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19 January 2014

पितरों की नाराजगी न बन जाए आपकी परेशानी का कारण

pitri dosh pitri shanti magh puja

पितरों से संबंधित दोष पितृदोष कहलाता है। यहां पितृ का अर्थ पिता नहीं वरन् ऐसे पूर्वज हैं जो अपने कर्मों के कारण आगे नहीं जा सके और पितृलोक में ही रहते है। अपने प्रियजनों से उन्हे विशेष स्नेह रहता है। श्राद्ध या अन्य धार्मिक कर्मकाण्ड नहीं करने से जब वे रुठ जाते हैं तो उसे पितृ दोष कहते है।

पितरों को भी सामान्य मनुष्यों की तरह सुख दुख मोह ममता भूख प्यास आदि का अनुभव होता है। समान्यतः इन पितर या अलौकिक देहधारी पितर अपने वंशजों के लिए चिंतित रहते हैं। पितर अपने प्रति श्रद्धा व्यक्त नहीं करने से� खुद को निर्बल अनुभव करते हैं। यदि वह नाराज हो गए तो इनके परिजनों को तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

पितृ दोष होने पर व्यक्ति को तमाम तरह की परेशानियां उठानी पड़ती है जैसे घर में सदस्यों का बीमार रहना, संतान का जन्म नहीं लेना, परिवार के सदस्यों में� मतभेद, जीविका में अस्थिरता आदि। प्रत्येक कार्य में अचानक रूकावटें आने और बनते हुए काम बिगड़ने और लगातार कर्ज का भार बने रहने जैसी दिक्कतें आती हैं।

अगर लगातार इस तरह की दिक्कतें समने आ रही हों तो समझना चाहिए कि पितर नाराज या दुखी हैं। उनकी प्रसन्नता के लिए घर में पूजा पाठ के विशेष अनुष्ठान करना चाहिए।

उन्हें प्रसन्न किया जाना चाहिए। भागवत और रामायण का विधिवत पारायण भी पितरों को कष्ट से उबारने का अच्छा उपाय हैं। माघ महीने में उस तरह के पुण्यकार्य किए जाएं तो उसके परिणाम तुरंत और तत्काल देखे जा सकते हैं।

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