डेरा शाह मस्ताना बिलोचिस्तानी में मासिक सत्संग आयोजित
ओढ़ां
गांव घुकांवाली में बस स्टेंड के निकट स्थित डेरा शाह मस्ताना बिलोचिस्तानी में मासिक सत्संग आयोजित किया गया। सत्संग के दौरान प्रवचन फरमाते हुए डेरा प्रबंधक बाबा गुरदयाल सिंह ने कहा कि मालिक ने कृपा करके जीव को श्रेष्ठ व दुर्लभ मनुष्य जन्म इसलिए प्रदान किया ताकि वो अच्छे कर्म करते हुए प्रभु के नाम का सुमिरन करे और अपने जीवन को सार्थक बनाए। लेकिन संसार में आने के बाद जीव अपने मकसद को भूलकर सांसारिक विषय विकारों में इस कदर उलझ जाता है कि उसे नाम सुमिरन करना याद ही नहीं रहता। उन्होंने कहा कि सतयुग, त्रेता युग और द्वापर युग के मुकाबले कलियुग में प्रभु की प्राप्ति अति सरल है क्योंकि अन्य युगों में मुक्ति प्राप्त करने हेतु मनुष्य को विशाल यज्ञ और कठिन तपस्या करनी पड़ती थी लेकिन कलियुग में सत्संग तथा नाम सुमिरन से भी मुक्ति संभव है। उन्होंने कहा कि आज के मानव ने स्वयं को इतना व्यस्त कर लिया है कि उसके पास भगवान का नाम लेने तक का समय नहीं है। उन्होंने कहा कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है तथा मनुष्य जीवन बार बार नहीं मिलता अत: अभी से अपने मुक्ति के मार्ग को प्रशस्त करना आरंभ करना होगा अन्यथा बहुत देर हो जाएगी तथा आगे चलकर वो स्थिति आने वाली है जब कहते हैं कि अब पछताए होत क्या जब चिडिय़ा चुग गई खेत।
इस अवसर पर भजन गायक श्रद्धालुओं ने एह वक्त गुजरदा जांदा है, लक्खां विच्चों कोई बिरला ही मुल्ल वक्त दा पांदा है..., मैं नीवां ते मेरा मुरशद ऊच्चा..., मिलियां तेरे दर तों सतगुरु जी रहमतां हजारां..., तूं जप लै सतगुरु दा नाम तेरी दो दिन दी जिंदगानी..., तेरे नाम दी एह संगत दीवानी, मौज मस्तानी, अंतर्यामी, दिलां दा जानी..., मेरे सतगुरु बुला लो मुझे भी, मैं दर आने के काबिल नहीं हूं..., मीरां वाली लगन लगाके देख लै आवेगा जवाब तार पाके वेख लै... तथा लानत है लानत तैनूं कर्मा देया मारेया, अपना तूं चंगा मंदा कदे ना विचारेया..., शाह मस्ताना जी नूं हाल अपना मैं सुणाके देखां... आदि अनेक भजन सुनाकर संगतों को निहाल किया। इस अवसर पर अटूट लंगर भी बरताया गया। इस अवसर पर बाहर से पधारे श्रद्धालुओं सहित अनेक स्थानीय श्रद्धालु महिला पुरुष उपस्थित थे।
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