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03 April 2017

कन्या के समान कोई रत्न नहीं और कन्यादान का कोई विकल्प नहीं होता : स्वामी विजयानंद गिरी

नुहियांवाली की श्रीरामभक्त हनुमान गोशाला में श्रीरामकथा एवं दुर्लभ सत्संग
ओढ़ां
खंड के गांव नुहियांवाली में श्रीरामकथा एवं दुर्लभ सत्संग के दौरान स्वामी विजयानंद गिरी ने कहा कि अपने युवा पुत्र के आकस्मिक निधन पर एक भी आंसू न बहाने वाला पिता अपनी पुत्री की विदाई पर फूट फूटकर रोता है क्योंकि बेटियां ऐसी ही होती हैं।
पिता को पुत्री तथा पुत्री को पिता से विशेष स्नेह होता है और वे एक दूसरे की पीड़ा को देख नहीं सकते। पुत्री हेतु वर की खोज में गया पिता जब निराश लौटकर पत्नी को बताता है तो उनका वार्तालाप सुन पुत्री कहती है कि पिताश्री आप किसी के पांव पर अपनी पगड़ी रखें ये मुझे मंजूर नहीं अत: मेरी चिंता छोड़ दीजिए जो भाग्य में होगा स्वयं मिल जाएगा। पुत्रों में इस प्रकार की सोच का अक्सर अभाव रहता है इसीलिए विलक्षण होती हैं बेटियां। भाग्यवान होते हैं वे जिनके घर में दो कुलों का उद्धार करने वाली बेटी जन्म लेती है। कन्यादान का कोई विकल्प नहीं होता और कन्या के समान कोई रत्न नहीं होता लेकिन अति दुर्भाग्यपूण है ये कि जिस देश में आदिशक्ति की पूजा होती है उस देश में कुछ बुद्धिहीन लोग कन्या को कोख में कत्ल करने जैसा अक्षम्य अपराध करने में लगे हैं जिसका कोई प्रायश्चित नहीं। उन्होंने कहा कि घर में बेटी पैदा होना शोक नहीं हर्ष का विषय है जिस पर खुशियां मनाई जानी चाहिए। जिन घरों में कन्याएं निवास करती हैं वे हमेशा धन धान्य से भरपूर रहते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि हिंदू और हिंदूस्तान के विकास में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और गीता प्रैस का योगदान अतुलनीय है। ये दो संस्थाएं न होती तो ना जाने हिंदू और हिंदूस्तान आज किस स्थिति में होते। गीता प्रैस के संस्थापक महान गीता मर्मज्ञ जयदयाल गोयंदका का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि यूं ही एक बार सत्संग के दौरान जब उन्होंने कहा कि किसी से वैर न रखो तो एक भक्त ने अपने पास बैठे व्यक्ति की ओर इशारा कर कहा कि मैंने इसके साथ चला रहा वैर त्याग दिया तो दूसरा बोला मैं नहीं त्याग सकता, उसे बहुत समझाया पर वो नहीं माना और बोला कि मैं तो इससे अपना वैरभाव अपने साथ ही लेकर जाऊंगा। उस समय वहां मौजूद जयदयाल गोयंदका जी ने एक ही वाक्य बोला कि भाई यदि साथ ही ले जाना है तो कुछ अच्छा लेकर जाओ वैर का क्या ले जाना। उनके इस वाक्य ने उसका हृदय परिवर्तन कर दिया। उन दोनों में वैर समाप्त होने पर वे दोनों भरी सभा में एक दूसरे के गले लगते हुए इतना फूट फूटकर रोए कि सभी उपस्थितजनों की आंखें नम हो गई। स्वामी जी ने कहा कि संसार में किसी से वैर मत रखो ऐसा करने से जीव के पुण्यकर्म क्षीण हो जाते हैं।
स्वामी जी के आग्रह पर आज कथास्थल के बाहर विशेष रूप में केश कर्तन की व्यवस्था की गई थी जहां अधिकतर श्रद्धालुओं और बच्चों को शिखा धारण करवाई गई और हिंदू धर्म के अनुसार अन्य क्रियाक्लापों को करने बारे जानकारी दी गई। इस अवसर पर ज्यादातर श्रद्धालुओं ने धोती, कुर्ता और पगड़ी धारण की थी तथा विवाहित महिलाएं अपने सुहाग चिन्हों से युक्त होकर एवं बहन बेटियां भी संस्कारित भारतीय परिधान में नजर आई जिसने श्रद्धालुओं को नुहियांवाली में मिनी भारत के दर्शन करवा दिए। इस मौके पर श्रीरामभक्त हनुमान गोशाला के सेवादारों सहित अनगिनत महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।

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