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29 March 2017

जलनिकासी के अभाव में दुकानों के सामने जमा हुआ गंदा पानी

दुकानदार बोले उनके व्यवसाय पर पड़ रहा है विपरीत प्रभाव
ओढ़ां
राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 9 को फोरलेन करने के दौरान राजमार्ग के किनारे स्थित दुकानों और घरों के हितों की अनदेखी के परिणाम गांववासियों को अब भी भुगतने पड़ रहे हैं। सड़क निर्माण के दौरान जल निकासी की समुचित व्यवस्था न किए जाने के चलते अनेक स्थानों पर जलभराव की समस्या पैदा हो गई है जिसके कारण ग्रामीणों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
ओढ़ां में नैशनल हाइवे पर स्थित दुकानों के मालिकों संतोष श्योराण, बलबीर सिंह, तरसेम सिंह, राजकुमार, देवीलाल, रामचंद्र मायला, मनोज श्योराण, विनोद मल्हान, हरपाल सिंह, मांगेराम, गुलाब सिंह, सचिन कुमार और बसंत लाल सहित अन्य अनेक दुकानदारों ने बताया कि जल निकासी की उचित व्यवस्था न होने के कारण घरों से आने वाला पानी सड़क के किनारे एकत्र होकर तालाब का रूप ले रहा है जिसके चलते उनकी दुकानों के सामने का रास्ता ब्लॉक होकर रह गया है। उन्होंने बताया कि इस समस्या के चलते उनके व्यवसाय पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने मांग की कि उनको जल्दी से जल्दी इस समस्या से छुटकारा दिलाया जाए अन्यथा उन्हें धरना प्रदर्शन करने पर मजबूर होना पड़ेगा।

छायाचित्र: 28ओडीएन1.जेपीजी-ओढ़ां। दुकानों के सामने तालाब के रूप में जमा पानी का दृश्य दिखाते दुकानदार।


नुहियांवाली की श्रीरामभक्त हनुमान गोशाला में श्रीरामकथा एवं दुर्लभ सत्संग
संसार की नि:स्वार्थ सेवा करने वालों का कल्याण करने को व्याकुल रहते हैं भगवान : स्वामी विजयानंद गिरी
ओढ़ां
खंड के गांव नुहियांवाली में जारी श्रीरामकथा एवं दुर्लभ सत्संग के दौरान स्वामी विजयानंद गिरी ने कहा कि शरीर और आप अलग अलग हो। यह शरीर माता पिता का पुत्र है लेकिन आप प्रभु के पुत्र हो। यह शरीर माता पिता द्वारा निर्मित है जो यहीं पैदा हुआ और यहीं नष्ट हो जाएगा अर्थात शरीर जड़ है और उसमें निवास कर रही आत्मा चेतन है। यह शरीर क्षण भर के लिए भी स्थायित्व को प्राप्त नहीं करके निरंतर बदलता रहता है। जैसे एक ही शरीर शिशु, युवा और वृद्ध रूप में अलग अलग दिखता है लेकिन आप जो बचपन में थे अब भी वही हैं। शरीर जन्म लेता है और शरीर ही मरता है आत्मा कभी नहीं मरती। शरीर तो हमारे रहने का स्थान मात्र है जिसमें हम रहते हैं, इस शरीर के मरने के बाद आत्मा पुनर्जन्म लेकर किसी दूसरे शरीर में रहने लगती है।
स्वामी जी ने कहा कि सुख अथवा दुख वही भोगते हैं जो शरीर से अपने संबंध को मान देहाभिमान से ग्रसित होते हैं। वे शरीर को स्वयं मानकर कहते हैं ये शरीर मैं हूं, ये शरीर मेरा है और ये शरीर मेरे लिए है। जो इस बात को समझ ले कि इस संसार में पंच महाभूतों से निर्मित ये शरीर संसार का है और संसार के लिए है तथा इसका उपयोग हमें संसार के हित में ही करना है तो उसका कल्याण उसी क्षण निश्चित हो जाता है। वाली वध के उपरांत श्रीराम के समक्ष पहुंची बाली की पत्नी तारा से प्रभु बोले यदि ये शरीर बाली है तो ये आपके समक्ष है अत: व्यथित क्यों होती हो और यदि इसमें अब तक निवास कर रहा आत्मा बाली था तो उसके लिए दुख क्यों वो तो कभी नष्ट होता ही नहीं? तारा उसी क्षण व्यथाविहीन हो गई। उन्होंने कहा कि मर जाने का भाव पशु बुद्धि है और देहाभिमान विवेक विरोधी तथा शरीर से किया हुआ साधन भी श्रेष्ठ नहीं होता अत: शरीर की बजाय स्वयं से साधन करो जो असीम है।
स्वामी जी ने कहा कि स्थूल शरीर से क्रिया, सुक्ष्म शरीर से चिंतन और कारण शरीर से समाधि आपके लिए नहीं। आप समय, समझ, सामर्थ और सामग्री के आधार पर सबकी नि:स्वार्थ सेवा करो तो कोई कारण ही नहीं कि आपका कल्याण न हो। यदि आप किसी भी रूप में संसार की नि:स्वार्थ सेवा करते हैं तो प्रभु आपका कल्याण करने को व्याकुल हो जाएंगे अत: स्वयं को लोकहित में समर्पित करदो। उन्होंने कहा कि सेवा का शुभारंभ अपने घर से करो। ऐसा न हो कि घर में माता पिता पानी को तरसते रहें और आप मान बड़ाई हेतु लोगों की सेवा में लग जाओ। उन्होंने बताया कि क्रिया और पदार्थसे सेवा सीमित होती है लेकिन हृदय का भाव असीम होता है अत: प्रभु से सबके सुखी होने, निरोग होने तथा मंगल होने की कामना करो तो संसार भले ही सुखी ना हो आपके सुख की गारंटी भगवान लेंगे। उन्होंने कहा कि हिरण्याकशिपू और हिरण्याक्श ने इतनी कठोर तपस्या की कि उनके शरीर गल गए लेकिन वो तपस्या इसलिए व्यर्थ चली गई क्योंकि वो तपस्या संसार के लिए नहीं बल्कि अपने लिए की गई थी। इस मौके पर सरपंच बाबूराम गैदर, जोतराम ओढ़ां ओढ़ां, इंद्रपाल व सूरजभान कालांवाली, गोशाला प्रधान बलराम सहारण, रामप्रताप, भगवान सिंह, दलीप सोनी, महेंद्र सिंह, राजेंद्र नेहरा और रामकुमार नेहरा सहित क्षेत्र के अन्य गांवों से आए श्रद्धालु तथा काफी संख्या में महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।

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