हिंदू धर्म पर लिखी विवादास्पद किताब 'वापस ली गई'
पेंगुइन इंडिया हिंदू धर्म पर
लिखी गई एक अमरीकी लेखक की पुस्तक को वापस लेने और उसकी बाक़ी बची प्रतियों
को नष्ट करने के लिए सहमत हो गई है.
दिल्ली के साकेत में निचली अदालत में दोनों पक्षों के बीच हुए करार को मंज़ूरी दे दी गई.
वेंडी डोनीगर की किताब ‘द हिंदूज़: एन
अल्टरनेटिव हिस्ट्री’ को ये कहते हुए क़ानूनी रूप से चुनौती दी गई है कि
इससे हिंदुओं की भावनाओं को ठेस लगी है.
रिपोर्टों के अनुसार प्रकाशन कंपनी पेंगुइन इंडिया और 'शिक्षा बचाओ आंदोलन' संगठन के बीच इस पुस्तक को लेकर समझौता हो गया है.
हालांकि अभी तक पेंगुइन इंडिया की तरफ़ से इस पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है.
इस विवादास्पद किताब को दो साल पहले रामनाथ गोयनका
पुरस्कार दिया गया था और बीते चार बरसों से ये किताब बिक रही है और तभी से
इसके खिलाफ़ अभियान भी चल रहा है.
'आपत्तिजनक'
इस किताब के ख़िलाफ़ दस हज़ार से ज़्यादा लोग एक
ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर कर चुके हैं. इसमें दावा किया गया है कि किताब
में बहुत सी 'तथ्यात्मक ग़लतियां' हैं.
शिक्षा बचाओ आंदोलन ने 2011 में पेंगुइन इंडिया के
ख़िलाफ़ ये कहते हुए मामला दर्ज कराया था कि ये किताब हिंदुओं का 'अपमान'
करती है क्योंकि इसमें हिंदुओं की 'स्थापित धार्मिक मान्याताओं के विपरीत
बातें' कही गई हैं.
इस संगठन के अध्यक्ष दीना नाथ बत्रा ने बताया कि ये किताब ‘सेक्स और कामुकता’ पर आधारित है.
वह कहते हैं, "किताब के मुख्य पृष्ठ पर छपी तस्वीर
तो आपत्तिजनक है ही, साथ ही किताब में देवी देवताओं और महापुरुषों के बारे
में भी ओछी टिप्पणियां की गई हैं. पूरे समाज की भावनाओं को इससे ठेस
पहुंची है. हमने काफ़ी लंबी लड़ाई लड़ी है.”
वहीं संगठन की वकील मोनिका अरोड़ा ने रॉयटर्स को
बताया, “उन्होंने हिंदू देवताओं और भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए
अपमानजनक बातें कही हैं.”
'बेहद निराशाजनक'
इस बीच लेखिका वेंडी डोनिगर ने फ़ेसबुक पर जारी एक
बयान में कहा, "मुझे समर्थन में जो मैसेज मिले हैं मैं उनसे ख़ुश हूं.
मुझे भारत से भी कई लोगों ने मैसेज भेजे हैं जिनसे मैं कभी नहीं मिली लेकिन
उन्होंने मेरी किताब पढ़ी है."
उन्होंने कहा, "जो कुछ हुआ उससे मैं दुखी और निराश
हूं. लेकिन मैं इसके लिए पेंगुइन इंडिया को ज़िम्मेदार नहीं मानती हूं
क्योंकि उसने अपनी तरफ से पूरा प्रयास किया. मुझे ख़ुशी है कि इंटरनेट के
इस दौर में किसी किताब पर पाबंदी लगाना सभंव नहीं है."
शिक्षा बचाओ आंदोलन का कहना है कि वो इस फ़ैसले से
ख़ुश हैं लेकिन केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने समाचार एजेंसी पीटीआई को
बताया कि ये फ़ैसला ‘अनुचित’ है और किताब ‘किसी भी तरह से ईशनिंदक’ नहीं
है.
"अगर किसी को कोई किताब पसंद नहीं आती है तो उसका जवाब है एक और किताब. न कि उस पर प्रतिबंध, या क़ानूनी कार्रवाई या मार पिटाई की धमकी."
रामचंद्र गुहा, इतिहासकार
किताब वापस लिए जाने से साहित्यकार और लेखक ख़ासे
नाराज़ हैं. जाने माने साहित्यकार अशोक वाजपेयी का कहना है कि ये अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता पर हमला है.
वाजपेयी कहते हैं, "दीनानाथ बत्रा पूरे समाज के
प्रतिनिधि नहीं हैं. लोग अपनी मर्ज़ी से पढ़ें, जिसे नहीं पढ़ना है वो न पढ़े.
मगर प्रतिबंध या रोक अच्छी बात नहीं है.”
भारत में सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर ख़ासी
आलोचना हो रही है. कई लोग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि धार्मिक संगठन देश
में अभिव्यक्ति और कलात्मक स्वतंत्रता पर पाबंदियां लगा रहे हैं.
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने इस ख़बर को ‘बेहद निराशाजनक’ कहा है.
उन्होंने ट्विटर पर लिखा, “अगर किसी को कोई किताब
पसंद नहीं आती है तो उसका जवाब है एक और किताब. न कि उस पर प्रतिबंध, या
क़ानूनी कार्रवाई या मार पिटाई की धमकी.”
वहीं साहित्यकार उमा वासुदेव मानती हैं वह किताबों
पर किसी भी तरह के प्रतिबंध के पक्ष में तो नहीं हैं लेकिन लेखकों को भी
चाहिए कि वे धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचाएं.
'इंटरनेट पर हिट'
समझौते के अनुसार अब पेंगुइन बुक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को इस किताब को देश भर में दुकानों से वापस लेना है.
लेकिन इंटरनेट विशेषज्ञ प्रशांतो कुमार रॉय का
कहना है कि इंटरनेट पर इसके प्रसार को रोक पाना मुमकिन नहीं है क्योंकि
समझौते के बाद से ही इंटरनेट पर किताब की पीडीएफ फाइलों का प्रसार बढ़ रहा
है.
वह कहते हैं कि इंटरनेट के दौर में इसका प्रसार
रोका नहीं जा सकता है. "जब कोई किताब विवादास्पद हो जाती है तो उसका प्रसार
और बढ़ जाता है. इस किताब के साथ भी यही हुआ है. लोग इंटरनेट से इसे धड़ल्ले
से डाउनलोड कर रहे हैं."
‘द हिंदूज़: एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री’ को वापस लिए
जाने के समझौते के बाद अब शिक्षा बचाओ आंदोलन विंडी डोनिगर की एक अन्य
किताब पर भी प्रतिबंध लगाए जाने की मांग करने लगा है.
No comments:
Post a Comment