तब सीता के यह तीन अंग फड़कने लगे और वह प्रसन्न हो गई
इससे दुःखी होकर देवी सीता के मन में अत्महत्या का विचार आया। देवी सीता ने अपने बालों का फंदा बनाकर आत्महत्या का प्रयास भी किया। लेकिन ईश्वरीय कृपा से उसी समय देवी सीता के तीन बाएं अंग नेत्र, भुजा और जंघा फड़कने लगी।
सुंदरकांड के 29 वें अध्याय में इस बात का उल्लेख इस प्रकार किया गया है।
���� 'सा वीतशोका व्यपनीततन्द्रा, शान्तज्वरा हर्षविबुद्घसत्वा।
���� अशोभतार्या वदनेन शुक्ले, शीतांशुना रात्रिरिवोदितेन।।
इन शुभ लक्षणों के प्रकट होते ही देवी सीता प्रसन्न हो गई और आत्महत्या का विचार त्याग दिया। उनका मुख खिले हुए पूर्णचन्द्र के समान शोभित होने लगा।
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