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21 February 2017

श्रीराम ने रूप से जनकपुरी, शील से अयोध्यापुरी तथा बल से लंकापुरी जीती : नित्यानंद गिरी

ओढ़ां के राधाकृष्ण मंदिर में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह
ओढ़ां
ओढ़ां की श्री श्री 108 बाबा संतोखदास गोशाला में स्थित राधाकृष्ण मंदिर में जारी श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दौरान ऋषिकेश से आमंत्रित कथा व्यास स्वामी नित्यानंद गिरी ने मंगलवार को गजराज, प्रह्लाद के पौत्र बली एवं प्रभु श्रीराम से जुड़े तथ्यों का विवेचन करते हुये मानव जीवन में सकारात्मक एवं नकारात्मक कार्यों और विचारों के मानव जीवन पर पडऩे वाले प्रभावों से श्रद्धालुओं को अवगत करवाया।

कथा व्यास स्वामी नित्यानंद गिरी ने बताया कि जीव की रक्षा हेतु प्रभु अनेक रूप धारण करते हैं। जिस डूबते हुये गजराज की रक्षा प्रभु ने श्रीहरि का अवतार लेकर की, वर्तमान संदर्भ में गज ही वह जीव है जो विषय भोग रूपी संसार सागर में डूब रहा है। सुख के समय सभी जीव के सखा, संगी, मित्र व रिश्तेदार बन जाते हैं लेकिन दुख के समय वही सब उसको संकट में फंसा छोड़ जाते हैं। उस समय यदि उसके जीवन में सत्संग का प्रभाव अर्थात आस्तिकता है तो वो भगवान की शरण लेता है तथा उसके पुकारने पर प्रभु उसकी रक्षा करते हैं। स्वामी जी ने बताया कि समुंद्र मंथन के समय सर्वप्रथम हलाहल (विष या जहर) निकला, वैसे ही यदि आप कोई अच्छा काम करते हैं तो सर्वप्रथम आपको विरोध, निंदा और अपमान रूपी विष का पान करना पड़ता है। ऐसे में यदि आप उस विष को भगवान शिव की भांति पचाते हुये अपनी साधना में लीन रहते हैं तो आपको परमात्मा रूपी अमृत की प्राप्ति होती है।
उन्होंने बताया कि समुंद्र मंथन के दौरान निकले 14 रत्नों में से गोमाता मुख्य रत्न मानी जाती है और पृथ्वी पर उससे बड़ा कोई रत्न नहीं है। भगवान ने देवों को अमृत पिलाया और असुरों को मदिरा पिलाई क्योंकि वे इसी के पात्र हैं।
स्वामी जी ने बताया कि मनुष्य के अंदर सद्वृति एवं असद्वृति में हमेशा देवासुर संग्राम चलता रहता है। यदि आप सत्संगी अथवा साधक हैं तो आपकी सद्वृतियां (सकारात्मक सोच) असद्वृति अथवा नकारात्मक वृति रूपी आसुरी शक्तियों को परास्त कर देती हैं और इसी को देवासुर संग्राम कहा गया है। उन्होंने बताया कि भगवान ने बली पर कृपा करने हेतु वामन रूप बनाया और उसके द्वारपाल बनकर उसकी रक्षा की। श्रीराम अवतार की चर्चा करते हुये उन्होंने बताया कि भगवान श्रीराम के जीवन में तीन बातों रूप, शील और बल की प्रधानता है। रूप से उन्होंने जनकपुरी जीती, शील (आचरण) से अयोध्यापुरी जीती तथा बल से लंकापुरी को जीत लिया। एक आदर्श भाई, अरदर्श पति, आदर्श पुत्र, आदर्श मित्र, आदर्श शिष्य और आदर्श राजा कैसा हो इसकी शिक्षा हमें भगवान श्रीराम के जीवन से मिलती है।
इस मौके पर श्री हनुमत सेवा समिति के प्रधान जोतराम शर्मा, गोशाला के प्रधान रूपिंद्र कुंडर, डबवाली से गौभक्त रामलाल बागड़ी एवं गोशाला समिति के अनेक पदाधिकारी, विकास बतरा, रामरखी चकेरियां, कृष्णा देवी, अंगुरी देवी, कृष्ण शर्मा फतेहाबाद, मदनलाल गोदारा, जीत सिंह कुंडर, सूरजभान कालांवाली, भूषण गोयल ओढ़ां, धर्मबीर बैनिवाल बनवाला, महावीर गोदारा, सतनारायण गर्ग, हंसराज, विजय गोयल, राजू सोनी, रमेश कुमार, रामकुमार, अशोक कुमार और अमित कुमार सहित बड़ी संख्या में महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।

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