आखिर क्या चाहते हैं रामदेव?
योग गुरु स्वामी रामदेव ने नरेंद्र मोदी को
प्रधानमंत्री पद के लिए इस समय सर्वाधिक उपयुक्त व्यक्ति न जाने कितनी बार
घोषित किया है। जब भी उनसे इस संबंध में प्रश्न किया गया, उन्होंने यही कहा
कि मोदी की लोकप्रियता देश में चारों ओर है और उनके जैसे व्यक्ति को ही
प्रधानमंत्री होना चाहिए। राजधानी दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित
रैली में इसके ऐलान का महत्व है। यह उनके भारत स्वाभिमान मंच की पांचवीं
वार्षिकी पर आयोजित कार्यक्रम था। लोकसभा चुनाव आसन्न है, ऐसे में स्वामी
रामदेव की इस राय के राजनीतिक निहितार्थ हैं। लेकिन इसके पूर्व उन्होंने
सारे कर समाप्त कर ‘एक व्यक्ति एक कर’ (बैंक ट्रांजेक्शन टैक्स) का
सिद्धांत लागू करने तथा काला धन वापस लाने की जो शर्त रखी, उसका अभिप्राय
क्या था?
स्वामी रामदेव एक दशक से योग के साथ देश में बदलाव के लिए सक्रिय हैं। इसलिए उनके पास समस्याओं के समाधान के असंख्य नुस्खे भी पहुंचे हैं। यह बात ठीक है कि पांच जून, 2011 को केंद्र सरकार द्वारा उनके साथ रामलीला मैदान में की गई बर्बरता के कारण कांग्रेस के खिलाफ उनके मन में गुस्सा है। कांग्रेस की उत्तराखंड सरकार ने उन पर जिस तरह मुकदमे लादे हैं और आम कांग्रेसी सार्वजनिक बयानों में उनकी जैसी कठोर आलोचना करते हैं, उन सबके मद्देनजर उनका कांगेस को समर्थन करने का कोई कारण नहीं हो सकता। तीसरे मोर्चे के कई दल उनकी सोच से भिन्न मत वाले हैं। इस नाते भाजपा एवं नरेंद्र मोदी ही उनके लिए सबसे अनुकूल हो सकते हैं। हालांकि उन्होंने कई बार कहा है कि मोदी को समर्थन देने का अर्थ भाजपा को समर्थन नहीं है, पर लोकसभा चुनाव में यदि मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, तो फिर भाजपा और मोदी को अलग करके नहीं देखा जा सकता। बावजूद इसके निश्चित रूप से वह चाहेंगे कि जो उनके विचार हैं, खासकर अर्थव्यवस्था के बारे में उनको स्वीकृति मिले। इसलिए उन्होंने जो शर्तें रखीं, उसमें अस्वाभाविक जैसा कुछ नहीं है।
हालांकि इसकी उपयोगिता, प्रासंगिकता और व्यावहारिकता पर बहस हो सकती है। खुद भाजपा काला धन वापस लाने की मांग करती रही है। पिछले आम चुनाव में उसने इसे प्रमुख मुद्दा बनाया था। पार्टी ने स्वयं एक टास्क फोर्स बनाकर इसकी पूरी रिपोर्ट जारी की। उसके सभी सांसद पहले ही लोकसभा अध्यक्ष को लिखकर दे चुके हैं कि विदेशी बैंकों में उनका काला धन नहीं है। पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी रथयात्रा के दौरान काले धन को प्रमुख मुद्दा बनाया था। राजनाथ सिंह ने भी कहा है कि भाजपा काले धन को वापस लाने के प्रति प्रतिबद्ध है। भाजपा के दृष्टिकोण पत्र तैयारी समिति ने एक कर के सुझाव को स्वीकार किया है। खुद मोदी ने कर के बारे में कहा है कि वर्तमान कर प्रणाली आम लोगों पर बोझ बन गई है। इसमें सुधार कर एक नई व्यवस्था पेश किए जाने की जरूरत है।
वस्तुतः मौजूदा ढांचे में एकाएक सारे करों का अंत कर ऐसी एक कर व्यवस्था लागू करना कठिन है। इसके लिए व्यापक परिवर्तन करना होगा। फिर राज्यों की कर व्यवस्था में केंद्र बदलाव नहीं ला सकता है। बावजूद इसके मोदी के आश्वासन से रामदेव को संतुष्ट होना चाहिए।
यहां यह महत्वपूर्ण बात ध्यान रखने की है कि स्वामी रामदेव ने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान भी शुरू किया। इस मुद्दे पर अन्ना हजारे और रामदेव शुरू में साथ-साथ थे। आज अन्ना हजारे एवं आम आदमी पार्टी के शोर में यह सच नजरंदाज किया गया है कि रामदेव ने इसके पूर्व चार वर्षों तक देशव्यापी यात्रा की थी। आम आदमी पार्टी का जन्म भी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुआ है। अन्ना का आंदोलन हो या आप को दिल्ली में मिली जीत, यह इस बात की पुष्टि है कि देश के लोग भ्रष्टाचार से आजिज आ चुके हैं। ऐसे में रामदेव द्वारा काले धन पर मोदी से वचन लेने के बाद देशभर के उनके समर्थकों का भ्रम और हिचक दूर हो गई है। हालांकि यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर रामदेव किस तरह की गोलबंदी कर पाते हैं और उससे नरेंद्र मोदी को कितना लाभ मिलता है।
