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09 January 2014

मोबाइल इंडियन: आपका मोबाइल फ़ोन, आपका इमरजेंसी दोस्त?

 मंगलवार, 7 जनवरी, 2014 को 11:07 IST तक के समाचार

दिसंबर 2012 की 16 तारीख़ भारत के लिए अहम है. दिल्ली में एक लड़की के साथ हुए सामूहिक बलात्कार ने समाज को झिंझोड़ कर रख दिया तो टेक्नोलॉजी की दुनिया को भी लोगों की सुरक्षा के लिए क़दम उठाने को मजबूर हो गई.
सवाल यह है कि अगर वह लड़की अपने मोबाइल के ज़रिए आपात सूचना भेज पाती तो क्या उसकी मदद की जा सकती थी? पुलिस ने पिछले साल मोबाइल कंपनियों और सॉफ़्टवेयर डेवेलपरों से ऐसे ऐप्स तैयार करने की गुज़ारिश की जिससे ऐसी आपात स्थितियों में ज़रूरतमंद को मदद मुहैया कराई जा सके.
इसका कारण यह है कि भारत में लोगों की ज़िंदगी में उनका मोबाइल फ़ोन अहम रोल अदा कर रहा है. रिश्ते-नाते, दोस्त, संबंध, यादें और बेहद ज़रूरी नंबर और कई तरह का डेटा उसकी पनाहगाह है.
यही नहीं, अलार्म, पेन, नोटबुक और दूसरी ज़रूरतों के लिए मोबाइल का इस्तेमाल होता है. मगर क्या आपका मोबाइल फ़ोन आपात स्थिति में आपके दोस्त की भूमिका भी निभा सकता है?
इसी के मद्देनज़र कई मोबाइल फ़ोनों में एंबेडेड सॉफ़्टवेयर एप्लीकेशन आ रहे हैं. अब तक जिनका मुख्य उद्देश्य खोए हुए फ़ोन का पता लगाना रहा है. मिसाल के लिए ऐपल के आईफ़ोन में 'फ़ाइंड माय फ़ोन' की सुविधा. मगर क्या यह व्यक्तिगत सुरक्षा में भी उतना ही कारगर है?
सेफ़्टी केयर ऐसा ही एक एंबेडेड सॉफ़्टवेयर है, जिसमें इमरजेंसी कॉल फ़ॉर्वडिंग, फ़ोन नॉन यूसेज नोटिस और माय लोकेशन नोटिस जैसे विकल्प हैं. आप इसमें नंबर भरकर आपात सूचना देने वाले नंबर की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं.
मगर एंबेडेड सॉफ़्टवेयर सभी तरह की आपात स्थितियों में आपका मददगार नहीं हो सकता. इसे देखते हुए दिसंबर 2012 की दिल्ली गैंगरेप की वारदात के बाद पुणे की एक कंपनी स्मार्टक्लाउड इन्फ़ोटैक ने ‘निर्भया-बी फ़ीयरलेस’ नाम का ऐप तैयार किया.

निर्भया ऐप और चूड़ी बटन

इस कंपनी के सीईओ गजानन सखारे ने बीबीसी को बताया कि इस ऐप का निर्माण महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया गया है, लेकिन इसका प्रयोग दूसरी आपात स्थितियों में भी हो सकता है.
वह बताते हैं कि इसे डाउनलोड करने के बाद "अगर आप फ़ोन ज़ोर से हिलाएं या फ़ोन का पावर बटन पांच बार बंद करें और खोलें, तो यह एप्लीकेशन चालू हो जाती है. इसके अलावा हम स्मार्टफ़ोन के ऑडियो जैक के लिए बटन रूपी एक्सटर्नल डिवाइस भी बना रहे हैं, जिसे अलग से ख़रीदकर लगाया जा सकेगा. इसे सिर्फ़ दबाने मात्र से मैसेज चला जाएगा. हमने इसका पेटेंट भी लिया है."
कंपनी महिलाओं के लिए चूड़ियों में लगाने लायक एक बटन जैसा उपकरण भी बना रही है, जो मोबाइल के ब्लूटूथ की मदद से निर्भया एप्लीकेशन चालू कर देगा.
ऐप बनाने वाली कंपनियां अपनी ऐप को इस्तेमाल करने वालों के अनुरूप बनाने में जुटी हैं. मसलन, अब मैसेज के साथ उस शख़्स का ब्लड ग्रुप, डॉक्टर की जानकारी, लोकेशन संबंधित शख़्स या पुलिस को भेजी जा सकेगी. साथ ही फ़ेसबुक अकाउंट को जोड़कर व्यक्ति के दोस्तों को मैसेज भी भेजा जा सकता है.

