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12 January 2014

हमारे पुरखे भी थे फेसबुक पर!
आपको शायद ही यह यकीन हो कि दुनिया के सबसे प्राचीन और गौरवशाली साम्राज्यों में से एक रोम साम्राज्य की जनता अपनी भावनाओं और अनुभवों को सोशल नेटवर्किंग साइटों जैसे फेसबुक और ट्विटर के जरिये लोगों से बांटती थी। सुनकर आपको यह और अजीब लगे कि उस समय के फेसबुक पोस्ट को लोग लाइक भी करते थे और तस्वीरंे शेयर करने व अपनी जुबान में कमेंट कर राय जाहिर करने में चूकते नहीं थे। ब्रिटिश लेखक और पत्रकार टॉम स्टैंडेज अपनी नई किताब ‘राइटिंग ऑन द वॉल’ में तो यही दावा करते हैं। इस किताब में उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स आज से दो हजार साल पहले रोमन साम्राज्य के काल से ही प्रचलन में थीं। हालांकि उसका स्वरूप बेहद पारंपरिक था, जिसे तत्कालीन समय में भित्ति चित्र कहा जाता था। रोम साम्राज्य के खंडहरों की दीवारों पर ऐसे तमाम चित्राक्षरों और भित्ति आरेखों के अवशेष मिल जाएंगे, जहां तत्कालीन लोगों ने अपने रहन-सहन, खेल, युद्ध, रीति-रिवाज को उकेरा है। इन पुराने संस्करणों के फेसबुक में चित्रों के जरिये अपनी भाषा में काफी कुछ लिखा गया है। यह कहानी है उस समाज की, जो भले ही राजशाही में जी रहा था, मगर उसके सामाजिक तौर-तरीके किसी आधुनिक दुनिया जैसे ही थे। रोम साम्राज्य में लोगों ने अपनी आवाजों और भावनाओं को दबाया नहीं। उन्होंने चोरी-छिपे ही सही, मगर खुलकर अपने विचारों और भावनाओं को रंग दिया। मगर स्टैंडेज का यह दावा उतना ही हैरत भरा है, जितना शुतुरमुर्गी शैली में इतिहास से मुंह मोड़कर रेत में सिर छिपा लेना।
अगर दुनिया के इतिहास पर गौर करें तो भारत, चीन, पेरू, चिली, मेक्सिको और ऑस्ट्रेलिया जैसे तमाम देशों में सोशल नेटवर्किंग की ऐसी प्राचीन परंपराएं रोम साम्राज्य से भी पहले मौजूद रही हैं।
मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित जंगलों के झुरमुटों के बीच भीमबेटका की गुफाएं गवाह हैं कि यहां पर रोम साम्राज्य से भी हजारों साल पहले इंसानों ने अपने जज्बातों को बांटने के लिए सोशल नेटवर्किंग का एक खास तरीका ईजाद कर रखा था। वे गुफाओं और पहाड़ों की कंदराओं में चित्रों के साथ-साथ दीवारों पर अपने शब्दों की रेखाएं उकेरा करते थे। इनके जरिये उन्होंने अपने समय का सच कहने की कोशिश की है। दरअसल मानव सभ्यता के विकास के क्रम में सामाजिक संपर्कों का दायरा भी बढ़ा, संचार की आवश्यकता भी महसूस की गई। यह जरूरी था कि अपने समय के दस्तावेज को सुरक्षित रखा जाए। ऐसे में इन लोगों ने आम रिहायशी इलाकों से दूर जंगलों, नदियों से सटी गुफाओं और पहाड़ों की कंदराओं को सुरक्षित ठिकाना बनाया। जैसा कि बाद में अजंता, एलोरा की गुफाओं में शिद्दत से दिखाई देता है। हालांकि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पुरानी और दुनिया की सबसे विकसित संस्कृतियों में से एक रावी के किनारे हड़प्पा सभ्यता जब अपने यौवन को प्राप्त कर रही थी, वहां भी चित्रात्मक लिपि में सोशल नेटवर्किंग का परंपरागत तौर-तरीका आजमाया जा रहा था। स्टैंडेज अपनी किताब में सोशल नेटवर्किंग साइटों की परंपरा की तलाश करते 16वीं सदी में शुरू हुए यूरोप के पुनर्जागरण और 17वीं सदी की अहम क्रांतियों तक चले आए। जहां मार्टिन लूथर और थॉमस पेन जैसे भविष्यदर्शी लोग अपने आधुनिक सुधारवादी विचारों को आम लोगों से साझा करने के लिए फेसबुक यूजर्स की तरह पोस्ट करते थे। स्टैंडेज ने तो ब्लॉग लिखने की परंपरा भी तत्कालीन इतिहास में तलाश की है। उनका कहना है कि मार्टिन लूथर ने अपने 95 थीसिस चर्च की दीवारों और दरवाजों पर लिख डाले थे, जिसे पढ़कर यूरोपीय पुनर्जागरण के दौर में रूढ़िवादी और सामंती विचारों के खिलाफ सनसनी फैला दी थी। वहीं, भारत में ब्लॉग लिखने की प्राचीन और अनूठी मिसाल सदी की शुरुआत से तकरीन ढाई सौ साल पहले मौर्यकालीन सम्राट अशोक के यहां दिखाई पड़ती है। जहां उसने अपनी जनता से संवाद स्थापित करने, अपनी राजनीति व लोक कल्याणकारी नीतियों के ऐलान करने के लिए बड़े-बड़े अभिलेखों, शिलालेखों और स्तूपों का सहारा लिया, जो आज भी समय के सीने पर इतिहास की दस्तक के रूप में मौजूद हैं। अब, ऐसे साक्ष्यों के होते हुए स्टैंडेज का दावा कि रोमवासी सोशल नेटवर्किंग में सबसे आगे थे, शायद इतिहास के आगे कहीं नहीं ठहरता। क्योंकि, हिंदुस्तान में तो शायद पांडु पुत्र भीम भी उस दौर में फुरसत के पलों के दौरान फेसबुक का इस्तेमाल करते रहे हों, जिनके नाम पर भीमबेटका स्‍थान मशहूर हुआ।
दिनेश मिश्र
राइटिंग ऑन द वॉल - टॉम स्टैंडेज
ब्लूम्सबेरी पब्‍लिशिंग
फेसबुक के इस दौर में ये बातें बड़ी दिलचस्प हैं। हमारे पूर्वजों ने भी सोशल नेटवर्किंग का सहारा लिया। अपनी बात कही। दूसरों की सुनी। विचारों को इस तरह साझा करते हुए वे हमेशा एक नई सभ्यता का स्वागत करते रहे।

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