स्वामी रामदेव एक दशक से योग के साथ देश में बदलाव के लिए सक्रिय हैं। इसलिए उनके पास समस्याओं के समाधान के असंख्य नुस्खे भी पहुंचे हैं। यह बात ठीक है कि पांच जून, 2011 को केंद्र सरकार द्वारा उनके साथ रामलीला मैदान में की गई बर्बरता के कारण कांग्रेस के खिलाफ उनके मन में गुस्सा है। कांग्रेस की उत्तराखंड सरकार ने उन पर जिस तरह मुकदमे लादे हैं और आम कांग्रेसी सार्वजनिक बयानों में उनकी जैसी कठोर आलोचना करते हैं, उन सबके मद्देनजर उनका कांगेस को समर्थन करने का कोई कारण नहीं हो सकता। तीसरे मोर्चे के कई दल उनकी सोच से भिन्न मत वाले हैं। इस नाते भाजपा एवं नरेंद्र मोदी ही उनके लिए सबसे अनुकूल हो सकते हैं। हालांकि उन्होंने कई बार कहा है कि मोदी को समर्थन देने का अर्थ भाजपा को समर्थन नहीं है, पर लोकसभा चुनाव में यदि मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, तो फिर भाजपा और मोदी को अलग करके नहीं देखा जा सकता। बावजूद इसके निश्चित रूप से वह चाहेंगे कि जो उनके विचार हैं, खासकर अर्थव्यवस्था के बारे में उनको स्वीकृति मिले। इसलिए उन्होंने जो शर्तें रखीं, उसमें अस्वाभाविक जैसा कुछ नहीं है।
हालांकि इसकी उपयोगिता, प्रासंगिकता और व्यावहारिकता पर बहस हो सकती है। खुद भाजपा काला धन वापस लाने की मांग करती रही है। पिछले आम चुनाव में उसने इसे प्रमुख मुद्दा बनाया था। पार्टी ने स्वयं एक टास्क फोर्स बनाकर इसकी पूरी रिपोर्ट जारी की। उसके सभी सांसद पहले ही लोकसभा अध्यक्ष को लिखकर दे चुके हैं कि विदेशी बैंकों में उनका काला धन नहीं है। पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी रथयात्रा के दौरान काले धन को प्रमुख मुद्दा बनाया था। राजनाथ सिंह ने भी कहा है कि भाजपा काले धन को वापस लाने के प्रति प्रतिबद्ध है। भाजपा के दृष्टिकोण पत्र तैयारी समिति ने एक कर के सुझाव को स्वीकार किया है। खुद मोदी ने कर के बारे में कहा है कि वर्तमान कर प्रणाली आम लोगों पर बोझ बन गई है। इसमें सुधार कर एक नई व्यवस्था पेश किए जाने की जरूरत है।
वस्तुतः मौजूदा ढांचे में एकाएक सारे करों का अंत कर ऐसी एक कर व्यवस्था लागू करना कठिन है। इसके लिए व्यापक परिवर्तन करना होगा। फिर राज्यों की कर व्यवस्था में केंद्र बदलाव नहीं ला सकता है। बावजूद इसके मोदी के आश्वासन से रामदेव को संतुष्ट होना चाहिए।
यहां यह महत्वपूर्ण बात ध्यान रखने की है कि स्वामी रामदेव ने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान भी शुरू किया। इस मुद्दे पर अन्ना हजारे और रामदेव शुरू में साथ-साथ थे। आज अन्ना हजारे एवं आम आदमी पार्टी के शोर में यह सच नजरंदाज किया गया है कि रामदेव ने इसके पूर्व चार वर्षों तक देशव्यापी यात्रा की थी। आम आदमी पार्टी का जन्म भी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुआ है। अन्ना का आंदोलन हो या आप को दिल्ली में मिली जीत, यह इस बात की पुष्टि है कि देश के लोग भ्रष्टाचार से आजिज आ चुके हैं। ऐसे में रामदेव द्वारा काले धन पर मोदी से वचन लेने के बाद देशभर के उनके समर्थकों का भ्रम और हिचक दूर हो गई है। हालांकि यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर रामदेव किस तरह की गोलबंदी कर पाते हैं और उससे नरेंद्र मोदी को कितना लाभ मिलता है।
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