हिसार, 15 जनवरी।
माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता कामरेड कृष्णस्वरूप गोरखपुरिया के 92 वर्षीय पिता चौधरी रण सिंह का कल देर सायं उनके पैतृक गांव गोरखपुर में अंतिम संस्कार कर दिया गया, जिसमें बड़ी संख्या में गांव के लोगों, क्षेत्र के गणमान्य लोगों व रिश्तेदारों ने भाग लिया। उनकी चिता को उनके सबसे छोटे पुत्र डॉ. श्रीराम सिवाच एसएमओ ने मुखाग्नि दी। वे पिछले काफी समय से गंभीर रूप से बीमार थे और अपने बेटे मास्टर अभय राम के पास ढंढूर गांव में रह रहे थे, यहीं पर उन्होंने अंतिम सांस ली।
चौधरी रण सिंह का जीवन बहुत ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना के साथ जुड़ा हुआ है, जब उन्हें 1975 में आपातकाल की घोषणा के बाद 27 जून, 1975 को बड़े भारी पुलिस बल के साथ सुबह चार बजे गांव गोरखपुर में उनके घर का घेराव कर लिया और घर की तलाशी ली गई। तलाशी में जब उनके बेटे कामरेड कृष्णस्वरूप को पुलिस घर में उपलब्ध न पा सकी तो चौधरी रण सिंह को गिरफ्तार करके थाना भूना जिला फतेहाबाद में बंद कर दिया गया। एक सप्ताह पुलिस हिरासत में रखने के बाद उन्हें दो दिन की मोहलत इस शर्त के साथ दी कि वे अपने बेटे कृष्णस्वरूप को गिरफ्तारी के लिए पेश कर देंगे। घर आने के बाद एक गुप्त स्थान पर रात को दो बजे कामरेड कृष्ण स्वरूप ने अपने पार्टी के गिरफ्तारी न देने के फैसले के बारे में अपने पिता चौधरी रण सिंह को अवगत करवाया। उन्होंने तुरंत अपने बेटे का इस संकट के दौर में पूर्ण समर्थन किया। उनको जिला हिसार के ततकालीन एसएसपी श्री कल्याण रुद्रा की यह धमकी भी नहीं झुका पाई कि कृष्णस्वरूप की गिरफ्तारी न होने की स्थिति में आपकी सारी जमीन जायदाद, मकान, पशु इत्यादि नीलाम कर दिये जाएंगे और परिवार की महिलाओं सहित सारे परिवार के सदस्यों को जेल में बंद कर दिया जाएगा। अपातकाल की घोषणा के बाद देश में प्रेस पर सेंसर लगा कर जनता के सारे लोकतांत्रिक अधिकारों को समाप्त करके देश पर तानाशाही थोप दी गई थी और उस समय सत्ता का विरोध करना खतरे से खाली नहीं था।
दो दिन के बाद चौधरी रण सिंह अपने सिर पर उपलों (गोसे) की बोरी, हुक्का और तम्बाकू लेकर थाने में पहुंच गए और एसपी के सामने अपने बेटे को पेश करवाने से इंकार कर दिया और कह दिया कि जब तक आप लोग मुझे थाने में रखेंगे मेरा हुक्का यहीं बजेगा। इससे एसपी और पुलिस थानेदार बहुत प्रभावित हुआ और उन्होंने एक सप्ताह तक उन्हें थाने में रखने के लिए माफी मांगी और उन्हें बाइज्जत छोड़ दिया। यहां यह बताना जरूरी है कि 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा के बाद सभी राष्ट्रीय और प्रांतीय नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया था परंतु उनके बेटे कृष्णस्वरूप को 18 माह तक सरकार गिरफ्तार करने में असफल रही और उन्होंने भूमिगत रहकर सरकार के खिलाफ अभियान चलाया। कामरेड कृष्णस्वरूप को पुलिस ने भूना थाना की सूची-बदमासान में शामिल करके उन्हें इश्तिहारी मुजरिम घोषित कर दिया। जब इस घटना का महेंद्रगढ़ जेल में चौधरी देवीलाल, कामरेड पृथ्वी सिंह और लाला बलदेव तायल को पता लगा तो इस घटना से उन्हें बहुत हौसला मिला और चौधरी देवीलाल ने एक पत्र लिखकर चौधरी रण सिंह को इस दिलेराना कदम के लिए बधाई दी और विश्वास प्रकट किया कि हरियाणा के दूसरे लोग भी चौधरी रण सिंह के पदचिन्हों पर चलेंगे।
