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15 February 2014

जल्द ही फोन पर बातें करना होगा महंगा!

हो जाएगा टैरिफ महंगा!

हो जाएगा टैरिफ महंगा!

सरकार भले ही इस बात से खुश हो कि 2जी स्पेक्ट्रम की ऊंची बोली लगने से वह मोटी कमाई कर लेगी पर उसका असर आम उपभोक्ता पर महंगे टैरिफ रेट के रूप में भी हो सकता है। हालांकि सरकार यहीं कह रही है कि बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से ग्राहकों को फायदा होगा।


इंडस्ट्री के अनुसार कंपनियों ने सेवाएं बनाए रखने के लिए ऊंची बोली लगाई है जिसकी वजह से उनकी लागत बढ़ेगी। ऐसे में पहले से ही कर्ज में डूबी इंडस्ट्री के पास दरों में बढ़ोतरी करने या फिर ऑफर आदि में कटौती करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।


टेलीकॉम इंडस्ट्री पर इस समय करीब 2.50 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। कंपनियों को एक महीने में ही सरकार को 18 हजार करोड़ रुपये चुकाने हैं। पहले से कर्ज में डूबी इंडस्ट्री को बैंक आसानी से नए कर्ज देने के मूड में नहीं है।
 
बैंक कंपनियों को नहीं देंगे आसानी से कर्ज

बैंक कंपनियों को नहीं देंगे आसानी से कर्ज

पंजाब नेशनल बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार टेलीकॉम इंडस्ट्री को बैंकों का एक्सपोजर पहले से ही ज्यादा है। ऐसे में उनको नए कर्ज देना आसान नहीं होगा। खास तौर पर अभी भी स्पेक्ट्रम इस्तेमाल और दूसरे मुद्दों को लेकर स्पष्टता नहीं है।


इंडियन बैंक के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार पिछले रिकार्ड को देखते हुए इंडस्ट्री को कर्ज देना आसान नहीं है। स्पेक्ट्रम के नाम पर बैंकों के लिए कर्ज देना मुश्किल है। क्योंकि उस पर कोई कोलैट्रल नहीं हो सकता है। ऐसे में कंपनियों से पर्सनल गारंटी या दूसरे कोलैट्रल के विकल्प मांगे जा सकते हैं। इसके अलावा बैंक सरकार से भी गारंटी देने की मांग कर सकते हैं।


पूंजी जुटाने के विकल्प पर सीओएआई के डायरेक्टर जनरल राजन मैथ्यू के अनुसार कंपनियों पर कीमतों पर लेकर दबाव रहेगा। ऐसा इसलिए हैं कि ऊंची बोली की वजह से कंपनियों की लागत बढ़ेगी। जहां तक बैंकों से कर्ज लेने की बात है तो निश्चित रूप से कंपनियों के लिए यह चुनौती है। कंपनियां दूसरे विकल्प जैसे इक्विटी आदि के जरिए भी पूंजी जुटाने को तलाश सकती हैं।
 
बैंकों का फंसा है 2.36 लाख रुपया

बैंकों का फंसा है 2.36 लाख रुपया

बैंकों की गैर निष्पादित संपत्तियां (एनपीए) मार्च 2014 तक तीन लाख करोड़ रुपये पहुंचने की संभावना है।


घोषित आंकड़ों के अनुसार सितंबर 2013 तक एनपीए 2.36 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। ऐसे में उन पर सरकार की तरफ से भी कर्ज वसूली और नए कर्ज देने में ज्यादा सख्ती बरतने का दबाव है। इस माहौल में टेलीकॉम इंडस्ट्री के लिए कर्ज जुटाना आसान नहीं होगा।

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