आपातकालीन ऐप्स

आधुनिक स्मार्टफ़ोनों में अब मोबाइल ट्रैकर, फ़ेक कॉल और लिसन-इन जैसी ऐप्स मौजूद हैं, जो आपके फ़ोन, उसमें मौजूद डेटा को सुरक्षित बनाने का दावा करती हैं.
मगर क्या ये ऐप्स आपकी ज़िंदगी के ख़तरे में पड़ने पर भी आपकी मददगार होंगी?
इंसान की सुरक्षा के सवाल को हल करने के लिए निर्भया की तरह फ़ाइटबैक अपराधियों से निपटने और आपात स्थिति का सामना करने के लिए बनाई गई है. इसी तरह 'लिव सेफ़' और 'फ़्लिकरफ़्री' (ख़ासकर महिलाओं के लिए), गो सुरक्षित, सेंटिनल, सेफ़ब्रिज, वनटच एसओएस, आइएनई, आयफ़ॉलो, सेफ़ट्रैक जैसी ऐप्स के ज़रिए भी लोकेशन आधारित एसएमएस भेजकर आप आपात स्थिति में आपके अपनों को सूचित कर सकते हैं.

हेल्पलाइन और 'ऐप'

कुछ कंपनियां सरकारी और निजी हेल्पलाइन एजेंसियों के साथ मिलकर अपनी ऐप को और प्रभावी बनाने की कोशिश कर रही हैं.
निर्भया ऐप के सीईओ गजानन कहते हैं कि वे आठ राज्यों में एंबुलेंस सेवा 108 के साथ अपनी ऐप को लॉन्च करने की कोशिश में हैं.
वे बताते हैं, "हाईवे पर दुर्घटना के वक़्त पीड़ित की लोकेशन पता लगाना काफ़ी चुनौतीपूर्ण होता है और वक़्त पर एंबुलेंस नहीं पहुंच पातीं. हम ऐप के ज़रिए कई मैसेज भेजेंगे. पहले में सिर्फ़ सूचना होगी.
दूसरे मैसेज में पीड़ित की लोकेशन सैटेलाइट से ली जाती है. नहीं तो मोबाइल टावर से लोकेशन लेकर भेजते हैं, जिसे ट्राइंगेलुर एल्गोरिदम कहते हैं. फिर सैटेलाइट से मैसेज भेजने की कोशिश होती है. अगर व्यक्ति की लोकेशन बार-बार बदल रही है, तो इसके लिए हर 300 मीटर की दूरी के बाद लोकेशन का नया मैसेज भेजा जाता है."
'निर्भया' ऐप निर्माता कंपनी 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस पर भारत के तीन शहरों में एक ख़ास सुविधा शुरू कर रही है. इसे 'सिटी सेफ़ कैंपेन' का नाम दिया गया है. इसके तहत असुरक्षित जगहों को चिह्नित कर सकते हैं. इससे बने हीट मैप को सरकार को भेजा जाएगा.

'ई-911 जैसी ज़रूरत'

मगर वरिष्ठ तकनीकी लेखक प्रशांतो कुमार रॉय कहते हैं अभी ऐसे प्रयास ज़्यादा कारगर नहीं हैं. ये ऐप आधारित हैं. वह बताते हैं कि नैसकॉम और सरकार दोनों स्तरों पर मोबाइल को आपात स्थिति के लिए तैयार करने वाली डिवाइस में बदलने पर गंभीरता से विचार कर रहा है. मगर यह अभी सिर्फ़ विचार-विमर्श तक सीमित है.
उनके मुताबिक़ "अमरीका में हर फ़ोन की लोकेशन और जीपीएस सूचना ई-911 पर भेजना अनिवार्य है. मगर भारत में यह अभी ज़रूरी नहीं है. कुछ एप्लीकेशन जैसे गूगल लैटीट्यूड और अन्य ऐप्स के ज़रिए आपात स्थिति में एक अकेले बटन या एक्शन से आपका मैसेज जा सकता है."
उन्होंने बताया, "सीनियर सिटीज़ंस के लिए कुछ ऐप्स हैं जिनमें फ़ोन के पीछे लगा लाल बटन दबाने से सूचना चली जाती है और पुलिस सेल्युलर ऑपरेटर से किसी शख़्स की लोकेशन हासिल कर सकती है. मगर स्मार्टफोन में भी जीपीएस चालू न होने पर या इनडोर होने पर सही जगह का पता नहीं लगाया जा सकता. हालांकि जीपीएस आउटडोर में बेहतर काम करता है."
क्या ऐसा कोई मामला आपके ध्यान में आया है, जहां भारत में किसी व्यक्ति को इन ऐप्स की मदद से आपात स्थिति से निकलने में मदद मिली हो? इस सवाल पर प्रशांतो कहते हैं कि ऐसा तो हुआ है कि पुलिस मोबाइल की लोकेशन हासिल कर आपात व्यक्ति तक पहुंचने में सफल रही है, पर ऐसा देखने में नहीं आया कि किसी शख़्स ने मदद मांगी हो और वह कामयाब रहा हो.
आपातकालीन मोबाइल ऐप्स को लेकर सरकारी हस्तक्षेप कितना कारगर हो सकता है, इसके लिए अमरीका का 911 उदाहरण काफ़ी है. हो सकता है भविष्य में इस जैसी किसी हेल्पलाइन के होने पर आपका स्मार्टफ़ोन भी आपका आपातकालीन दोस्त बन जाए. फ़िलहाल उन ऐप्स से ही काम चलाना होगा, जो 'आईट्यूंस' और 'गूगल प्ले' आपको ऑफ़र करते हैं, या जो एंबेडेड सॉफ़्टवेयर मोबाइल हैंडसेट कंपनियां फ़ोन पर उपलब्ध करा रही हैं.

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