एक साधारण किसान होते हुए भी उनकी शिक्षा के प्रति बड़ी गहरी रुचि थी। उनके कई बेटे, पौते-पौतियां उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और उनका समाज सुधार के प्रति बहुत ही सकारात्मक रूप था। आज से 35 वर्ष पहले उन्होंने अपने बेटे मास्टर अभयराम का रिश्ता केवल एक रुपये में किया और बारात में भी केवल पांच बाराती गए थे। अपने सबसे छोटे बेटे डॉक्टर श्रीराम सिवाच जो वर्तमान में एसएमओ हैं का रिश्ता भी एक रुपये में किया और उनकी बारात में भी केवल 11 बाराती गए थे। दोनों ही शादियों में किसी भी किस्म का दहेज नहीं लिया गया था। इसी प्रकार उनके पौत्र सुखबीर सिवाच जो चंडीगढ़ टाइम्स आफ इंडिया के हरियाणा के प्रभारी हैं ने अंतरजातीय शादी की है और उनकी पौत्री सुनीता सिवाच ने भी भाई के रास्ते पर चलते हुए अंतर-जातीय शादी की है। हरियाणा जैसे पिछड़े हुए समाज में इन दोनों ही अंतर-जातीय शादियों का चौधरी रण सिंह ने न केवल समर्थन किया बल्कि चौधरी चरण सिंह की तरह अंतर-जातीय शादियों को अपनी बातचीत में हमेशा ही समर्थन करते रहे हैं। अनेक संगठनों, संस्थाओं और व्यक्तियों ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया है।
चित्र परिचय: स्वर्गीय चौधरी रण सिंह।
कामरेड कृष्णस्वरूप गोरखपुरिया
वरिष्ठ नेता, माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी
मो: 98131-64821
चौधरी रण सिंह का जीवन बहुत ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना के साथ जुड़ा हुआ है, जब उन्हें 1975 में आपातकाल की घोषणा के बाद 27 जून, 1975 को बड़े भारी पुलिस बल के साथ सुबह चार बजे गांव गोरखपुर में उनके घर का घेराव कर लिया और घर की तलाशी ली गई। तलाशी में जब उनके बेटे कामरेड कृष्णस्वरूप को पुलिस घर में उपलब्ध न पा सकी तो चौधरी रण सिंह को गिरफ्तार करके थाना भूना जिला फतेहाबाद में बंद कर दिया गया। एक सप्ताह पुलिस हिरासत में रखने के बाद उन्हें दो दिन की मोहलत इस शर्त के साथ दी कि वे अपने बेटे कृष्णस्वरूप को गिरफ्तारी के लिए पेश कर देंगे। घर आने के बाद एक गुप्त स्थान पर रात को दो बजे कामरेड कृष्ण स्वरूप ने अपने पार्टी के गिरफ्तारी न देने के फैसले के बारे में अपने पिता चौधरी रण सिंह को अवगत करवाया। उन्होंने तुरंत अपने बेटे का इस संकट के दौर में पूर्ण समर्थन किया। उनको जिला हिसार के ततकालीन एसएसपी श्री कल्याण रुद्रा की यह धमकी भी नहीं झुका पाई कि कृष्णस्वरूप की गिरफ्तारी न होने की स्थिति में आपकी सारी जमीन जायदाद, मकान, पशु इत्यादि नीलाम कर दिये जाएंगे और परिवार की महिलाओं सहित सारे परिवार के सदस्यों को जेल में बंद कर दिया जाएगा। अपातकाल की घोषणा के बाद देश में प्रेस पर सेंसर लगा कर जनता के सारे लोकतांत्रिक अधिकारों को समाप्त करके देश पर तानाशाही थोप दी गई थी और उस समय सत्ता का विरोध करना खतरे से खाली नहीं था।
