ब्रह्मविद्या विहंगम योग आश्रम में मासिक सत्संग
हमें जब भी कोई कार्य करना होता है तो चित मे एक विचार उठता है जिसको हमारा मन पकड़ता है तथा विश्लेषण करने के लिए बुद्धि को दे देता है और बुद्धि उसका विश्लेषण करती है कि इस कार्य को कैसे सम्पन्न करना है और अपना निर्णय पुन: मन को दे देती है। मन उस निर्णय के अनुसार उस कार्य को सम्पन्न करने का आदेश इन्द्रियों को देता है और इन्द्रियों के माध्यम से वह कार्य सम्पन्न होता है तथा कार्य सम्पन्न होने के बाद मन में यह विचार आना कि यह कार्य मैनें किया, यही अहंकार है।
ओढ़ां
इस तन में मन कहां बसे निकस जात किस ओर। गुरु गम हो तो परख ले नही तो गुरु कर और॥ अर्थात इस शरीर में मन का निवास कहां है, यह ज्ञान हो जाने पर ही इसको वश मे किया जा सकता है, जब तक हमे इसके निवास का ज्ञान ही नही होगा हम उसे वश मे कैसे कर सकतें हैं। अत: हमारे गुरु वह हो जिन्हे यह पता हो कि इस शरीर में मन का निवास कहां हैं। उसके बाद वह हमें बतलाए कि इसे कैसे वश मे किया जाये।
यह बात खंड के गांव रोहिडांवाली में स्थित ब्रह्मविद्या विहंगम योग आश्रम में मासिक सत्संग के दौरान श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए साधक राजाराम गोदारा ने कही। उन्होंने कहा कि दैनिक जीवन में कंप्यूटर का महत्व और इसके कार्य करने का तरीका सभी जानते हैं। कंप्यूटर में एक हार्ड डिस्क, रैम, रोम, प्रोसेसर इत्यादि चीजें होती है तथा सभी का अपना कार्य होता है। कुछ इसी प्रकार हमारा शरीर भी कार्य करता है। उसमें भी मन, बुद्धि, चित व अहंकार ये चार अंत:करण है तथा पांच कार्मेन्द्रियां क्रमश: हाथ, पांव, पायू, उपस्थ और वाणी है तथा पांच ही ज्ञानेन्द्रियां क्रमश: नाक, कान, जीभ, आंख व त्वचा हैं जिनका सबका अपना अपना कार्य है।
उन्होंने कहा कि चित मानव शरीर में स्थापित एक हार्ड डिस्क है जो हमारे सामने आने वाले हर दृश्य, संवाद तथा विचार को हमारे ना चाहते हुए भी रिकॉर्ड कर लेता है। चित मे जो विचार संग्रहित होते है उनसे ही हमारे संस्कार बनते हैं तथा उसी के अनुसार हम अपना कर्म करते हैं। हमें जब भी कोई कार्य करना होता है तो चित मे एक विचार उठता है जिसको हमारा मन पकड़ता है तथा विश्लेषण करने के लिए बुद्धि को दे देता है और बुद्धि उसका विश्लेषण करती है कि इस कार्य को कैसे सम्पन्न करना है और अपना निर्णय पुन: मन को दे देती है। मन उस निर्णय के अनुसार उस कार्य को सम्पन्न करने का आदेश इन्द्रियों को देता है और इन्द्रियों के माध्यम से वह कार्य सम्पन्न होता है तथा कार्य सम्पन्न होने के बाद मन में यह विचार आना कि यह कार्य मैनें किया, यही अहंकार है। इसप्रकार जो कार्य किया गया उसका फल जैसा भी हो अच्छा या बुरा हमारी उस आत्मा को भोगना पड़ता है जिसकी इस कार्य को करने मे कोई भूमिका नहीं होती। उसका दोष केवल इतना होता है कि मन जिस शक्ति का उपयोग करता है वह आत्मा की होती है।
यदि हम अपने मन पर नियंत्रण स्थापित करलें तो यह कोई ऐसा काम नहीं करेगा जिसका फल अशुभ हो, लेकिन मन पर नियंत्रण करना इतना आसान नहीं है। इसके लिए हमे ऐसे गुरु की खोज करनी होगी जो यह बताये की मन पर नियंत्रण कैसे किया जा सकता है। इस मौके पर रामकुमार, लीलूराम, भागमल, लक्ष्मी यादव, जगदीश मायला और लक्ष्मी वर्मा सहित अनेक महिला पुरूष श्रद्धालु मौजूद थे।
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