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22 February 2011

हरियाणावीं, राजस्थानी और पंजाबी संस्कृति का गजब सांमजस्य देखने को मिला

सिरसा, 22 फरवरी। स्थानीय सी.एम.के कॉलेज के ऑडिटोरियम में आज हरियाणावीं, राजस्थानी और पंजाबी संस्कृति का गजब सांमजस्य देखने को मिला। मौका था स्पीक मैके के सहयोग से  करवाए गए 'म्हारी रीत-म्हारे गीत कार्यक्रम का जिसमें हरियाणावीं, राजस्थानी और पंजाबी साहित्य के लोक  गायकों ने गीतों को स्वरबद्ध किया। इस कार्यक्रम का उद्घाटन सिरसा के उपायुक्त श्री युद्धबीर सिंह ख्यालिया ने दीप प्रज्जवलित कर किया।
    कार्यक्रम की शुरुआत मशहूर हरियाणवी गायिक डा. किरण ख्यालिया व श्रीमती सुनीता चौधरी ने की। डा. किरण ख्यालिया का लोक गायिका के रुप में जहां देश के चोटी के एक दर्जन कलाकारों में शुमार है, वहीं श्रीमती सुनीता चौधरी ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन की मशहूर फनकार है। इन दोनों गायिकाओं ने हरियाणवीं लोक संस्कृति को और अधिक विकसित करने के उद्देश्य से विभिन्न संस्कारिक गीतों का संकलन करके म्हारी रीत-म्हारे गीत नामक सीडी में अपना स्वर भी दिया है जिसे हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश व दिल्ली सहित भी हिंदी भाषी क्षेत्रों में एक नई पहचान मिली है।
    डा. किरण ख्यालिया और श्रीमती सुनीता चौधरी ने आज के इस कार्यक्रम में इष्ट देवताओं को याद करते हुए गीत की शुरुआत की। वैसे भी यह गीत हरियाणा में विवाह जैसे शुभ लग्न कार्यों की शुरुआत में गाया जाता है। गीत के बोल इस प्रकार है:-
कित तै आए अर्जुन पांडे  कित तै तो आए हनुमान,
हनुमान पियारे ये दोऊ कित रै समान
दोनों हरियाणवीं लोक साहित्य की गायिकाओं ने दूसरे लोकगीत की शुरुआत भात गीत से की। जब हरियाणा में बहन अपने भाई के घर भात न्योतने जाती है तो
क्यां ऐ न्योंदु बाबल राजा क्यॉ ऐ तै चाचे ताऊ
ऐरी भरी क्याँ ऐ तै न्योंदू मेरी मां का जाया जिसनै मैं उजली
इसके बाद डा. ख्यालिया और श्रीमती चौधरी ने हरियाणवीं लोक संस्कृति की पहचान सिठना गीत गाकर लोकगीत को स्वरबद्ध किया। इस गीत में उन्होंने सहेलियों और गांवों की बहनों पर गीत के रुप में सिठने कसे।
रेलगाड़ी तै उतर्या नवाब बदला कर लेती
ऐ बहणा काला हो तो बदल लेती, गोरा बालम तो बदल्या ना जाए
उनके इस गीत पर उपस्थित महिलाओं ने जमकर लोक नृत्य किया और ठुमके लगाए। ओडिटोरियम में बैठे सभी दर्शको ने हरियाणवीं संस्कृति से सराबोर हो कार्यक्रम का लुत्फ उठाया।  इसी प्रकार से
नारी की महिमा में हरियाणवीं खास लोकगीत
ओ मैं तो छैल छबीली नार नारंगी सेहरे आले गाकर सभी महिलाओं को झुमने पर मजबूर कर दिया। पुरुष दर्शनों ने भी अपने पांव ठिरका कर इन गीतों का भरपूर आनंद लिया।
    इस कार्यक्रम में दिल्ली से पधारे राजस्थानी लोक एवं क्लासिकल गायक रहमत खां लांगा ने अपने गीतों के माध्यम से राजस्थानी संस्कृति की छटा बिखेर कर सिरसा को संस्कृति के संगम में बदल दिया। उन्होंने राजस्थान का मशहूर गीत 'केसरिया बालम पधारो म्हारे देश गाकर श्रोताओं का खूब मनोरंजन करवाया। मान राग पर आधारित उनके इस गीत में सुर संगीत और वाद्य यंत्रों का गजब समावेश था। इसके साथ-साथ उन्होंने झंझुटी राग पर आधारित 'कानूनो न जाने म्हारी रीत सखी बाला वारी वारी गीत में तो राजस्थान की लोक संस्कृति का नजारा प्रस्तुत किया। उनके इस गीत पर उनके साथ आए पांच वर्षीय बाल कलाकार जाकिर खां ने जमकर नृत्य दिखाया। इनके गु्रप के कलाकारों ने खडताल पर मोहम्मद रफीक, सारंगी पर हाबिब खां और गायकी में साथ देने वाले मोहम्मत जाहिल तथा ढोलक पर सदीप खां ने जबरदस्त संगीत दिया।
    इस कार्यक्रम में स्थानीय पंजाबी गायक प्रवीन कुमार ने भी पंजाबी लोकगीत सुनाकर कार्यक्रम में पंजाब के लोक संस्कृति का तड़का लगाया। उन्होंने पंजाबी गीत दमा दम मस्त कलंदर गाकर दर्शकों की वाहवाही लुटी। इस कार्यक्रम में सिरसा एजुकेशन सोसायटी द्वारा सभी कलाकारों को शाल भेंट कर सम्मानित किया गया। इस समारोह में कॉलेज की प्राचार्य श्रीमती विजया तोमर ने मुख्यातिथि एवं बाहर से आए सभी कलाकारों का कॉलेज परिवार की और से स्वागत किया। इस अवसर पर सिरसा एजुकेशन सोसायटी के प्रधान प्रवीन बागला, डा. आर.एस सांगवान, डा. करण सिंह, डा. वेद बैनीवाल, आनंद बियानी सहित, जिला महिला कांग्रेस कमेटी की प्रधान शिल्पा वर्मा अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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