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23 April 2017

मीरां वाली लगन लगाके देख लै आवेगा जवाब तार पाके वेख लै....

डेरा शाह मस्ताना बिलोचिस्तानी में मासिक सत्संग व भंडारा आयोजित
ओढ़ां
गांव घुकांवाली में बस स्टेंड के निकट स्थित डेरा शाह मस्ताना बिलोचिस्तानी में मासिक सत्संग व भंडारा आयोजित किया गया। सत्संग के दौरान डेरा प्रबंधक बाबा गुरदयाल सिंह ने श्रद्धालुओं को बताया कि शाह मस्ताना जी ने 57 वर्ष पूर्व 18 अप्रैल 1960 को चोला बदल लिया था। संगत को संबोधित उन्होंने फरमाया कि मनुष्य का जन्म अति दुलर्भ है जो मालिक ने कृपा कर मनुष्य को प्रदान किया। लेकिन मनुष्य मालिक को भी भूल बैठा और विषय विकारों में जकड़कर रह गया। उन्होंने कहा कि भगवान ने चौरासी के चक्कर से मुक्ति पाने हेतु ही मनुष्य के रूप में जन्म दिया ताकि मनुष्य भगवान के नाम का सुमिरन करके प्रभु के श्री चरणों में स्थान पा सके। उन्होंने कहा कि कलियुग में प्रभु की प्राप्ति अर्थात मुक्ति प्राप्त करना बहुत सरल है क्यों सतयुग, त्रेता अथवा द्वापर की भांति कठोर तप या महायज्ञ के समान फल मात्र नाम सुमिरन से ही प्राप्त हो सकता है लेकिन मनुष्य ने स्वयं को इतना व्यस्त कर लिया है कि वो मालिक का नाम जपने हेतु कुछ समय भी नहीं निकाल पाता जबकि उसका इस संसार में आने का असली उद्देश्य नाम सुमिरन करना ही है।
इस अवसर पर कविराजों ने ..एह वक्त गुजरदा जांदा है, लक्खां विच्चों कोई बिरला मुल्ल वक्त दा पांदा है.., मैं नीवां ते मेरा मुरशद ऊच्चा.., मिलियां तेरे दर तों सतगुरु जी रहमतां हजारां.., तूं जप लै सतगुरु दा नाम तेरी दो दिन दी जिंदगानी.., तेरे नाम दी एह संगत दीवानी, मौज मस्तानी, अंतर्यामी, दिलां दा जानी, बाबा तूं अनामी वालेया.., मेरे सतगुरु जी मुझे बुला लो मैं दर आने के काबिल नहीं हूं.., मीरां वाली लगन लगाके देख लै आवेगा जवाब तार पाके वेख लै.. तथा लानत है लानत तैनूं कर्मा देया मारेया, अपना तूं चंगा मंदा कदे ना विचारेया.. तथा शाह मस्ताना जी नूं हाल अपना मैं सुणाके देखां.. आदि अनेक भजन सुनाकर संगतों को निहाल किया। इस अवसर पर अटूट लंगर भी बरताया गया। इस मौके पर भारी संख्या में महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।

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