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29 March 2017

भगवान के लिए व्याकुल होकर रोने लग जाओ, वे अवश्य मिलेंगे : विजयानंद गिरी

नुहियांवाली की रामभक्त हनुमान गोशाला में जारी है श्रीरामकथा एवं दुर्लभ सत्संग

ओढ़ां
खंड के गांव नुहियांवाली में जारी श्रीरामकथा एवं दुर्लभ सत्संग के दौरान कथावाचक स्वरूपदास महाराज द्वारा श्रीरामकथा के दौरान भगवान श्रीराम जन्म का सुंदर वर्णन करते हुए बताया कि श्रीरामजन्म पर भगवान के बापरूप का दर्शन हेतु लालायित सभी देवगण पृथ्वी पर उतर आए तथा महादेव भी स्वयं को रोक नहीं पाए। इस अवसर पर उन्होंने श्रीरामजन्म का अति सुंदर शब्दचित्र प्रस्तुत किया जिसे श्रद्धालुओं मंत्रमुग्ध होकर सुना।
दुर्लभ सत्संग का शुभारंभ जय श्री राधे गोबिंद के उच्चारण से करते हुए स्वामी विजयानंद गिरी ने कहा कि धन दौलत जायदाद तो कम ज्यादा हो सकती है लेकिन समय नहीं। उन्होंने कहा कि समय हमारे पास सीमित है अत: भक्त प्रह्लाद की भांति प्रभु को अपना मान लो जो आपके भीतर ही है। उन्होंने कहा कि भगवान कभी भी मनुष्य से पाप नहीं करवाते, पाप तो मनुष्य कामना के वशीभूत होकर करता है। भगवान को पाने के लिए कहीं जाने अथवा कठिन तपस्या करने की आवश्यकता नहीं बल्कि रोना सीख लो तथा भगवान के लिए व्याकुल होकर रोने लग जाओ तो वे अवश्य मिलेंगे। जैसे जब कोई बच्चा रोने लगता है तो मिठाई अथवा खिलौने से भी नहीं बहलता और मां की गोद में जाकर ही चुप होता है। बच्चे के रोने पर मां को भी स्वत: ही पता चल जाता है कि बच्चे को उसकी आवश्यकता है और वो दौड़ी चली आती है। ठीक ऐसा ही रिश्ता भगवान और भक्त का होता है जब आप भगवान के लिए रोओगे तो वे दौड़े चले आएंगे। भजन ...हैं भाव के भूखे भगवन ये वेद बताते हैं ये वेद बताते हैं, जब भक्त पुकारे प्रेम से प्रभु दौड़े आते हैं प्रभु दौड़े आते हैं...।
स्वामी जी ने कहा कि भगवान का विश्व की किसी भी भाषा में न तो वर्णन किया जा सकता है और न ही चिंतन, उनको तो बस पाया जा सकता है। भगवन कहते हैं कि उनको सबसे प्रिय यदि कोई है तो वो मनुष्य है अत: भगवान पूरे के पूरे हमारे हैं और उनको पाया जा सकता है। लेकिन मनुष्य ने स्वयं को मदिरा सेवन, मांस भक्षण, पान गुटका बीड़ी तथा परस्त्रीगमन जैसे व्यस्नों में फंसा रखा है जिसके चलते वो अपनी राह को निरंतर कठिन बनाने में लगा है। जैसे अग्नि से लकड़ी का अंगारा जब छिटककर बाहर निकलता है तो बुझकर काला हो जाता है लेकिन दोबारा अग्नि में डालने पर चमकने लगता है ठीक उसी तरह मनुष्य जब भगवान को पा लेता है तो चमकने लगता है। भगवान के बिना मनुष्य राजा, मंत्री अथवा कितना भी बड़ा पद प्राप्त करले लेकिन वो हमेशा त्रिलोकी का दास ही रहता है अत: बेहतर तो यही है कि स्वयं को भगवान को सौंप दो। अंत में भजन ..अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में..।
इस मौके पर सरपंच बाबूराम गैदर, जोतराम ओढ़ां, सूरजभान कालांवाली, प्रधान बलराम सहारण, रामप्रताप, भगवान सिंह, दलीप सोनी, महेंद्र सिंह, राजेंद्र नेहरा और रामकुमार नेहरा सहित क्षेत्र के अन्य गांवों से आए श्रद्धालु तथा काफी संख्या में महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।

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