्हें पुरुषों के समान वेतन मिलना चाहिये। यह बात समान पारिश्रमिक अधिनियम में भी कही गयी है।
गर्भ जांच : कल और आज
पुराने जमाने में गर्भ की जांच दाइयों द्वारा गर्भवती स्त्री के पेट पर हाथ से दबा कर की जाती थी। अनुभवी दाइयां गर्भवती स्त्री के चलने, उठने, बैठने मात्र से अंदाजा लगाकर गर्भस्थ शिशु की स्थिति भांप जाती थी, यही नहीं, कुछ लक्षणों के आधार पर गर्भ में पल रहे शिशु का लिंग भी बता देती थी।
यदि दाई गर्भ में पल रहे शिशु का लिंग, पुल्लिंग बताती तो गर्भवती स्त्री के परिजन उसे मिठाइयां व उपहार देते तथा गर्भवती स्त्री की गर्भकाल में पूर्ण देखभाल करते और यदि वो लड़की होने की ''आशंका'' जता देती तो बेचारी गर्भवती स्त्री को गर्भकाल के दौरान ही प्रताड़ना देना शुरू कर दी जाती थी तथा गर्भस्थ शिशु के लिंग बदलने की कुचेष्टा से 'शर्तिया लड़का होने की 'दवा' दी जाती। इस धरती पर जन्म वही लेता है, जिसे परमात्मा ने निश्चित किया हुआ है, लेकिन उस शर्तिया दवा का कुप्रभाव अवश्य हो जाता है। पैदा हुई कन्या के बड़े होने पर मर्दों की भांति चेहरे व शरीर पर अनचाहे बाल उग आते हैं। लड़कियों की कोमल आवाज के स्थान पर लड़कों जैसी कर्कश आव़ाज गले से निकलती है।
धीरे-धीरे समय बदला, एलौपेथिक चिकित्सा पद्धति ने चिकित्सा -विज्ञान में अनेक उपलब्धिया हासिल की। इसमें गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य के साथ-साथ लिंग परीक्षण की तकनीक भी विकसित हुई।
गर्भ परीक्षण का मुख्य उद्देश्य गर्भ में उत्पन्न किसी भी आनुवंशिक त्रुटि का पता लगाना होता है, ताकि विकलांग शिशु की जन्मदर को नियंत्रित किया जा सके। गर्भ परीक्षण के दौरान गर्भस्थ शिशु के लिंग का पता चलने की वजह से यह परीक्षण गर्भ परीक्षण कम और लिंग परीक्षण अधिक हो गया। प्रारंभ में लिंग परीक्षण की विधियां अत्यंत कष्टप्रद व हानिकारक होने के अतिरिक्त लिंग आकलन का अनुमान भी सही नहीं होता था।
सन् 1974 में गर्भजल परीक्षण की तकनीक का भारत में चलन शुरू हुआ। यह तकनीक भी आनुवंशिक त्रुटि का पता लगाने के उद्देश्य से ही विकसित हुई थी। इस तकनीक में गर्भ के बारहवें सप्ताह में गर्भास्य से एक सुई द्वारा पानी लिया जाता है जिसे गर्भ जल कहते हैं। इस गर्भ जल में भ्रूण की कोशिकाएं भी पाई जाती हैं। इस गर्भजल से कोशिकाओं को अलग कर फ्लोरेसेंट सूक्ष्मदर्शी के द्वारा जांचा जाता है, या चार-पांच सप्ताह तक एक विशेष विधि से रखकर इन्हें बढ़ने दिया जाता है, फिर इनकी जांच की जाती है। देखने सुनने में यह तकनीक सुरक्षित लगती है लेकिन इस परीक्षण के दौरान खून का बहाव होने लगता है। कई बार तो स्वतः ही गर्भपात भी हो जाता है। सुई से संक्रमण का खतरा बना रहता है। गर्भजल में भ्रूण के साथ-साथ मां की कोशिकाओं के मौजूद रहने के कारण यह पूर्णतया विश्वसनीय तकनीक सिद्ध नहीं हो पाई।
