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16 March 2018

कथाव्यास सदाशिव नित्यानंद गिरी ने सुनाई राजा परीक्षित की कथा

श्रीकृष्णा गऊशाला में आयोजित की जा रही है श्री गौ भागवत कथा
ओढ़ां
गांव मैहनाखेड़ा स्थित श्रीकृष्णा गऊशाला में समस्त गांववासियों के सहयोग से गऊशाला कमेटी द्वारा आयोजित श्री गौ भागवत कथा के दौरान कथाव्यास सदाशिव नित्यानंद गिरी ने राजा परीक्षित के बारे में बताते हुए कहा कि डारि नाग ऋषि कंठ में, नृप ने कीन्हों पाप। होनहार हो कर हुतो, ऋंगी दीन्हों शाप॥ कलियुग के प्रभाव में आकर राजा परीक्षित साधना में लीन शमीक ऋषि के गले में मृत सर्प डालकर महल लौट आए तो शमीक ऋषि के पुत्र ऋंगी ऋषि ने उन्हें एक सप्ताह उपरांत तक्षक नाग के डसने से मृत्यु होने का श्राप दे डाला।


राजा परीक्षित को पता चला तो वे शेष सात दिन ज्ञान प्राप्ति और भगवत्भक्ति में व्यतीत करने का संकल्प लेते हुए अपने पुत्र जनमेजय का राज्याभिषेक करके समस्त राजसी वस्त्राभूषणों को त्याग केवल चीर वस्त्र धारण कर गंगा के तट पर बैठ गये तथा अपनी समस्त आसक्तियों को त्याग भगवान श्रीकृष्णचन्द्र की भक्ति में लीन हो गए। उनके इस त्याग और व्रत के विषय में सुनकर अत्रि, वशिष्ठ, च्यवन, अरिष्टनेमि, शारद्वान, पाराशर, अंगिरा, भृगु, परशुराम, विश्वामित्र, इन्द्रमद, उतथ्य, मेधातिथि, देवल, मैत्रेय, पिप्पलाद, गौतम, भारद्वाज, और्व, कण्डव, अगस्त्य, नारद, वेदव्यास आदि ऋषि, महर्षि और देवर्षि अपने अपने शिष्यों के साथ उनके दर्शन को पधारे और परीक्षित ने सभी का स्वागत किया। उसी समय वहां जन्म मृत्यु से रहित व्यास ऋषि के पुत्र परमज्ञानी श्री शुकदेव जी पधारे जिनके सम्मान में सभी खड़े हो गए। तदुपरांत सभी के आसन ग्रहण करने के पश्चात् राजा परीक्षित ने मधुर वाणी में कहा हे ब्रह्मरूप योगेश्वर! हे महाभाग! कृपा करके यह बताइये कि मरणासन्न प्राणी के लिये क्या कर्तव्य है? उसे किस कथा का श्रवण, किस देवता का जप, अनुष्ठान, स्मरण तथा भजन करना चाहिये और किन किन बातों का त्याग कर देना चाहिये?
महायोगेश्वर श्री शुकदेव जी बोले हे राजा परीक्षित! मनुष्य जन्म लेने के पश्चात् संसार के मायाजाल में फँस जाता है और उसे मनुष्य योनि का वास्तविक लाभ नहीं मिल पाता क्योंकि दिन काम धंधों और रात नींद तथा स्त्री प्रसंग में बीत जाते हैं। अज्ञानी मनुष्य स्त्री, पुत्र, शरीर, धन, सम्पत्ति सम्बंधियों आदि को अपना सब कुछ समझ उनके मोह में मृत्यु से भयभीत रहता है लेकिन फिर भी मृत्यु का ग्रास बनता है। मृत्यु से भयभीत होने की बजाय उस समय अपने ज्ञान से वैराग्य लेकर प्रभु के नाम का जप करते हुए स्वयं को सम्पूर्ण मोह से दूर कर लेना चाहिये तथा अपनी इन्द्रियों को वश में करके उन्हें सांसारिक विषय वासनाओं से हटाकर चंचल मन को दीपक की लौ के समान स्थिर करना चाहिये। इस प्रकार ध्यान करते से मन भगवत् प्रेम के आनन्द से भर जाता है और फिर चित्त वहां से हटने को नहीं करता है। इस योग धारणा से योगी को हृदय में भगवान के दर्शन हो जाते हैं और भक्ति की प्राप्ति होती है। ऐसे में भगवान के विराट रूप का ध्यान करते हुए यह समझना चाहिये कि जल, वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी आदि पंचतत्व, अहंकार और प्रकृति इन सात पदों से आवृत यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड विराट भगवान का ही शरीर है तथा वही इन सबको धारण किये हुये हैं। कथावाचन के मध्य भजन गायक पुरूषोत्तम ने ..जो करते रहोगे भजन धीरे धीरे, तो मिल जाएगा वो सजन धीरे धीरे, ..छोड़के संसार जब तूं जाएगा, कोई ना साथी तेरा साथ निभाएगा, ..अनमोल तेरा जीवन यूं ही गवां रहा है, किस ओर तेरी मंजिल किस ओर जा रहा है आदि भजनों से श्रद्धालुओं को भक्तिरस में रंग दिया। इस मौके पर सरपंच रामेश्वर दास, रामकुमार, भूरा राम गोदारा, ओमप्रकाश मिस्तरी, रूपराम, दूलाराम और अमर सिंह सहित अनेक महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद रहे।

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