आपने हमारे पहले के लेख में 'बॉयकॉट' शब्द की उत्पत्ति के बारे में पढ़ा होगा और आपने शब्दों के महाजाल में उन शब्दों के बारे में भी पढ़ा होगा जो अब बिल्कुल ही उल्टे अर्थ में प्रयुक्त हैं.
आज हम जिस शब्द की बात कर रहे हैं वह हमारे दैनिक जीवन की शब्दावली में शामिल है और वह शब्द है ‘डन्स’ जिसका अर्थ तो न बदला है लेकिन जिस व्यक्ति के नाम पर उसे रखा गया है उसके साथ बड़ी नाइंसाफ़ी हुई है. किसी शायर ने इसकी अभिव्यक्ति के लिए कितना ख़ूबसूरत शेर कहा है....
ख़िरद का नाम जुनूं रख दिया जुनूं का ख़िरद
जो चाहे आप का हुस्न-ए-करिशमा-साज़ करे
यहां ख़िरद का अर्थ होशियारी है और जुनूं का मतलब पागलपन और हुस्ने-करिशमा-साज़ का अर्थ हुआ करिश्मा करने वाला सौंदर्य है. अब किसी प्रकार की व्याख्या की ज़रूरत तो नहीं है.
तो बात करते हैं डन्स (dunce) की
डन्स की उत्पत्ति उस व्यक्ति के नाम पर है जिसका शुमार अपने ज़माने के सबसे होशियार आदमी में होता था, और 13वीं शताब्दी के उस धर्मशास्त्री और बुद्धिजिवी का नाम था जॉन डन्स स्कॉटस. धर्मशास्त्र, दर्शन और तर्कशास्त्र पर उनकी किताबें विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती थीं.
इसकी उत्पत्ति उस व्यक्ति के नाम पर है जिसका शुमार अपने ज़माने के सबसे होशियार आदमी में होता था, और 13वीं शताब्दी के उस धर्मशास्त्री और बुद्धिजिवी का नाम था जॉन डन्स स्कॉटस. धर्मशास्त्र, दर्शन और तर्कशास्त्र पर उनकी किताबें विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती थीं.
आप सोचेंगे कि उन्होंने ऐसा क्या कर दिया कि लोगों ने उनके नाम को मूर्खता का पर्याय मान लिया. तो सुन लिजिए उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया और अपने जीवन में नाम और मान के साथ रहे.
उनके दर्शन, धर्मशास्त्र और तर्कशास्त्र को मानने वालों को ‘डन्सेज़’ या ‘डन्समेन’ कहा जाता था और जिनकी बाल की खाल निकालने वाली प्रक्रिया को नकार दिया गया. बहुत से मामलों पर उनके तर्क को ख़ारिज कर दिया गया लेकिन वह अपनी बात पर सख़ती से डटे रहे.
सुधारकों ने उनकी हठधर्मी से तंग आकर उनके लिए यह कहना शुरू कर दिया कि ‘वे डन्स लोग हैं’ वे कहां समझेंगे जिससे यह अभिप्राय होता था कि डन्स सिद्धांत को मानने वाले आम तौर पर मूर्ख हैं, उनके पास भेजा नहीं है.
डन्स कैप
अब तो यह परंपरा आम नहीं है लेकिन आप कार्टूनों में देखेंगे कि किस प्रकार टॉम जेरी को डन्स कैप पहनाता है और जेरी टॉम को. या फिर टीवी शो के दौरान देखेंगे कि किसी के बेवक़ूफ़ बन जाने पर उसके सर पर एक कोनीकल टोपी पहना दी जाती है जिस पर डन्स या सिर्फ़ डी (D) लिखा होता है.
यह भी अजीब बात है कि जॉन डन्स स्कॉटस का विचार था कि शंकूनुमा टूपी पहनने से दिमाग़ में ज्ञान की कुछ रौशनी ज़रूर जाती है. लेकिन 16वीं शताब्दी में उनके विचार का इतना विरोध हुआ कि उनके नाम पर उसी प्रकार की टोपी प्रचलित हो गई और उसका मतलब यह निकाला गया कि जिसके दिमाग़ में ज्ञान न घुस पाए.
हालांकि मूर्ख और मंदबुद्धि के रूप में डन्स का प्रयोग और प्रचलन बहुत पहले हो गया था लेकिन इसका लिखित प्रमाण 1624 से पहले सामने नहीं आता है जब जॉन फ़ोर्ड ने अपने नाटक ‘संस डार्लिंग’ में मंदबुद्धि के छात्रों के लिए ‘डन्स टेबुल’ का प्रयोग किया जहां उन्हें सबसे अलग रखा जाता था.
इसी प्रकार ‘डन्स कैप’ का पहली बार प्रयोग 1840 में सामने आता है जब प्रसिद्ध उपन्यासकार चार्ल्स डिकेंस अपने उपन्यास ‘ओल्ड क्यूरियोसिटी शॉप’ में इसका प्रयोग करते हैं.
इस से जुड़े शब्द
अंग्रेज़ी के महान कवि, सबसे बड़े वयंगकार और आलोचक अलेक्ज़ैन्डर पोप (मई 1688- मई 1744) ने अपने ज़माने के घटिया लेखकों और आलोचकों का चित्रण अपनी किताब ‘द डन्सियाड’ (The Dunciad) में किया है मानो वह मंदबुद्धियों पर लिखा गया महाकाव्य है.
‘डन्सियाड’ तीन बार में प्रकाशित हुआ जिसमें प्रसिद्ध कवि, व्यंगकार और आलोचक जॉन ड्राईडेन की किताब ‘मैक-फ़्लेकनो’ (MacFlecknoe) के अंदाज़ में पोप ने अपने ज़माने के निम्नस्तर के लेखकों और स्क्रिबलेरियन कलब के सदस्यों को निशाना बनाया गया है.
जॉन ड्राईडेन ने अपनी किताब ‘मैक-फ़्लेकनो’ में बेवक़ूफ़ी का ताज अपने प्रतिद्वंदी कवि थॉमस शैडवेल के सर पर रखा है तो पोप ने सुस्सती और मंदबुद्धि का सेहरा स्क्रिबलेरियन कलब के सदस्यों के सर किया है.
हमारे यहां भी एक मुहावरा मश्हूर होता जा रहा है टोपी पहनाना, यानी चूना लगा देना, यानी बेवक़ूफ़ बनाना या ठग लेना. तो यह टोपी पहनने और पहनाने का काम तो चलता रहेगा और शायद इसी लिए उर्दू के प्रसिद्ध कवि मीर ने कहा है कि अपनी दस्तार यानी पगड़ी यानी टोपी को ठीक से पकड़ें.
मीर साहब ज़माना नाज़ुक है
दोनों हाथों से थामिए दस्तार
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