दो दिन के बाद चौधरी रण सिंह अपने सिर पर उपलों (गोसे) की बोरी, हुक्का और तम्बाकू लेकर थाने में पहुंच गए और एसपी के सामने अपने बेटे को पेश करवाने से इंकार कर दिया और कह दिया कि जब तक आप लोग मुझे थाने में रखेंगे मेरा हुक्का यहीं बजेगा। इससे एसपी और पुलिस थानेदार बहुत प्रभावित हुआ और उन्होंने एक सप्ताह तक उन्हें थाने में रखने के लिए माफी मांगी और उन्हें बाइज्जत छोड़ दिया। यहां यह बताना जरूरी है कि 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा के बाद सभी राष्ट्रीय और प्रांतीय नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया था परंतु उनके बेटे कृष्णस्वरूप को 18 माह तक सरकार गिरफ्तार करने में असफल रही और उन्होंने भूमिगत रहकर सरकार के खिलाफ अभियान चलाया। कामरेड कृष्णस्वरूप को पुलिस ने भूना थाना की सूची-बदमासान में शामिल करके उन्हें इश्तिहारी मुजरिम घोषित कर दिया। जब इस घटना का महेंद्रगढ़ जेल में चौधरी देवीलाल, कामरेड पृथ्वी सिंह और लाला बलदेव तायल को पता लगा तो इस घटना से उन्हें बहुत हौसला मिला और चौधरी देवीलाल ने एक पत्र लिखकर चौधरी रण सिंह को इस दिलेराना कदम के लिए बधाई दी और विश्वास प्रकट किया कि हरियाणा के दूसरे लोग भी चौधरी रण सिंह के पदचिन्हों पर चलेंगे।
एक साधारण किसान होते हुए भी उनकी शिक्षा के प्रति बड़ी गहरी रुचि थी। उनके कई बेटे, पौते-पौतियां उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और उनका समाज सुधार के प्रति बहुत ही सकारात्मक रूप था। आज से 35 वर्ष पहले उन्होंने अपने बेटे मास्टर अभयराम का रिश्ता केवल एक रुपये में किया और बारात में भी केवल पांच बाराती गए थे। अपने सबसे छोटे बेटे डॉक्टर श्रीराम सिवाच जो वर्तमान में एसएमओ हैं का रिश्ता भी एक रुपये में किया और उनकी बारात में भी केवल 11 बाराती गए थे। दोनों ही शादियों में किसी भी किस्म का दहेज नहीं लिया गया था। इसी प्रकार उनके पौत्र सुखबीर सिवाच जो चंडीगढ़ टाइम्स आफ इंडिया के हरियाणा के प्रभारी हैं ने अंतरजातीय शादी की है और उनकी पौत्री सुनीता सिवाच ने भी भाई के रास्ते पर चलते हुए अंतर-जातीय शादी की है। हरियाणा जैसे पिछड़े हुए समाज में इन दोनों ही अंतर-जातीय शादियों का चौधरी रण सिंह ने न केवल समर्थन किया बल्कि चौधरी चरण सिंह की तरह अंतर-जातीय शादियों को अपनी बातचीत में हमेशा ही समर्थन करते रहे हैं। अनेक संगठनों, संस्थाओं और व्यक्तियों ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया है।
चित्र परिचय: स्वर्गीय चौधरी रण सिंह।
कामरेड कृष्णस्वरूप गोरखपुरिया
वरिष्ठ नेता, माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी
मो: 98131-64821
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