157 साल बाद आजाद होंगे 282 शहीद
गुरुद्वारा शहीद गंज प्रबंधक कमेटी के सदस्यों ने ही शहीदों की अस्थियों को बाहर निकालने का निर्णय लिया है। इस मामले में कमेटी को जिला प्रशासन की ओर से भी अनुमति मिल चुकी है। मुगलई ईंटों से बने इस कुएं के 11.5 फीट नीचे शहीदों की अस्थियां होने की पृष्टि कर ली गई है।
गुरुद्वारा शहीद गंज प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष अमरजीत सिंह सरकारिया, महासचिव काबल सिंह शाहपुर तथा कोषाध्यक्ष हरभजन सिंह नेपाल ने बताया कि देश की सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक संस्थायों व देशवासियों की उपस्थिति में 28 फरवरी से शहीदों की अस्थियों को कुएं से बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इसके अलावा अजनाला में ही उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। साथ ही अस्थियों को श्री गोइंदवाल साहिब तथा हरिद्वार स्थित गंगा में प्रभावित किया जाएगा।
कुएं के संबंध में शोध कार्य से जुड़े सुरिंदर कोछड़ ने बताया कि वर्ष 1857 के ‘सैनिक विद्रोह’ के दौरान 30 जुलाई 1857 को लाहौर की मियां मीर छावनी में ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध बगावत की गई थी। इस दौरान बंगाल नेटिव इंफैंट्री की 26 रेजीमेंट के 500 के करीब हिन्दुस्तानी बे-हथियार सिपाही भाग निकले। गांव के लोगों की गद्दारी के चलते उन्हें पकड़ लिया गया था। उन सैनिकों में से 200 से करीब सिपाहियों की 31 जुलाई को अजनाला में रावी नदी के पास गांव डड्डीयां में हत्या कर दी गई थी।
इसके अलावा शेष बचे 282 सैनिकों को अमृतसर का डिप्टी कमिश्नर फ्रेडरिक हेनरी कूपर रस्सों से बांधकर अजनाला ले आया।� कोछड़ के अनुसार उनमें से 237 सिपाहियों को अगली सुबह गोली मार कर हत्या करने के बाद शवों को कुएं में फेंक दिया गया था।
इतना ही नहीं शेष बचे 45 सैनिकों को शवों के साथ भी जिंदा कुएं में फेंक दिया गया था। उन्होंने कहा कि इस नरसंहार के 157 वर्ष बीत जाने के बाद भी राज्य या केंद्र सरकार ने कुएं में दफन 282 भारतीय सैनिकों के शवों या अस्थियों को निकालने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
शहीद स्मारक के निर्माण की मांग
गुरुद्वारा शहीद गंज प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष अमरजीत सिंह सरकारिया ने पंजाब सरकार से मांग की है कि शहीदों के संस्कार के लिए जल्द ही अजनाला में उचित जगह उपलब्ध कराई जाय। साथ ही वहां शहीदों की याद में स्मारक का निर्माण कराया जाय।
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