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22 February 2017

चेतन-तत्व के विकास को रोकने में असमर्थ है प्रकृति का तमस-तत्व : नित्यानंद गिरी


ओढ़ां के राधाकृष्ण मंदिर में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह

ओढ़ां
ओढ़ां की श्री श्री 108 बाबा संतोखदास गोशाला में स्थित राधाकृष्ण मंदिर में जारी श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दौरान ऋषिकेश से आमंत्रित कथा व्यास स्वामी नित्यानंद गिरी ने बुधवार को श्रीकृष्ण जन्मकथा का वृतांत सुनाते हुये कहा कि त्रिगुणात्मक प्रकृति के रूप में श्रीकृष्ण की तीन मातायें हैं। पहली रजोगुणी प्रकृतिरूप सांसारिक माया गृह में कैद जन्मदात्री देवकी मां, दूसरी सतगुणी प्रकृति रूपा मां यशोदा जिनके वात्सल्य प्रेमरस को पीकर श्रीकृष्ण बड़े होते हैं और तीसरी इनके विपरीत एक घोर तमस रूपा प्रकृति भी शिशुभक्षक सर्पिणी के समान पूतना मां जिसे आत्मतत्व का प्रस्फुटित अंकुरण नहीं सुहाता और वह वात्सल्य का अमृत पिलाने के स्थान पर विषपान कराती है। इसमें जो गहन संदेश छिपा है वो ये कि प्रकृति का तमस-तत्व चेतन-तत्व के विकास को रोकने में असमर्थ है।

स्वामी जी ने बताया कि अत्याचारी कंस को अपनी प्रिय बहन देवकी से स्नेहवश विवाह के समय देवकी की पालकी वाले रथ का सारथी कंस स्वयं बना। तभी आकाशवाणी होती है कि देवकी का आठवां गर्भ तेरा काल होगा। कंस कांप उठा और तलवार लेकर देवकी को मारने लगा तो वासुदेव जी ने रोकने का प्रयास किया नहीं रूका तो वासुदेव जी ने वचन दिया कि वो देवकी जी के सभी पुत्र उसे सौंप देगा। पहले पुत्र के जन्म पर जब वासुदेव जी वो कोमल शिशु कंस को सौंपा को तो उस मासूम को देख वो राक्षस भी पसीज गया और बोला कि इसका क्या दोष ले जाओ मुझे तो आठवां चाहिये। तब नारद जी वहां पहुंच अपने तर्कों से कंस को उस मासूम की हत्या करने को उकसाकर कंस के पाप का घड़ा भरने में सहयोग देते हैं। इस प्रकार एक-एक करके कंस ने देवकी के सात बालको को निर्दयता पूर्वक मार डाला।

भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जी के जन्म लेते ही जेल ही कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा, एवं पद्मधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा अब मैं शिशु रूप धारण करता हूं तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द बाबा के यहां पहुंचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौप दो। तदुपरांत वासुदेव जी की हथकडियां खुल गई, दरवाजे खुल गये, पहरेदार सो गये और वासुदेव जी कृष्ण को सूप में रखकर गोकुल को चल दिए रास्ते में यमुना श्रीकृष्ण के चरणो को स्पर्श करने के लिए बढऩे लगी भगवान ने अपने पैर लटका दिए चरण छूने के बाद यमुना घट गई वासुदेव यमुना पार कर गोकुल में नन्द के यहां गये बालक कृष्ण को यशोदा जी की बगल मे सुला और कन्या को ले वापस कंस के कारागार में आ गए। दरवाजे पूर्ववत् बंद हो गये। वासुदेव जी के हाथो में हथकडियां पड़ गई, पहरेदार जाग गये तथा कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गई। कंस ने कन्या को पत्थर पर पटक कर मारना चाहा परन्तु वह कंस के हाथो से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण का बोली, हे कंस! मुझे मारने से क्या लाभ? तुझे मारने वाला तो गोकुल में पहुच चुका है।
स्वामी जी के अनुसार कथा के दौरान नाचना, चरणस्पृश करना और रूपया पैसा चढ़ाना मना है परंतु श्रीकृष्ण जन्म की खुशी में स्वामी जी ने जैसे ही नाचने की छूट दी तो सभी श्रद्धालु नाचने लगे, मिष्ठान एवं खिलौनो की वर्षा होने लगी तथा चहुंओर हर्ष की लहर दौड़ गई। इस दौरान भजन ..नंद जी के अंगना में बंट रही आज बधाई एवं सौ सौ बधाई भक्तो जैसे भजनों पर श्रद्धालु खूब नाचे तथा पंडाल में किसी उत्सव सा माहौल बन गया। इस मौके पर श्री हनुमत सेवा समिति के प्रधान जोतराम शर्मा, गोशाला के प्रधान रूपिंद्र कुंडर, डबवाली से गौभक्त रामलाल बागड़ी एवं गोशाला समिति के अनेक पदाधिकारी, विकास बतरा, रामरखी चकेरियां, कृष्णा देवी, अंगुरी देवी, कृष्ण शर्मा फतेहाबाद, मदनलाल गोदारा, जीत सिंह कुंडर, सूरजभान कालांवाली, भूषण गोयल ओढ़ां, धर्मबीर बैनिवाल बनवाला, महावीर गोदारा, सतनारायण गर्ग, हंसराज, विजय गोयल, राजू सोनी, रमेश कुमार, रामकुमार, अशोक कुमार और अमित कुमार सहित बड़ी संख्या में महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।

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