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06 January 2020

ब्रह्मविद्या विहंगम योग आश्रम रोहिडांवाली में सत्संग आयोजित

ओढां
ब्रह्मविद्या विहंगम योग आश्रम रोहिडांवाली में आयोजित रविवारीय सत्संत के दौरान प्रवचन पढ़ते हुए साधक राजाराम गोदारा ने उपस्थित श्रद्धालुओं को बताया कि बुद्धि चित्त अहंकार जो पंचभूत का काज, सारा पिंड ब्रह्मांड है जड़ माया का साज। अर्थात कार्य को निश्चय करने वाली वस्तु, समस्त प्राकृतिक विषयों को संचित करने वाला अंत:करण कर्तापन का भाव, जिसके द्वारा जगत के कार्यों को करने की प्रवृत्ति दृढ़ होती है। चारों अंत: करण अलग-अलग है कोई किसी का कार्य या रूपांतर रूप नहीं। मन बुद्धि चित्त एवं अहंकार इन के अलग-अलग कार्य और शरीर में स्थान है। इनके अलग-अलग लक्षण और प्रयोजन है इसलिए एक ही कारण के अवस्था भेद से चार अंत:करण नहीं होते हैं। आत्मा के ब्राह्य प्रवाह के प्रवाहित होने के लिए जड़ जगत के चार अंत:करणों की उत्पत्ति होती है। बिना अंतरण की प्रेरणा से बाह्य करण अर्थात पांच ज्ञानेंद्रियां और पांच कर्मेंद्रियां कार्य नहीं कर सकती। अतएव इन चतुर्दश करणों द्वारा ही आत्मा प्राकृतिक कर्मों का कर्ता और उपभोक्ता होती है। बुद्धि, चित्त और अहंकार ये तीनों करण पंच तत्वों से बनते हैं। समस्त शरीर की रचना पंचतत्व से होती है। स्थूल शरीर पार्थिव है परंतु इसमें सभी तत्वों के अलग-अलग कार्य दिखाई पड़ते हैं। बिना पंचतत्व के कोई एक तत्व से इस विशाल जगत का निर्माण नहीं कर सकता। अनंत ब्रह्मांड सृष्टि पंचभूत द्वारा ही निर्मित होती है। समस्त जड़ अनित्य जगत इस परिणामिनी माया के द्वारा ही बना हुआ है। जगत का उपादान कारण प्रकृति है एवं प्रकृति का कार्य यह पंचभूत जड़ अनित्य जगत है। चित्त, अहंकार और बुद्धि यह पंचभूत से बनते हैं। इसलिए इनका कारण पंचतत्व है।

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