इसके बाद कोरियान विलाई वायोप्सी विधि का विकास हुआ। यह गर्भजल परीक्षण से कम पीड़ादायक व अधिक विश्वसनीय सिद्ध हुआ। इस विधि में गर्भ के छठे से तेहरवें सप्ताह के बीच भ्रूण के आसपास के उत्तक लंबी कोशिकाओं को अलग कर जांच की जाती है। इस परीक्षण से कई महत्वपूर्ण आनुवंशिक दोषों का पता लगाया जा सकता है, लेकिन इस विधि से भी गर्भवती महिला को रक्त स्त्राव व स्वतः गर्भपात का खतरा बना रहता है। कई बार तो महिलाएं बांझ भी हो जाती थी या गर्भास्य कमजोर पड़ने से भविष्य में गर्भधारण की संभावनाएं कम हो जाती थी।
इसके बाद ऐमानियोटेसिस मशीन का चलन हुआ। यह कम खर्चीली व कम कष्टप्रद होने के कारण काफी लोकप्रिय हुई, लेकिन इस मशीन के बाद भ्रूण के लिंग निर्धारण के लिए सस्ती, अधिक विश्वसनीय व कम कष्टदायी मशीन का आगमन हुआ जिसे हम सब अल्ट्रासाउंड के नाम से जानते हैं। इसके आने के बाद समाज का एक अमानवीय चेहरा उभरकर सामने आया। पुत्रेच्छा के चलते अल्ट्रासाउंड मशीन संचालकों के क्लीनिकों के बाहर लंबी कतारें लगने लगी। फिर शुरू हुआ कन्या भ्रूण हत्याओं का नृशंस दौर, जो आज भी जारी है।
विज्ञान के विकराल रूप ने नारी को संसार के सबसे सुरक्षित स्थान पर भी सुरक्षित नहीं रहने दिया। जन्म से पूर्व मां की कोख बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित स्थान होती है। मां की कोख सदैव अभेदनीय व अति गोपनीय मानी जाती थी लेकिन विज्ञान ने मां की ममता के इस अभेदनीय किले को भेद दिया और अल्ट्रासाउंड जैसी मशीन ने इसकी गोपनीयता को समाप्त कर इसे सार्वजनिक कर दिया।
दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और महाराष्ट्र में जेंटर-मेंटर किट का व्यवसाय आजकल जोरों पर है। देहात में जन्तर-मंतर किट के नाम से मशहूर यह किट 25 अमरीकी डॉलर में उपलब्ध है। यह किट गर्भाधान के पांच सप्ताह के भीतर खून की जांच से बता देता है कि गर्भ में पलने वाला शिशु लडक़ा है या लडक़ी। खून की इस जांच को व्यावसायिक भाषा में बेबी जेंडर-मेन्टर कहा जाता है। खून का सैंपल लेने के बाद इसे अमरीका स्थित मुख्य लैब में भेजा जाता है। इसके बाद रिपोर्ट जानने के लिए ग्राहक को 250 डॉलर और देना होता है। जैसे ही 250 डॉलर कंपनी को अदा किये जाते हैं 24 घंटे के अंदर रिपोर्ट वेबपेज पर डाल दी जाती है जिसे ग्राहक एक पासवर्ड के जरिए खोल सकता है।
इस व्यवसाय में कई भारतीय डॉक्टर व लैबोरेट्ररी संचालक संलिप्त हैं, लेकिन यह व्यवसाय इतना फुल-प्रुफ है कि इसे रोकना थोड़ा मुश्किल है। पहली बात, यह देश के कानून की सरहदों से दूर है। दूसरे, यह टेस्ट नॉन मेडिकल टेस्ट की श्रेणी में आता है इसलिए भी इसे कानूनी रुप से रोक पाना कठिन है। पंजाब और हरियाणा में यह उद्योग का रुप लेता जा रहा है। यदि भारत सरकार ने समय रहते इस पर लगाम न कसी तो इसके नतीजे भयावह हो सकते हैं।
नारी उत्पीड़न से दुःखी व पुत्रेच्छा की लालसा में मां, कोख में बेटी का पता चलते ही दुःखी व परेशान हो उठती है और शीघ्र ही बेटी को अबला-सबला न मानकर बला मानने वाली मां कोख में ही नन्ही जान को मृत्यु दंड़ सुना देती है, या फिर उसके कत्ल के लिए अपनी मूक सहमति जता देती है। इस मृत्युदंड़ को, इस कत्ल को बड़ी सफाई से सफाई का नाम देकर डॉक्टर के रूप में कसाई द्वारा सफाई करवा दी जाती है।
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