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08 January 2014

कृष्ण ने जो गीता में कहा वही एक खास बात ईसा अक्सर कहते थे

you cann't destroy the soul
ईसा मसीह ने अपने शिष्यों को आदेश दिया, अच्छाई का प्रचार-प्रसार करो। केवल उपदेश देने में समय न गंवाकर रोगियों, असहायों और अनाथों की सेवा का आदर्श उपस्थित करो। अपना उद्देश्य निर्धारित करो कि बीमारों को निरोग बनाना है, दुष्टात्माओं को दुर्व्यसनों से मुक्ति दिलाकर अच्छे रास्ते पर चलाना है।

किसी के घर में प्रवेश करते ही प्रेमपूर्वक उसकी सहायता की पेशकश करनी है। यदि कोई स्वागत न करके कटु वचन बोले, तो भी उस पर क्रोध न करना।

ईसा जानते थे कि धन संग्रह की प्रवृत्ति भय, कलह आदि को जन्म देती है। इसलिए उन्होंने कहा, अपने बटुओं में सोना, चांदी, सिक्के आदि बिल्कुल न रखना। अधिक वस्त्र का संग्रह न करना। भिक्षा में जो भोजन मिल जाए, उसी से संतुष्ट रहना।

ईसा को यह भी मालूम था कि जब दुष्ट प्रवृत्ति के लोग उनका उत्पीड़न करने से बाज नहीं आए, तो शिष्यों को भी ऐसे कष्टों का सामना करना पड़ सकता है।

इसलिए उन्होंने कहा, लोग तुम्हारा विरोध करेंगे, पर शांति और धैर्य बनाए रखना। यह समझ लेना कि वह शरीर को क्षति पहुंचा सकते हैं, आत्मा को नहीं। सत्य, अहिंसा पर अटल रहने वाले को कोई नहीं मार सकता।

ईसा ने कहा था, यह जान लो कि जो तुम्हारा तिरस्कार करता है, वह मेरा तिरस्कार करता है और जो मेरा तिरस्कार करता है, वह उसका तिरस्कार करता है, जिसने मुझे भेजा है।

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